- वृंदा यादव
चार महीनों से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते कई देशों में ईंट्टान की भारी किल्ल्त देखी जा रही है। इसका असर अब भारत में भी दिखने लगा है
पिछले कई महीनों से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते कई देशों में ईंधन की भारी किल्ल्त देखी जा रही है। इसका असर अब भारत में भी दिखने लगा है। पेट्रोल-डीजल को लेकर आशंका जताई जा रही है कि कहीं भारत में भी श्रीलंका जैसे हालात पैदा न हो जाए। दरअसल भारत के कई राज्यों में दो प्रकार के ईंधन (पेट्रोल और डीजल) की निरंतर बढ़ती जा रही मांग के चलते इसकी आपूर्ति में कमी आ गई है। कई पेट्रोल पंप ऐसे हैं जहां पेट्रोल कम या पूरी तरह खत्म हो गया है। जिसके कारण यह अफवाह फैल रही है कि भारत में जल्द ही पेट्रोल पूरी तरह खत्म हो जायेगा और पेट्रोल पंप बंद हो जाएंगे । इस अफवाह के बाद लोग पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े नज़र आ रहें हैं और कई लोग ऐसे भी हैं जो अपनी जरूरत से अधिक पेट्रोल खरीद कर उसे अपने घरों में स्टोर कर रहे हैं।
पेट्रोल की कमी का कारण
पिछले चार माह से विश्व के दो देशों रूस और यूक्रेन के बीच लगातर युद्ध जारी है। जिसका असर केवल इन दोनों देशों पर नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस- यूक्रेन के काफी अच्छे व्यापारिक संबंध हैं, जो युद्ध के कारण बिगड़ रहे हैं। इसका असर भारत की अर्थव्यस्था पर पड़ने की आशंका जताई रही है। दरअसल रूस ऐसा देश है जो सबसे ज्यादा कच्चा तेल निर्यात करता है लेकिन युद्ध के कारण कच्चे तेल के व्यापार में काफी कमी आई है जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती जा रही है।
वहीं इस बात की ओर ध्यान देने की भी आवश्यकता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने के बाद भी भारत में पैट्रोल की कीमतों को नहीं बढ़ाया गया है। कीमतों को फ्रीज कर देने के कारण भारत सरकार को पेट्रोल पर लगभग 14-15 रूपये और डीजल पर 20-25 रुपए प्रतिलीटर का घाटा झेलना पड़ रहा है। कहा जा सकता है कि कीमतें न बढ़ाने की वजह से ही वर्तमान में भारत को पेट्रोल की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि भारत के लगभग 90 फीसदी पेट्रोल पंप जैसे इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, सरकारी हैं और 10 फीसदी जैसे जियो बीपी, रिलायंस पेट्रोलियम आदि प्राइवेट पेट्रोल कंपनियां हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण प्राइवेट कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ रहा है, क्योंकि भारतीय पेट्रोल के न्यूनतम खुदरा मूल्य में कोई वृद्धि नहीं हो रही और ये कंपनियां सरकार द्वारा निर्धारित खुदरा मूल्य पर ही पेट्रोल या डीजल बेचती हैं।
पेट्रोल के लिए उमड़ी भीड़
इस भारी घाटे को देखते हुए ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन पेट्रोलियम इंडस्ट्री’ (एफआईपीआई)’ ने सरकार से खुदरा मूल्य को अंतरराष्ट्रीय बाजार के अनुकूल बढ़ाए जानें की मांग करते हुए सरकार को पत्र लिख कहा है कि ‘निजी कंपनियों को लागत से कम मूल्य पर ईंधन की बिक्री (अंडर-रिकवरी) से डीजल पर प्रति लीटर 20-25 रुपये और पेट्रोल पर प्रति लीटर 14-18 रुपये का नुकसान हो रहा है। दरअसल देश में छह अप्रैल से ईंधन के खुदरा दाम नहीं बढ़े हैं। वहीं राज्य परिवहन उपक्रमों जैसे थोक खरीदारों को बेचे जाने वाले ईंधन के दाम में अंतरराष्ट्रीय कीमतों के अनुरूप बढ़ोतरी हुई है। इससे बड़ी संख्या में थोक खरीदार खुदरा आउटलेट से खरीद कर रहे हैं जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों का नुकसान बढ़ रहा है। ‘पत्र में यह भी बताया गया है कि सभी पेट्रोलियम विपणन कंपनियां खुदरा क्षेत्र में भारी निवेश कर रही हैं, लेकिन इस समय उन्हें एक मुश्किल हालात से जूझना पड़ रहा है।
इससे निजी कंपनियों की निवेश के साथ-साथ परिचालन की क्षमता प्रभावित हो रही है। साथ ही वे अपने नेटवर्क का भी विस्तार नहीं कर पा रही हैं। इस बढ़ते नुकसान के कारण प्राइवेट कंपनियों ने पेट्रोल की बिक्री दर कम कर दी है क्योंकि वह इतना नुकसान नहीं झेल सकते हैं। ये केवल एक चौथाई पेट्रोल की ही बिक्री कर रही हैं। जो भारतीय पैट्रोल की कमी का कारण बन रहा है।
क्या सच में खत्म होने वाले हैं पैट्रोल-डीजल
केंद्र सरकार व अन्य पेट्रोलियम कंपनियों ने पेट्रोल खत्म होने वाली बात से इंकार किया है। उनके अनुसार प्राइवेट कंपनियों के बिक्री दर कम करने की वजह से पेट्रोल की आपूर्ति में कमी आई और यह अफवाह फैल गई की भारत में जल्द ही पैट्रोल खत्म हो जाएगा। जिसके कारण जनता में भय फैल गया और पेट्रोल पंपों पर भीड़ लग गई। जिसके कारण अचानक से ही पैट्रोल की मांग बढ़ जानें के कारण पेट्रोल सप्लाई में कमी आ गई और पेट्रोल पंपों में पेट्रोल खत्म हो गया।
‘पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सैल’ की रिपोर्ट के अनुसार जहां भारत में 2021 के मई माह में 1991 मीट्रिक टन पेट्रोल की मांग की गई वहीं 2022 के मई में 3017 मीट्रिक टन पेट्रोल की मांग की गई। बढ़ती हुई इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने पेट्रोल पंप पर कार्य की अवधि को बढ़ा दिया है। पेट्रोल की कमी को लेकर परेशान जनता को आश्वस्त करते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि देश में पेट्रोल-डीजल की कोई कमी नहीं है। पेट्रोल-डीजल का उत्पादन मांग में तेजी के पूरा करने के लिए पर्याप्त है।
सरकार ने किया बड़ा बदलाव
प्राईवेट कंपनी नुकसान से बचने के लिए सारा पेट्रोल नहीं बेच रही है। जो भारत में पेट्रोल की कमी का एक बड़ा कारण है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने इन निजी ईंधन विक्रेताओं की मनमानी रोकने के लिए ‘यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन (यूएसओ)’ के दायरे को बढ़ा दिया है। जिसके तहत अब लाइसेंस प्राप्त सभी डीजल और पेट्रोल विक्रेताओं को प्रतिदिन अपने क्षेत्र के अलावा दूर दराज के क्षेत्रों में भी पेट्रोल बेचना होगा। यह जरूरी नहीं है की वे पूरा दिन पेट्रोल बेचे लेकिन एक निर्धारित समय तक उसे पेट्रोल बेचना ही होगा नहीं तो उस कंपनी का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।
सरकार का विरोध
ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा के अनुसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों के बढ़ने का कारण रूस-युक्रेन युद्ध ही है। लेकिन भारत में इनकी कीमतों में बिल्कुल वृद्धि न करने में इसे यह सरकार की राजनीति समझते हैं और कहते हैं कि ‘पिछले डेढ़ महीने से भारत में तेल और पेट्रोल की कीमतें नहीं बढ़ी हैं। इसका एक कारण शायद चुनाव भी हो सकते हैं। लेकिन इस डेढ़ महीने में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम 15 से 17 फीसदी बढ़ चुके हैं। ऐसे में जब कभी भारत में तेल की कीमतें रिवाइज होंगी, तो एक साथ 6-10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी भी देखी जा सकती है।’