आजाद भारत अपने एक प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या होते देख चुका है। 1984 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही सुरक्षाकर्मियों ने कर दी थी। 1991 में पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या तमिल आतंकी संगठन लिट्टे ने कर डाली। स्व. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अस्तित्व में आए विशेष सुरक्षा बल ‘एसपीजी’ का कार्य प्रधानमंत्री को सुरक्षा देना है। पहले इस सुरक्षा बल की जिम्मेदारी पीएम, उनके निकट परिजनों के साथ-साथ पद छोड़ चुके पूर्व प्रधानमंत्रियों को सुरक्षा देने की भी थी। पूर्व प्रधानमंत्रियों को पद-त्याग के दस बरस बाद तक यह सुरक्षा दी जाती थी। 2019 में एसपीजी एक्ट में बदलाव कर इसे केवल प्रधानमंत्री की सुरक्षा करने वाला सुरक्षा बल बना दिया गया है। लगभग 3500 सुरक्षाकर्मियों वाले इस बल की वर्तमान जिम्मेदारी केवल पीएम मोदी की सुरक्षा भर है। ऐसे में भी प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक बड़े सवाल खड़े करती है
27 अक्टूबर 2013: बिहार के पटना का गांधी मैदान। भाजपा की हुंकार रैली के लिए उमड़ी भीड़। रैली में नरेंद्र मोदी मंच पर थे। तभी अचानक रैली के पिछले हिस्से में धमाका हुआ। इसी तरह दूसरा धमाका और फिर तीसरा। भीड़ में भय हुआ। इधर- उधर भागे लोग। मोदी की सुरक्षा को लेकर एसपीजी सक्रिय हुई।
07 नवम्बर 2014: स्थान-महाराष्ट्र के मुंबई का वानखेड़े स्टेडियम। पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीश का शपथ ग्रहण समारोह। समारोह में प्रधानमंत्री मोदी के साथ ही अमित शाह भी मौजूद थे। तभी एक युवक प्रधानमंत्री तक जा पहुंचा। इस युवक ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगे तीन सुरक्षा घेरे तोड़े। उसके पास न कोई एंट्री पास और न ही कोई पहचान पत्र था। तब सीएम मोदी ने महाराष्ट्र सरकार को नहीं कहा था कि अपने सीएम को धन्यवाद कहना, मैं जिंदा लौट आया।
25 दिसंबर 2017: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नोएडा दौरा। काफिले में आगे-आगे चल रहे पुलिस की गाड़ियों ने गलत मोड़ ले लिया। जिसके कारण प्रधानमंत्री का काफिला रास्ता भटक गया। काफिला एक फ्लाई ओवर के टैªफिक में कई मिनट फंसा रहा। तब भी पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद करते हुए नहीं कहा कि ‘मैं जिंदा लौट आया।’
26 मई 2018: पश्चिमी बंगाल का विश्व भारती विद्यालय, जहां दीक्षांत समारोह चल रहा था। चीफ गेस्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। तभी एक युवक एसपीजी सुरक्षा से गुजरता हुआ मंच तक जा पहुंचा और वहां जाकर उसने उनके पैर छू लिए। पहले तो प्रधानमंत्री हैरान हुए, फिर सहज हो गए। यहां भी घोर राजनीतिक प्रतिद्वंदिता बाद भी ममता बनर्जी को पीएम ने थैंक्यू नहीं बोला।
02 फरवरी 2019: पश्चिम बंगाल का अशोक नगर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रैली को संबोधन हो रहा था। इसी दौरान रैली में हलचल मची। भगदड़ की स्थिति। भीड़ स्टेज की तरफ बढ़ने लगी। प्रधानमंत्री को अपना भाषण जल्दी खत्म करना पड़ा। किसी तरह एसपीजी ने प्रधानमंत्री मोदी को वहां से सुरक्षित निकाला। इस दौरान भगदड़ के कारण बहुत से लोग गिरकर घायल हो गए थे। तब इसके बाद हुई दूसरी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वे लोगों के इतने प्यार से अभिभूत हैं।
05 जनवरी 2022 को पंजाब के फिरोजपुर में रैली करने जा रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कुछ ऐसी ही सुरक्षा में चूक हुई। जब वह किसानों के विरोध प्रदर्शन के कारण रास्ता जाम होने के चलते फ्लाई ओवर पर 20 मिनट तक फंसे रहे। देश के गृह मंत्रालय ने इसे बड़ी चूक माना है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार पहले प्रधानमंत्री भटिंडा एयरपोर्ट से हेलीकाप्टर के जरिए हुसैनीवाला में राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाने वाले थे। लेकिन खराब मौसम के कारण प्रधानमंत्री का काफिला सड़क मार्ग से रवाना हुआ। प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक का यह मामला दो पार्टियों के बीच सियासी मुद्दा बन गया है। भाजपा जहां कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि उनके पंजाब के मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी की लापरवाही से प्रधानमंत्री की जान आफत में आ गई। यहां तक कि भाजपा ने किलर कांग्रेस की संज्ञा तक दे डाली है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इस मामले पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को टैग करते हुए एक ट्वीट किया है और रैली स्थल से खाली कुर्सियों की फोटो डालते हुए लिखा है कि ‘प्रिय नड्डा जी, रैली रद्द होने का कारण खाली कुर्सियां रही। यकीन न हो तो देख लीजिए और हां बेतुकी बयानबाजी नहीं। किसान विरोधी मानसिकता का सच स्वीकार कीजिए और आत्ममंथन कीजिए।’ बकौल सुरजेवाला पंजाब के लोगों ने रैली से दूरी बनाकर अहंकारी सत्ता को आईना दिखा दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में लापरवाही पर स्पष्ट इंकार करते हुए कहा कि फिरोजपुर रैली में भीड़ कम होने के कारण प्रधानमंत्री ने यात्रा रद्द की। यही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री चन्नी इसे राज्य को बदनाम करने की साजिश करार दे रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि सुरक्षा में चूक का मुद्दा बनाकर भाजपा इस पर धार्मिक कर्मकांड करके मामले को भावनात्मक बना रही है। इसका उदाहरण है 6 जनवरी को देश भर में भाजपा नेताओं के द्वारा प्रधानमंत्री की रक्षा के लिए किए गए महामृत्युंजय हवन और पूजा पाठ। मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा। इस मामले पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी तीन सदस्यीय जांच टीम गठित कर दी। जांच टीम ने उस फ्लाई ओवर का भी दौरा किया है जहां प्रधानमंत्री का काफिला रूका था। लेकिन इसके साथ ही देश के गृह मंत्रालय और एसपीजी पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं।
सवाल यह है कि जब प्रधानमंत्री कार्यालय से 3 जनवरी को ही एक प्रेस रिलीज जारी हो चुकी थी जिसमें प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में हुसैनीवाला का जिक्र नहीं था तो यह कब तय हुआ कि सड़क मार्ग से हुसैनीवाला जाना है? यही नहीं बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी रिलीज को 5 जनवरी की सुबह ट्वीट किया। इसमें भी हुसैनीवाला जाने के कार्यक्रम का कहीं जिक्र नहीं था। सवाल यह भी है कि क्या 140 किलोमीटर का रास्ता जोखिम भरा नहीं था? आखिर बरसात के मौसम में सड़क मार्ग से 140 किलोमीटर का लंबा सफर तय करने के आदेश किसके द्वारा दिए गए? सोशल मीडिया पर यह भी चर्चा है कि ‘सीएम को कहना, मैं भटिंडा जिंदा लौट आया’ वाला बयान पंजाब के मुख्यमंत्री के पास पहुंचने की बजाय अखबारों की हेड लाइन कैसे बना?
राजनीतिक गलियारों में इस मुद्दे को दूसरे नजरिए से देखा जा रहा है। राजनीतिक पंडितों द्वारा इस मुद्दे को आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा का सियासी शस्त्र बताया जा रहा हैं। ऐसे में प्रश्न यह भी उठ रहे हैं कि क्या यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि प्रधानमंत्री मोदी के लोक- लुभावन और लच्छेदार भाषणों से उदासीन हो चुकी जनता और खासकर समर्थकों में नया उत्साह भरा जा सके और तमाम मुद्दों को किनारे करके प्रधानमंत्री की सुरक्षा को ही मुद्दा बना दिया जाए? गौरतलब है कि अब भाजपा के पास मंदिर मुद्दा अयोध्या में भूमि पूजन के बाद दम तोड़ चुका है। जबकि हिन्दू-मुस्लिम और पाकिस्तान विरोधी बातों में अब जनता ज्यादा दिलचस्पी लेती नहीं दिखाई देती है।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा मामले में भाजपा पर आरोप लग रहे हैं कि वह जितना इसका राजनीतिकरण कर पंजाब सरकार और कांग्रेस की घेराबंदी कर रही है उतना अगर एसपीजी की खामिया देखेगी तो स्थितियां काफी हद तक सामने आएंगी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री के किसी भी दौरे में सुरक्षा निश्चित करने के लिए एसपीजी की टीम पहले ही जाती है वह स्थानीय खुफिया अधिकारियों से मिलती है। कहां क्या व्यवस्था होनी चाहिए क्या रूट होना चाहिए यह सभी एसपीजी तय करती है। पुलिस जहां आउटर सक्रिल मंे सुरक्षा देती है जबकि एसपीजी इनर सर्कल में सुरक्षा देखती है। मामला प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए था जो नहीं लिया गया। जब मौसम खराब की सूचना पहले ही मिल गई थी तो रैली में जाने की स्वीकृति प्रधानमंत्री को कैसे मिली? यह पहली बार नहीं था जब प्रधानमंत्री मौसम खराब में कुछ दूर तक गए और फिर रैली स्थल तक नहीं पहुंचे। कई बार ऐसे में उन्होंने रैली में मौजूद जनता को मोबाइल से संबोधित किया। यहां 2019 का उत्तराखण्ड की रूद्रपुर रैली का उदाहरण दिया जा सकता है। जहां वह 14 फरवरी 2019 के दिन उत्तराखण्ड के रूद्रपुर में रैली से पहले नेशनल कार्बेट पार्क पहुंच गए थे। जहां वह अपनी वीडिया शूट कराने में लगे रहे। इसी दौरान मौसम खराब होने के चलते वह रूद्रपुर रैली में शामिल नहीं हुए थे। तब उन्होंने मोबाइल से ही जनता को संबोधित किया था। स्मरण रहे यह वही दिन था जब 3 बजे पुलवामा हमला हुआ था और दो घंटे बाद 5 बजकर 5 मिनट पर वह रूद्रपुर रैली को फोन पर संबोधित कर रहे थे। इसी तरह 11 दिसंबर 2016 को उत्तर प्रदेश के बहराईच में मौसम खराब होने की वजह से प्रधानमंत्री ने मोबाइल से रैली को संबोधित किया था। ऐसे में प्रधानमंत्री के पंजाब दौरे पर भी कहा जा रहा है कि मौसम खराब होने की वजह से वह इस रैली को भी फोन के जरिए संबोधित कर सकते थे। प्रधानमंत्री के किसानों द्वारा रास्ता रोकने को लेकर भी कई बाते सामने आ रही है। वीडियो सामने आ चुका है जिसमें उनके नजदीक किसान नहीं बल्कि भाजपा के कार्यकर्ता झंडे लेकर पहुंचे थे। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब यह रूट प्रधानमंत्री के लिए सुरक्षित किया गया था तो बीजेपी के नेता कहां से आ गए? प्रधानमंत्री के काफिले की वीडियो बनाने की स्वीकृति किसने दी? यही नहीं बल्कि पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री मेरठ दौरे पर ये तो उनके गाड़ी के अंदर से वीडियो बनाई जा रही थी। जिसमें वह जनता का अभिवादन करते हुए दिख रहे है। अब से पहले किसी भी प्रधानमंत्री की गाड़ी के अंदर से ऐसी वीडियो नहीं बनाई जाती रही है। क्या वीडियो एसपीजी बना रही थी या किसी प्रेस का कोई फोटो ग्राफर? 2017 में हुआ गुजरात चुनाव का एक दृश्य भी यहां बरबस आंखों के सामने आ जाता है। तब प्रधानमंत्री मोदी का विमान साबरमती नदी से धारोई बांध के लिए उड़ान भरा था। उस दिन गुजरात पुलिस ने मोदी और राहुल गांधी के रोड शो पर रोक लगा रखी थी। बावजूद इसके वह विमान में उड़े। उन्हें देखने के लिए लोग आए। जिनके हाथों में भाजपा के झंडे थे। प्रधानमंत्री विमान में बैठकर ही हाथ हिलाते दिखे थे। चैंकाने वाली बात यह है कि एक कैमरा बराबर प्रधानमंत्री की वीडियो दिखा रहा था। वह कैमरा उन पर ही फोकस था, जिनमें वह स्पष्ट दिख रहा था कि वह कहां और कैसे बैेठे है। क्या यह प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक नहीं थी? जिसमें वीडियो के जरिए उनकी सारी प्राइवेसी लीक की जाती ही थी।
31 अक्टूबर 2020 को सरदार पटेल की जयंती पर साबरमती रिवर फ्रंट से केवडिया तक के लिए सी-प्लेन सेवा शुरू की गई। तब इस मामले को परिवहन मंत्री नितिन गडकरी क्रांति के रूप में पेश कर रहे थे। लेकिन कायदे से उन्हें प्रधानमंत्री की सुरक्षा की चिंता के रूप में देखा जाना चाहिए था। तब इस विमान की उडान पर एसपीजी ने अपने ब्लू बुक सुरक्षा मानकों के निर्देशों से समझौता किया। क्योंकि एसपीजी की ब्लू बुक अनुसार प्रधानमंत्री को सिंगल इंजन वाले विमान से नहीं उड़ाया जा सकता हैं तब जम्मु-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस घटना पर ट्वीट करते हुए सवाल किया था कि एसपीजी ने प्रधानमंत्री को सिंगल इंजन वाले सी-प्लेन में उड़ान भरने की स्वीकृति कैसे प्रदान कर दी?
गत 13 दिसंबर को वाराणसी दौरेे से जिस तरह से प्रधानमंत्री की वीडियो सामने आई और स्थानीय लोग उनकी गाड़ी के न केवल नजदीक पहुंचे थे बल्कि कार में ही उनको पगड़ी पहनाई और फूल बरसाए। इससे सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि पंजाब में अगर सामने किसान थे तो उनकी सुरक्षा को खतरा हो गया और यूपी के वाराणसी में जब उनके पास लोग खड़े थे गाड़ियों में माला पहना रहे थे और फूल बरसा रहे थे तो उन्हें खतरा पैदा नहीं हुआ? सोशल मीडिया में प्रश्न पूछे जाने लगे हैं कि अक्टूबर 2020 में हाथरस दौरे पर जा रहे सांसद और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी पुलिस द्वारा धक्का देकर गिरा दिए जाते हैं तब किसी ने उनकी सुरक्षा पर चिंता क्यों नहीं जताई? वह भी तब जब उनकी दादी और पिता आतंकी घटनाओं का शिकार हो चुके हंै? कुल मिलाकर यह देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई भारी चूक का मामला है। भटिंडा एयरपोर्ट के अधिकारियों द्वारा न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि एयरपोर्ट लौटने पर पीएम मोदी ने कहा कि ‘‘अपने सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं भटिंडा एयरपोर्ट तक जिंदा लौट पाया।’’ उनके इस कथन चलते पूरा मामला राजनीति की भेंट चढ़ गया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और पंजाब सरकार द्वारा गठित जांच पर रोक लगाते हुए एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में स्वतंत्रत जांच टीम गठित कर दी है। इससे यह उम्मीद बंधता है कि पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच अब हो सकेगी।