सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि देश में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सूचना प्रद्योगिकी (आईटी) एक्ट की धारा 66 ए तहत कोई भी कार्यवाही नहीं की जाएगी।
गौरतलब है कि 24 मार्च, साल 2015 में श्रेया सिंघल मामले में आईटी एक्ट की धारा 66A को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश यूयू ललित की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि आईटी एक्ट धरा 66ए को 2015 में ही निरस्त किया जा चुका है तो धारा 66A में न किसी पर मुकदमा चलाया जाए, न कोई एफआईआर दर्ज हो और न किसी की गिरफ्तारी हो। साथ ही पीठ ने राज्यों के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को लंबित मामलों में से भी धारा 66A हटाने को कहा है।
दरअसल 6 सितम्बर 2022 के दिन अदालत के सामने एक मामला आया जिसमे आरोपी के खिलाफ धरा 66ए को लेकर कार्यवाही की जा रही थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की थी कि यह बहुत गंभीर मामला है की धारा को खत्म किये जाने के बाद भी इसके तहत कार्यवाही की जा रही है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से देशभर के आईटी एक्ट के केस के बारे में स्टेटस रिपोर्ट रिपोर्ट मांगते हुए कहा था कि वह राज्य सरकारों से संपर्क करें जहां अभी भी आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत केस दर्ज किया जा रहा है जबकि इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट गैर संवैधानिक करार चुकी है। केंद्र सरकार द्वारा पेश की गई रिपोर्ट को देखने बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह पाया कि आईटी एक्ट की धारा 66ए को निरस्त कर दिया था, बावजूद इसके देशभर में आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत केस दर्ज हुआ है और कार्यवाही पेंडिंग है।जबकि इस धरा के तहत मुकदमा चलना गैरकानूनी है। रिपोर्ट को देखना के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को ये निर्देश दिया था कि वह जल्द-से-जल्द इसको लेकर उपाय वाले कदम उठाएं।
क्या है आईटी एक्ट धारा 66ए
धारा 66ए के तहत कंप्यूटर या किसी अन्य संचार उपकरण जैसे- मोबाइल फोन या टैबलेट के माध्यम से संदेश भेजने पर सज़ा को निर्धारित किया है जिसमें दोषी को अधिकतम तीन वर्ष की जेल हो सकती है। सोशल मीडिया पर ‘आपत्तिजनक, उत्तेजक या भावनाएं भड़काने वाले पोस्ट’ शेअर करना गैर क़ानूनी माना जाता था। लेकिन साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1) (A) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार के ख़िलाफ़ बताकर निरस्त कर दिया था।