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SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गिरफ्तारी के लिए प्राथमिक जांच जरूरी नहीं

SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गिरफ्तारी के लिए प्राथमिक जांच जरूरी नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने आज अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संशोधन कानून 2018 (एससी/एसटी एक्ट) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस कानून के तहत गिरफ्तारी से पहले प्राथमिक जांच की जरूरत नहीं है।

इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले किसी अथॉरिटी से इजाजत लेना भी अनिवार्य नहीं होगा। वहीं, कोर्ट ने ये भी कहा कि अपने खिलाफ एफआईआर रद्द कराने के लिए आरोपी व्यक्ति कोर्ट के शरण में जा सकता है।

साल 2018 में एससी/एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस कानून में कई संशोधन किए थे। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरण और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने इन संशोधनों को बरकरार रखते हुए यह भी साफ किया कि इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले किसी अथॉरिटी से इजाजत लेना भी अनिवार्य नहीं होगा।

जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने कहा, “एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने के पहले जांच जरूरी नहीं है। साथ ही वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से मंजूरी लेने की जरूरत भी नहीं है।” वहीं बेंच में शामिल जस्टिस रविंद्र भट ने कहा, “हर नागरिक को दूसरे नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। साथ ही उनके साथ भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए।” उन्होंने ये भी कहा कि अगर शुरुआती तौर पर एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला नहीं बनता, तो अदालत एफआईआर को रद्द कर सकती है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च, 2018 में अपने फैसले में कहा था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं हो सकती है। एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसके बाद केंद्र सरकार ने इस कानून में कई संशोधन किए थे।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के उद्देश्य से अनुसूचित ये एक्ट लाया गया था। जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हर संभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए।

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