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हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट सख्त , केंद्र से माँगा जवाब

देश में आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं जहाँ किसी डिबेट या भाषण के दौरान किसी नेता या व्यक्ति द्वारा कही गई बातों से सामाजिक अराजकता फ़ैल जाती है। इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कई सवालों के जवाब मांगे हैं। जैसे हेट स्पीच के लिए सरकार “मूकदर्शक” की तरह क्यों खड़ी है? साथ ही टीवी चैनलों को फटकार लगाते हुए टीवी एंकरों की भूमिका पर भी सवाल उठाया है।

 

इसके बाद चैनलों को सुझाव देते हुए कहा है कि ऐसी चर्चाओं के लिए कोई कार्यप्रणाली निर्धारित की जानी चाहिए, जिससे सुनिश्चित हो सके कि वो नफरती भाषा को बढ़ावा ना दें। जस्टिस जोसेफ ने कहा ”हेट स्पीच पूरी तरह से ज़हर बोने का काम करती है। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है। हमारे पास एक उचित कानूनी ढांचा होना चाहिए। जब तक हमारे पास एक ढांचा नहीं है लोग ऐसा करना जारी रखेंगे।”

पीठ के अध्यक्ष केएम जोसेफ और ऋषिकेश रॉय ने एंकर की भूमिका बताते हुए कहा कि ”एंकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जैसे ही आप किसी को विवादास्पद या फिर भड़काऊ बयान देते हुए देखते हैं, एंकर का यह कर्तव्य है कि वह तुरंत उस व्यक्ति को टोके और आगे बोलने से रोके। दुर्भाग्य से कई बार जब कोई कुछ कहना चाहता है तो वह मौन हो जाता है। व्यक्ति को उचित समय नहीं दिया जाता है। उसके साथ विनम्र व्यवहार भी नहीं किया जाता है।”
बेंच ने इन स्पीच से राजनीतिक समूहों को होने वाले फायदे को व्यक्त करते हुए कहा है कि “राजनीतिक दल आएंगे और जाएंगे। पूरी तरह से स्वतंत्र प्रेस के बिना कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता है। एक मुक्त बहस होनी चाहिए। आपको यह भी पता होना चाहिए कि बहस की सीमा क्या है। बोलने की स्वतंत्रता वास्तव में श्रोता के लाभ के लिए है। एक बहस को सुनने के बाद श्रोता अपना मन बनाता है। लेकिन हेट स्पीच सुनने के बाद वह कैसे अपना मन बनाएगा।”

क्या है हेट स्पीच

 

हेट स्पीच का हिंदी अर्थ है नफरती भाषण भारत के विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ घृणा को उकसाने के रूप में देखा गया है। इस प्रकार हेट स्पीच लिखित या मौखिक किसी भी रूप में हो सकती है जो जनता को उकसाने काका कार्य करती है।

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