सावित्री बाई फुले बहुत पुराना नाम है। 18वीं शताब्दी में गुजरात की सावित्रीबाई फुले पहली महिला शिक्षक बनी थीं। उन्होंने समाजसेवा के क्षेत्र में काफी शोहरत हासिल की थी। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश की सावित्रीबाई फुले चर्चा में हैं। सावित्रीबाई राजनीति के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश में सक्रिय है। फिलहाल उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी बनाकर दलित राजनीति में नए समीकरण पैदा कर दिए हैं।
देखा जाए तो उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए आज का दिन इस लिहाज से बहुत खास है क्योंकि आज यहां पर एक नई राजनीतिक पार्टी का उदय हो गया है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस छोड़ने वाली पूर्व सांसद सावित्री बाई फुले ने आज अपनी नई पार्टी बना ली है। सावित्रीबाई फुले की पहचान दलित नेता के तौर पर है। जिसके चलते उन्होंने अपनी पार्टी का नाम कांशीराम बहुजन समाज पार्टी रखा है।
फ़िलहाल सावित्री बाई फुले की पोल्टिकली पार्टी बनने से उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा दलित मतदाताओं के प्रभावित होने की संभावनाएं है। इससे बसपा के दलित मतदाताओं में सेंध लगने की संभावनाएं है। फिलहाल सावित्री बाई फुले के राजनीतिक पार्टी बनांने से बसपा सुप्रीमो मायावती की नींद उड़ी हुई है।
गौरतलब है कि सावित्री बाई फुले साल 2012 से 2014 तक बहराइच की बलहा विधानसभा सीट से भाजपा की विधायक रही थीं। इसके बाद वर्ष 2014 में भाजपा के टिकट पर ही बहराइच लोकसभा से सांसद बनी थीं। बतौर सांसद अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में उनका भाजपा से मोहभंग हो गया और उन्होंने पार्टी पर ये आरोप लगाया कि भाजपा दलितों के साथ भेदभाव करती है।
सावित्री बाई फुले ने 2019 लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद उनकी समाजवादी पार्टी में जाने की चर्चा शुरू हो गई। लेकिन उन्होंने इसे अफवाह बताया था। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस पार्टी का हाथ थाम लिया था। लेकिन कांग्रेस के टिकट पर ही वह बहराइच से चुनाव भी लड़ी।
इस बार उन्हें हार का समाना करना पड़ा। कुछ दिनों के बाद सावित्री बाई फुले के कांग्रेस पार्टी से मोहभंग हो गया। उन्होंने उसी समय ये एलान कर दिया था कि अब वह खुद की नई पार्टी बनाएंगी। आज उन्होंने नई पार्टी बनाने का एलान भी कर दिया। अब देखना यह होगा कि वह दलित मतदाताओं में कितनी सेंध लगा पाएगी।