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  •            वृंदा यादव

 

पिछले कुछ समय से इंसानियत पर हैवानियत इस कदर हावी हो रही है कि वह जीवित और मृत इंसान के बीच का अंतर ही भूल गया है। यही कारण है कि अब महिलाओं के शवों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं

हैवानियत हावी है अब इंसानियत पर।
तरस खाता नहीं है कोई मासूमियत पर।।
भूल से भरोसा मत करना इस जहां में,
बैठा हो जालिम चाहे जिस हैसियत पर।
हालात अजीब है औरत की आबरु का,
शक होता है, हर किसी की नियत पर।

  • एल.सी. जैदिया ‘जैदि’ का यह गजल आज जिस हैवानियत पर इंसान उतर आया है उस पर सटीक बैठता है।देश में महिलाओं के साथ बलात्कारों के मामलों की संख्या कुछ वर्षों से चिंता का विषय बनी हुई है। आंकड़ों के अनुसार बीते साल 2022 में भारत में हर दिन 6 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए जाते थे। जो सरकार और देशवासियों के लिए शर्मनाक है। लेकिन अब इंसानियत पर हैवानियत इस कदर हावी है कि वह जीवित और मृत इंसान के बीच का अंतर ही भूल गया है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों से अब महिलाओं के शवों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। हाल ही में उत्तराखण्ड के देहरादून से भी ऐसा ही एक हैवानियत की हदें पार कर देने वाला मामला सामने आया है। जहां एक युवक जब महिला का बलात्कार करने की कोशिश में नाकाम हो गया तो उसने दीवार पर उसका सर पटक-पटककर उसकी हत्या कर दी और उसके शव के साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद शव को कूड़ेदान में फेंककर फरार हो गया।

    इस घटना की सूचना मिलते ही पुलिस ने हत्यारे को पकड़ने के लिए इलाके के सीसीटीवी कैमरे खंगाले और 24 घंटे के भीतर ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में आरोपी ने बताया कि उसका नाम राजेश है जो देहरादून में एक सुलभ शौचालय का कर्मचारी है। बीते 30 जुलाई की रात रेलवे स्टेशन के पास एक शराब की दुकान पर उसकी मुलाकात एक महिला से हुई। दोनों का साथ शराब पीने का प्रोग्राम बना और आरोपी उसे शराब पिलाने के लिए अपने कमरे पर ले गया। जहां दोनों ने बैठकर शराब पी। इसके बाद आरोपी राजेश ने नशे की हालत में महिला के साथ छेड़खानी करने की कोशिश की लेकिन महिला के विरोध करने पर उसे गुस्सा आया और उसने महिला के सिर को तीन से चार बार दीवार पर मार उसकी हत्या कर दी। इसके बाद उसके शव के साथ दुष्कर्म किया। सुबह जब उसका नशा उतरा तो उसने देखा कि महिला मृत पड़ी है। जिसे ठिकाने लगाने के लिए उसने लाश को कूड़ेदान में फेंक दिया।

    शवों के साथ यौन शोषण के मामले
    पिछले साल 2022 में कर्नाटक में  अस्पताल के चपरासी की घिनौनी हरकत ने लोगों को हैरान कर दिया था। इस शख्स का नाम सैयद है जो कर्नाटक के मदिकेरी शहर के एक अस्पताल में काम करता था। पुलिस के मुताबिक सैयद ने मोर्चरी में महिलाओं की डेड बॉडी की नग्न तस्वीरें अपने मोबाईल में कैद की थीं। मामले की छानबीन में पता चला कि आरोपी ने अस्पताल के मुर्दाघर में मृत शवों के साथ यौन संबंध बनाए। आरोपी के फोन में कई मृत महिलाओं की नग्न तस्वीरें मिली थी और वह अस्पताल की महिला स्टॉफ को भी परेशान करता था।


    नोएडा के निठारी स्थित डी-5 कोठी और पुलिस गिरफ्त में आरोपी पंधेर एवं कोली (फाइल फोटो)

    साल 2020 में मानवता को शर्मसार करने वाला ऐसा ही मामला राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सामने आया जहां एक पति ने अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद भी उसके शव के साथ शारीरिक संबंध बनाए। यह मामला दिल्ली के कंझावला इलाके का था। जिसमें एक युवक ने अपनी पत्नी के अवैध संबंध के चलते, गला घोंटकर उसकी करने के बाद शव के साथ दुष्कर्म किया था।

    साल 2016 में भी इसी प्रकार महिला के शव के साथ दुष्कर्म कर रहे व्यक्ति को पुलिस ने रंगे हाथों पकड़ लिया था। यह घटना दिल्ली के रिंग रोड के पास खादर की थी। जहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने पुलिस को इस बात की जानकारी दी थी कि एक व्यक्ति किसी महिला के साथ दुष्कर्म कर रहा है। जब पुलिस वहां पहुंची तो उसने देखा कि महिला मर चुकी है और वो शख्स महिला की लाश के साथ दुष्कर्म कर रहा है। जांच में इस बात का भी पता चला कि आरोपी महिला के साथ पहले भी अप्राकृतिक संबंध बना चुका था।

    मृत शवों के साथ यौन शोषण और कानून
    भारत में यौन हिंसा को लेकर सख्त कानून बनाए गए हैं। लेकिन अगर कोई दरिंदा किसी लाश से यौन संबंध बनाता है तो उसके ऊपर रेप या यौन शोषण का चार्ज नहीं लगेगा। क्योंकि कई बार आरोपी ‘नेक्रोफीलिया’ नाम की एक बीमारी का शिकार होता है। यह शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है। जहां नेक्रो का अर्थ है मृत शरीर और फीलिया यानी प्यार अथवा आकर्षण। इस प्रकार ‘नेक्रोफीलिया’ का अर्थ होता है मृत शरीर के साथ यौन संबंध बनाना। इसे एक घिनौना मनोविकार यानी मेंटल डिसऑर्डर कहा गया है। भारतीय कानून के अनुसार ‘नेक्रोफीलिया’ एक अपराध तो है लेकिन भारतीय दंड संहिता में इसकी सजा नहीं है। हालांकि कुछ मामलों में आईपीसी की धारा 297 लगाई जाती है। मगर इसमें भी ‘नेक्रोफीलिया’ पर साफतौर से कुछ नहीं कहा गया है। यही कारण है कि साल 2006 में घटित निठारी कांड में नोएडा के सेक्टर-31 के डी-5 कोठी में रहने वाले मनिंदर सिंह पंधेर और सुरेंद्र कोली ने 19 लड़कियों की हत्या कर उनके शवों के साथ बलात्कार करने की बात स्वीकार की थी। लेकिन आरोपियों को सिर्फ मर्डर के अपराध में तो कानून के अनुसार फांसी की सजा सुनाई गई मगर उन पर बलात्कार का कोई आरोप नहीं लगा था।

  • हाल ही में कर्नाटक हाई कोर्ट ने साल 2015 में मृत शरीर के साथ रेप के मामले में गिरफ्तार किए गए एक आरोपी पर लगे बलात्कार का आरोप हटा दिया। क्योंकि उसने जिस महिला के साथ दुष्कर्म किया वह मर चुकी थी। लेकिन कोर्ट ने आरोपी की सजा को निरस्त करने के साथ ही इस मामले में केंद्र सरकार से देश में एक नए कानून बनाने या पुराने कानून में ही संशोधन करने की मांग की है।

    इन देशों में ‘नेक्रोफीलिया’ के लिए सजा तय
    भारत में अब तक ‘नेक्रोफीलिया’ के खिलाफ कोई कानून नहीं बना है। जबकि यूनाइटेड किंगडम में यौन अपराध अधिनियम, 2003 की धारा 70 के तहत जान-बूझकर या लापरवाही से शव के साथ दुष्कर्म करने पर आरोपी को 6 महीने से लेकर 2 साल तक की सजा का प्रावधान है। इसी प्रकार कनाडा की आपराधिक संहिता, 1985 की धारा 182 के तहत ‘नेक्रोफीलिया’ एक दंडनीय अपराध है। जिसके तहत मृत शरीर की गरिमा व अधिकार को नुकसान पहुंचाने पर 5 साल की सजा निर्धारित है। वहीं दक्षिण अफ्रीका में आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2007 की धारा 14 के तहत नेक्रोफिलिया को यौन अपराध से जुड़ा मामला माना जाता है। इसके अलावा, न्यूजीलैंड, स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस कानून को लेकर अधिकतम 2 साल तक की सजा का प्रावधान है।

‘नेक्रोफीलिया एक मानसिक रोग है जिसमें रोगी का यौन आकर्षण किसी ‘डेड बॉडी’ के प्रति होता है। ऐसे रोगियों को सामान्यतः ‘‘कॉप्स’’ बोला जाता है। वैसे तो इस बीमारी की शुरुआत काफी पहले हो चुकी थी लेकिन अब इसके मामले प्रकाश में ज्यादा आने लगे हैं।’ ‘नेक्रोफीलिया’ में नेक्रो का अर्थ है ‘सड़ना’ और फीलिया का अर्थ है ‘प्यार’ या ‘आकर्षण’। इसके कई नाम हैं जैसे नेक्रोलाग्निया, नेक्रोकाइटस, नेक्रोक्लेसिस और थानाटोफिलिया जिसमें थानाटो का मतलब होता है ‘मरा हुआ।’ इस मनोरोग का उपचार मनोचिकित्सक द्वारा ही किया जाता है। वे पैराफिलिया के आधार पर नेक्रोफीलिया के लक्षणों की पहचान करते हैं। इसको भारतीय फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक अनिल अग्रवाल ने 10 भागों में बांटा है। जिसमें सबसे खतरनाक है ‘परमिसिशन नेक्रोफीलिया’, जिसमें परमिसिशन का मतलब होता है मर्डर करना। रोगी किसी इंसान का केवल इसलिए मर्डर कर देता है ताकि वो उसके साथ यौन संबंध बना सके। इसका एक अलग प्रकार है ‘रोलप्लेयर नेक्रोफीलिया’, जिसमें ये जरुरी नहीं है कि रोगी जिसके साथ संबंध बना रहा है वो जिंदा है या मरा हुआ है। इसमें केवल उस व्यक्ति का पार्टनर उसे ये महसूस कराता है कि वो एक लाश है जिसके साथ संबंध बनाकर रोगी संतुष्ट हो जाता है। इसी तरह ‘मुटिलेशन नेक्रोफीलिया’ में रोगी को बॉडी को चोट पहुंचाने में अच्छा लगता है जब किसी शरीर से खून निकलता है तो उसे अच्छा लगता है। ‘फैंटेसी नेक्रोफीलिया’ भी इसी का ही एक प्रकार है, जिसमें रोगी किसी लाश के साथ कोई संबंध नहीं बनाता है वो केवल अपने दिमाग में कल्पना करता है कि वह किसी शरीर के साथ यौन संबंध बना रहा है। ऐसा करके उसे संतुष्टि मिलती है कि उसने किसी शरीर के साथ यौन संबंध बनाया है।
डॉ. अंजलिका आत्रेय, मनोचिकित्सक, फीनिक्स मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल, मुंबई

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