“भारत के नागरिकों की ओर से मैं सरकार से पूरी विनम्रता एवं पूरी निष्पक्षता से पूछना चाहता हूं कि इस बढ़ते संकट से निपटने के लिए सरकार की क्या योजना है। अब यह स्पष्ट हो चला है कि लॉकडाउन के चैथे चरण बाद भी नतीजे अपेक्षा अनुसार नहीं आये हैं। ऐसे में सरकार का प्लान भी क्या है?”
“प्रधानमंत्री ने यूपीए काल में सृजित मनरेगा स्कीम के लिए 40.000 करोड़ का अतिरिक्त बजट देने की मंजूरी दी है। मनरेगा को समझने और उसे बढ़ाने के लिए हम उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं।”
उपरोक्त दो कथन बदलते और परिपक्व होते राहुल गांधी को सामने ला रहा है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का कोरोना महामारी के काल में नया अवतार अस्त-व्यस्त और लस्त-पस्त हो चुकी कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम करता दिखने लगा है।
राहुल गांधी के कटु आलोचक भी उनके इस नये अवतार से अचंभित हैं। दरअसल, 2019 के आम चुनाव के दौरान ‘चौकीदार चोर है’ के नारे संग फ्रन्ट फुट पर बैंटिग करने वाले राहुल की राजनीति को पुलवामा में आतंकी हमले के चलते भारी धक्का पहुंचा था। भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत ने राहुल के आलोचकों और गोदी मीडिया को एक बार फिर उनको ‘पप्पु’ साबित करने का मौका दे डाला। राहुल स्वयं वनवास चले गए। राजनीतिक विशेषक मानते हैं कि उनका युद्ध का मैदान छोड़ना कत्तई भी समझदारी पूर्वक उठाया गया कदम नहीं था। उनके इस कदम ने उनके आलोचकों के इस आरोप को पुख्ता किया कि न केवल वे अपरिवक्व हैं बल्कि न नाॅन सिरियस, पार्ट टाइम राजनेता हैं। तमाम प्रकार के दबावों का नजरअंदाज कर राहुल अपने निर्णय पर अडिग रहे। ‘चौकीदार चोर है’ के नारे से कुछ घबराये और कुछ तिलमिलाये भाजपा के लिए अब एक बार फिर राहुल बड़ी चुनौती अपने इस नए अवतार में राहुल बन रहे हैं। यह नया अवतार उन्हें न केवल एक मैच्चोर राजनेता बल्कि एक संवेदनशील राजनेता के तौर पर इस कोरोना महामारी के दौरान स्थापित करता नजर आने लगा है।
अपने इस अवतार में राहुल सीधे केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री या भाजपा पर प्रहार करने के बजाय आमजन से सवांद करने, पलायन के लिए मजबूर मजदूरों की बात उठाने और जहां-तहां कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां ‘डायरेक्ट बेनिफेट ट्रास्फर’ यानी जरूरतमंदों के खाते में सीधे मदद पहुंचाने का काम कर केंद्र और भाजपा कों अप्रत्यक्ष तौर पर भारी दवाब लाने में सफल होते दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल एक बरस पूरा कर चुका है। बीता एक साल उनके लिए नाना प्रकार की चुनौतियों का साल रहा। जहां एक तरफ बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, घटती जीडीपी, पस्त होते उद्योग धंधों का जवाब तलाशने में केंद्र सरकार असफल रही, मात्र जुमले बाजी तक सिमट कर रह गई, वहीं राहुल गांधी केंद्र की राजनीति से दूर एक सांसद के तौर पर अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड् ‘केरल’ की समस्याओं का हल खोजते नजर आये। इस दौरान ऐसा परशेप्सन बन गया या फिर बनाया गया कि राहुल अब पार्ट-टाइम राजनेता बनकर रह गये हैं, बने रहेंगे। कांग्रेस पार्टी के भीतर नया गैर गांधी अध्यक्ष चुनने की मांग इस परशेप्शन के चलते तेज होने लगी। कोरोना सक्रमंण ने लेकिन एक बार फिर से राहुल गांधी को मुख्याधारा की राजनीति में ला खड़ा किया हैं। सोनिया गांधी के नेतृत्व में जहां एक तरफ कांग्रेस मोदी सरकार का इस महामारी के दौरान परफारमेंस पर सीधे आक्रमण करती रही, राहुल गांधी ने ‘जनसंवाद’ और ‘एक्सपर्ट’ सवांद के जरिए ज्यादा बेहतर तरीके से मोदी सरकार को घेरने का काम किया है।
‘जनसंवाद’
‘जनसंवाद’ यानी इस महामारी से बुरी तरह त्रस्त मजदूर वर्ग के साथ बातचीत करने, उन्हें सहायता पहुंचने का काम किया। राहुल के जनसंवाद से तो पूरी भाजपा बौखला उठी है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय देते हुए राहुल गांधी को ड्रामेंबाज करार देना इस बौखलाहट को सामने लाता है।

उत्तर प्रदेश में इसके ठीक उलट प्रियंका गांधी का पलायन कर रहे मजदूरों के लिए बसें उपलब्ध कराना भले ही उपरी तौर पर योगी आदित्यनाथ सरकार को बैकफुट में ला दिया। कांग्रेस के लिए यह बड़ी सिरदर्दी बनता नजर आ रहा है क्योंकि बिहार, बंगाल समेत अन्य राज्यों के मजदूर पूछ रहे है कि कांग्रेस को केवल उत्तर प्रदेश के मजदूरों की पीड़ा ही क्यों हो रही है। इस राजनीतिक पैंतरेबाजी से दूर राहुल न केवल वायनाड् बल्कि अपनी पुरानी सीट अमेठी में भी सक्रिय हैं। अप्रैल महिने में टीम राहुल अमेठी में सैनीटाइजर, फेस मास्क आदि बाटते दिखी। जिससे वहां की वर्तमान सासंद स्मृति ईरानी को डिफेन्सित और राहुल के प्रति एग्रेसिव मोड में ला दिया।
एक्सपर्ट सवांद:
अपने ‘एक्सपर्ट सवांद’ के जरिए पिछले अर्से से राहुल गांधी आर्थिक और स्वास्थ विशेषज्ञों से कोरोना से उत्पन्न समस्याओं से निपटने की राजनीति पर विचार करते नजर आ रहे हैं।
Today, 10 AM onwards, watch my conversation on the #Covid19 crisis with two brilliant global health experts – Prof Ashish Jha from Harvard & Prof Johan Giesecke from the Karolinska Institute, Sweden.
Available on all my social media platforms. pic.twitter.com/ptUN2dIwd8
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 27, 2020
रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर रघुराज रामन संग उनकी बातचीत में राहुल एक जिज्ञासू और पत्रकार की भांति उनसे बातचीत करते हैं तो स्वास्थ विशेषज्ञों के साथ वे कोरोना से बचाव की बात करते नजर आते हैं।
राहुल गांधी का यह नया अवतार कांग्रेस में उत्साह का संचार कर चुका है। इन चर्चाओं ने तेजी पकड़ ली है कि राहुल गांधी एक बार फिर से कांग्रेस की कमान सभांल सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो कई मोर्चे में विफल हो रही भाजपा के लिए राहुल को पप्पू कहना आसान नहीं होगा। बिहार में इस वर्ष होने जा रहे चुनाव न केवल कांगेस बल्कि भाजपा के लिए भी लिट्मस टेस्ट समान हैं। बहुत संभावना है कि इन चुनावों में राहुल गांधी सीधे प्रधानमंत्री से मोर्चा लेते नजर आये। ऐसे में यदि विपक्ष जीतता है तो 2021 में कई राज्यों में प्रस्तावित चुनावों में भाजपा को कड़ी टक्कर के लिए तैयार रहना होगा।