कहीं सड़क पर पीटा तो कहीं घोंप दिया चाकू
बीते अगस्त के महीने में उत्तर-प्रदेश के गाजियाबाद से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया, जिसमे 4 साल से लिव इन में रह रही एक युवती ने अपने बॉयफ्रैंड को दोस्तों के साथ मिलकर उस्तरे की मदद से टुकड़े-टुकड़े कर दिया। पहले अपने बॉयफ्रेंड की बॉडी को एक दिन फ्रिज में रखा अगली रात को सूट केस में बॉडी को पैक कर रेलवे स्टेशन में फेंकने जा रही थी जिसे रंगे हाथों पुलिस कर्मियों ने पकड़ लिया। जिसके बाद लड़की पर सख्त कार्यवाही की गई।
अगस्त 2022 को मध्य प्रदेश के दमोह में पत्नी ने पति के सिर पर डंडा मारकर उसे घायल कर दिया। पूछताछ पर पत्नी ने पति पर गंभीर मार पीट के आरोप लगाए लेकिन जांच से पता चला कि उसकी पत्नी उसे रोज़ टॉर्चर किया करती थी, खाना नहीं देती है और मकान पर भी कब्जा कर उसे रोज़ मारा करती थी। वहीं एक मामला भारत की एक ग्रामीण महिला ने शराब पीने से परेशान होकर पति को कुल्हाड़ी से काट दिया। पति की हत्या करने के बाद महिला थाने पहुंची और पूरी वारदात को खुद बयान किया।
थप्पड़ों का सिलसिला बहुत समय से भारत की सड़कों पर अपना घर बनाये हुए है। दो साल पहले लखनऊ में एक लड़की ने बिना गलती के एक कैब चालक पर थप्पड़ों की बरसात करदी। बेगुनाह होने के बावजूद भी उस कैब चालक को अपनी नौकरी और सम्मान से हाथ धोना पड़ा। जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा और लड़की ने काफी समय बाद अपनी गलती मानते हुए माफ़ी मांगी।
पिछले महीने एक मामला नोएडा से सामने आया है जिसमे एक युवती की गाडी को इ-रिक्शा चालक से हल्की सी टक्कर हो जाने के चलते उसे लगातार 17 थप्पड़ मार दिए। महिला इतने आक्रोश में थी कि उसके थप्पड़ों के साथ गन्दी गालियों की भी बरसात कर दी। ये मामला जब पुलिस के सामने आया तो महिला ने अपनी गलती मानी।
भोपाल में 19 अक्टूबर की एक घटना के अनुसार मनचले से परेशान लड़की ने उसे सड़क पर पीटा। खुद पीटने के बाद भीड़ को लड़के की गलती बताते हुए खूब पिटवाया। जिसके बाद लड़के को काफी गंभीर चोटें आई। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के राजानंद गांव में 21 सितंबर को गणेश विसर्जन के दौरान एक लड़की ने लड़के को चाकू घोंप दिया। मामला कहा-सुनी का बताया गया है।
भारत में ऐसे मामले आम नागरिक के साथ नहीं बल्कि पुलिस वालों के साथ भी हो रहे हैं। हाल ही में शराब के नशे में धुत एक युवती ने पुलिस पर हाथ उठा दिया। मामला बहस से शुरू हुआ था और देखते ही देखते युवती ने पुलिस वालो पर थप्पड़ बरसाने शुरू कर दिए जिसके बाद महिला को हिरासत में लिया गया।
52% पुरुष अपने पार्टनर से खा चुके हैं मार।
मुंबई के पोद्दार वेलनेस की साइकोलॉजिस्ट अमातुल्ला लोखंडवाला का कहना है कि इंडियन साेसायटी में मातृसत्तात्मक सोच के विकास की वजह से ऐसे मामले आजकल देखने को मिल रहे हैं। समाज के हर स्तर की लड़कियां नौकरी कर रही हैं, चाहे वह किसी मल्टीनेशनल कंपनी की सफाईकर्मी हो या सीईओ। ढेरों महिलाएं परिवार का खर्च उठाने के लिए बराबर से काम कर रही हैं। कई घरों में महिलाएं ही घर का खर्च चला रही हैं। वे हर वो काम को कर रही हैं जो किसी जमाने में पुरुषों तक सीमित थे, जैसे बिजली का काम करना, बिजली बिल भरना, बच्चों का एडमिशन, बैंक संबंधी पेपरवर्क। इन वजहों से भी उनकी स्थिति मजबूत हुई है, उसकी हिम्मत बढ़ी है और उनके अंदर गलत को बर्दाश्त करने की शक्ति कम हुई है।
आमतौर पर भारतीय पुरुषों की छवि पत्नी को पीटने वाले के रूप में बनी हुई थी, लेकिन इस ट्रेंड में बदलाव दिख रहा है। अब पत्नियां भी पतियों की पिटाई कर देती हैं। साल 2019 में ‘इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 52.4% पुरुष महिलाओं की हिंसा के शिकार हुए। एक हजार पुरुषों पर हुई स्टडी में शामिल करीब 52% ने माना कि वह अपनी पत्नी या इंटीमेट पार्टनर से कम से कम एक बार तो पीट ही चुके हैं।
करीब 100 में 11 पुरुषों ने माना कि पिछले 12 महीने में एक बार उनकी भी धुनाई हो चुकी है। 98.3% महिलाओं अपने पार्टनर को पीटने के नाम पर चांटा मारा है। पुरुषों के लिए यह राहत की बात थी कि उनको पीटने के लिए केवल 3.3% मामलों में हथियारों का इस्तेमाल किया गया। यह भी पाया गया कि 60 में से करीब 7 पुरुषों को उनकी पत्नी ने बहुत बुरे तरीके से पिटाई की थी।
आखिर क्यों हाथ उठ रही हैं युवतियां
साइकोलॉजिस्ट अमानतुल्ला का कहना है कि महिलाओं को एग्रेसिव बनाने के पीछे समाज ही जिम्मेदार है। उनके साथ सदियों से होने वाली हिंसक घटनाओं ने भी उनको उग्र बनाने का काम किया है। आज वह अपनी उग्रता को हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं। भारतीय महिला सुरक्षा कानूनों ने भी महिलाओं की स्थिति को मजबूत किया है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट डॉ. निपुण सक्सेना के अनुसार, “आज ढेरों ऐसे कानून हैं जैसे दहेज उत्पीड़न, डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट जो समाज में महिलाओं की स्थिति को मजबूत बनाते हैं। इसके ठीक विपरीत पुरुषों के पक्ष में इस तरह के कानूनों की कमी है।
साइकोलॉजिस्ट यह मानते हैं कि पुरुष हो या महिला हिंसा समाज को गलत संदेश देती है। अगर किसी बहस के दौरान महिला को यह लगता है कि उसका हाथ उठ सकता है, तो वह उस गुस्से को कुछ तरीकों से काबू में कर सकती हैं। जैसे नहाकर गुस्सा शांत करना, गहरी सांस लेना , गिलास में मुंह डालकर अंदर से गुस्से को निकालना। ऐसा करने से गुस्से से बन रही निगेटिव एनर्जी निकल जाएगी, जो समाज और परिवार को हिंसक घटनाओं से दूर रखती है।