रूस – यूक्रेन युद्ध को आज एक साल पूरा हो गया है। अब तक इस युद्ध में दोनों देशों के नागरिकों ने अपने शहरों, घरों और सामान्य जीवन को पूरी तरह ध्वस्त होते देखा है। आशंका जताई जा रही है कि जिस तरफ यह युद्ध एक न्य मोड़ ले रहा है उससे तीसरा विश्व युद्ध होना लगभग तय है।
गौरतलब है कि 24 फरवरी, 2022 ये वो तारीख है जब रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था। हालांकि जब युद्ध की शुरुआत हुई थी तो इसके अंत की उम्मीद जताई जा रही थी लेकिन आज भी युद्ध जारी है। एक साल बाद भी रूस-यूक्रेन युद्ध का कोई समाधान नहीं निकल पाया है। ये एक साल यूक्रेन के लिए तबाही भरा तूफान साबित हुआ है। वैसे तो दोनों देशों को नुकसान हुआ है लेकिन अधिक नुकसान यूक्रेन के हिस्से आया जो दुनिया भर के मुल्कों के लिए खतरनाक साबित हुआ। अब तक इस युद्ध के दौरान 14 हजार से अधिक नागरिकों की मौत हो गई है । लगभग 80 लाख लोग अपने घर छोड़ने को विवश हो गए। इस युद्ध के चलते पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई है ।
रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत क्यों हुई
वर्ष 1991 में सोवियत संघ (वर्तमान रूस) के विघटित होने के बाद जब यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ तब आर्थिक और सामाजिक आदि रूप से यह काफी कमजोर था। जिसके कारण यूक्रेन ने अन्य देशों से सम्बन्ध बनाना शुरू किया। लेकिन पिछले साल जब उसने नाटो में शामिल होने का फैसला किया तो रूस उससे नाराज हो गया , क्योंकि यूक्रेन का नाटो में शामिल होना रूस के लिया खतरनाक सिद्ध हो सकता था।
यूक्रेन में काल के गाल में समाए 7 हजार लोग
आंकड़ों के अनुसार इस युद्ध में अब तक केवल यूक्रेन के 7 हजार से ज्यादा लोग काल के गाल में समां गए। बावजूद इसके अभी भी यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से आर पार के मूड में हैं। जेलेंस्की द्वारा रूस के साथ शांति समझौते को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया गया है। जिसके बाद रूस ने अब फिर नए सिरे से यूक्रेन पर हमले तेज करने के लिए नई रणनीति बनानी शुरू कर दी है। एक साल पूरा होने पर रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने रूसी संसद को संबोधित किया। गौरतलब है कि 24 फरवरी को रूसी आर्मी द्वारा यूक्रेन पर हमला कर दिया गया था। रूस ने सबसे पहले राजधानी कीव और दूसरे सबसे बड़े शहर खार्किव पर आक्रमण किया ताकि जेलेंस्की की सत्ता को गहरा झटका लगे। धीरे-धीरे रूस ने क्रीमिया पर भी कब्जा कर लिया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के मुताबिक, यूक्रेन में अब तक 7 हजार 199 नागरिकों की जान जा चुकी है। युद्ध में घायलों की संख्या 11 हजार 800 तक पहुंच चुकी है। इस युद्ध से दोनों देशों में 14 हजार से ज्यादा नागरिक मर गए हैं। हालांकि यूएनएचआरसी एजेंसी का कहना है कि मरने वालों की संख्या ज्यादा भी हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सबसे ज्यादा लोग विस्फोटक हथियारों के इस्तेमाल, रॉकेट सिस्टम, मिसाइल और हवाई हमले के शिकार होकर मारे गए हैं।
लोगों की मौत तो हुई ही साथ ही युद्ध की वजह से वैश्विक आपूर्ति को भी गहरा आघात पहुंचा है। जिससे कई देशों में महंगाई आसमान छूने लगी तो कई देशों की आर्थिक स्थिति पटरी से उतर गई। दरअसल, दुनिया में रूस तेल, प्राकृतिक गैस, गेहूं, और वनस्पति तेल का मुख्य उत्पादक है। रूस के साथ ही यूक्रेन भी वैश्विक खाद्य आपूर्ति में बड़ी भूमिका अदा करता है।
यूक्रेन ने अकेले इस लड़ाई को नहीं लड़ा है उसे सीधे तौर पर नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका-जर्मनी जैसे देशों की मदद मिलती रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका द्वारा यूक्रेन की सहायता के लिए मानवीय, सैन्य और वित्तीय क्षेत्र में अब तक करीब 50 बिलियन खर्च किए गए हैं। अमेरिका-जर्मनी के अलावा यूके और कनाडा ने भी यूक्रेन को सहयोग किया है।
युद्ध विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध के एक साल होने पर रूस यूक्रेन पर नए सिरे से हमले कर सकता है। प्रमुख सहयोगियों से मिल रहे समर्थन के बाद यूक्रेन द्वारा भी संकेत दिया जा रहा है कि वह रूस को जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार और सक्षम है। यूक्रेन द्वारा क्रीमिया सहित रूसियों को सौंपे गए सभी क्षेत्रों पर फिर से कब्जा करने का प्रण लिया गया है। फ़िलहाल इस युद्ध के कारण हजारों विवाहित महिलाएं विधवा हो गई तो कई माताओं की गोद सूनी हो गई और न जाने कितने जवानों ने कर्तव्य पालन करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी । बावजूद इसके पिछले एक साल से युद्ध अब भी जारी है। इस जंग का अंत कब होगा, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।
युद्ध में भारत की भूमिका क्या है?
भारत ने शुरू से ही तटस्थ रुख अपनाया है कि युद्ध को राजनीतिक मध्यस्थता से समझाया जाना चाहिए। रूस के साथ अपनी वर्षों की मित्रता के कारण पश्चिम के आग्रह के बावजूद भारत ने रूस का साथ नहीं छोड़ा है। इसके विपरीत, रूसी तेल भारत के लिए आवश्यक है। अमेरिका ने भी भारत की तेल की जरूरत को माना है। यूक्रेन के लिए सहानुभूति व्यक्त करते हुए, भारत रूस को सार्वजनिक रूप से यह बताने वाले कुछ सहयोगियों में से एक है कि वर्तमान युग युद्ध का नहीं है।
क्या है चीन की भूमिका?
शुरुआत में तटस्थ रुख अपनाने वाला चीन पिछले कुछ दिनों में अचानक रूस के साथ दोस्ताना व्यवहार करने लगा है। हालांकि चीन ने अभी तक उस देश को कोई हथियार नहीं दिया है, लेकिन पश्चिमी विश्लेषकों का कहना है कि वह दिन दूर नहीं है जब ऐसा भी हो जाएगा।