रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। कमजोर होता रुपया कमजोर देश को अंकित करता है इसलिए सब की निगार डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत पर रहती है। लेकिन क्या आपको पता है कि आज जिस एक डॉलर की वैल्यु 69 रुपए को पार कर चुकी है वह कभी एक रुपए के बराबर हुआ करती थी। जी हां, जब देश आजाद हुआ था तब एक डॉलर की वैल्यु भारत के एक रुपए जितनी थी।
एक रुपए से आज 69 रुपए तक पहुंचने का सफर
जब देश आजाद हुआ तो भारत के ऊपर कोई कर्ज था। इस कारण से विदेशी मुद्रा का कोई दबाव हिन्दुस्तान के ऊपर नहीं था। तब देश का एक रुपए अमेरिका के एक डॉलर के बराबर हुआ करता था। लेकिन जब भारत की सरकार ने पहली पंचवर्षीय योजना 1951 में लागू की तो सरकार को विदेशों से कर्ज लेने की नौबत आन पड़ी। देश के विकास के लिए लिया गया यह कर्ज रुपए पर भारी पड़ने लगा और यही से शुरू हुआ रुपए के लुड़कने का क्रम।
वर्ष 1975 के आते आते रुपया कमजोर होकर एक डॉलर के मुकाबले 8 रुपए तक पहुंच चुका था। इसके बाद अगले दस सालों में यह 12 रुपए तक जा पहुंचा। इसके बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भारत के द्वार खुलने का समय आया। जब 1991 में पीवी नरसिंहा राव ने उदारीकरण की नीति को अपनाया और विदेशी व्यापार के लिए देश के द्वार खोल दिए। इसके बाद तो रुपए ने मानों लुड़कने के लिए टॉप गियर लगा लिया। इन दस सालों में रुपया तीन गुना ज्यादा तेजी से गिरा और 48 के भाव तक पहुंच गया। इसके बाद भी रुपया थमा नहीं और आज 69 के भाव में पहुंच गया।
रुपया और राजनीति
गिरता उठता रुपया प्रत्यक्ष रूप से तो देश वासियों पर कोई प्रभाव नहीं डालता लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह आम जन के लिए महंगाई लेकर आता है। किन्तु सबसे बड़ा मुद्दा देश की करेंसी के साथ देशवासियों के सेंटीमेंट्स का है। वर्तमान की विदेश मंत्री ने लोकसभा में अगस्त 2013 में एक ऐसा ही बयान दिया उन्होंने अपने बयान में कहा कि ‘इस करेंसी के साथ देश की प्रतिस्ठा जुड़ी है और जैसे-जैसे करेंसी गिरती है तैसे तैसे देश की प्रतिष्ठा भी गिरती जाती है’। सुषमा स्वराज के बयान से साफ है कि रुपए को लेकर भारत में क्या सेंटिमेंट है। 2013 वो समय था जब पी चिदंबरम वित्त मंत्री थे और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। रुपया 68 के पार हो चुका था और विपक्ष इस पर प्रधानमंत्री से जवाब चाहता था क्योंकि उन्हें वित्त मंत्री के जवाब से संतुष्टि नहीं मिली थी।
अगस्त 2013 में रुपए को हथियार बनाकर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी मैदान में कूद पड़े और उन्होने बयान दिया कि दिल्ली सरकार का रुपए से कॉम्पटीशन होता दिख रहा है दोनों इस होड़ में लगे हैं कि किसकी आबरू तेजी से गिरेगी1 उन्होने रुपए की चाल की अटल जी के शासन से तुलना की और कहा कि जब अटल जी थे तो पूरे शासन काल के दौरान रुपए सिर्फ 2 रुपए ही लुढ़का था। लेकिन हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के समय में यह 60 को पार कर गया है।
अब समय का चक्र पूरी तरह घूम चुका है। अब नरेद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर जा चुका है। जिन्होंने 2013 में जम कर रुपए के गिरने पर सरकार की आलोचना की थी वो फिलहाल तो चुप है और विपक्ष पहले की तरह ही सुन्न पड़ा है।
मौजूदा सरकार ने जब सत्ता अपने हाथों मे ली थी तो डॉलर के मुकाबले रुपया 60 रूपए था। लेकिन इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ ऐसे परिवर्तन शुरू हुए जिसने वैश्विक तौर पर अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। जिसके परिणाम स्वरूप रुपया अपने 15 माह के सबसे निचले स्तर पर है और हाल फिलहाल में इसके सही होने के कोई आसार भी नहीं दिखाई दे रहे हैं।
कैसे होती है किसी राष्ट्र की मुद्रा मजबूत
विदेशी मुद्रा का रिर्जव जिस देश के पास ज्यादा होगा उस देश की करेंसी उतनी ही मजबूत होती है। विदेशी मुद्रा के आगमन का सबसे सामान्य तरीका उस देश में सामान का एक्सपोर्ट करना है। ऐसा देश जो दूसरे देश की मुद्रा का ज्यादा से ज्यादा संचय करेगा और आयात के समय उसे अपनी मुद्रा के इस्तेमाल की आवश्यक्ता नहीं होगी तो उस देश की करेंसी मजबूत मानी जाएगी।
अमेरिका के मुकाबले भारत का आयात तो अच्छा खासा है लेकिन उस मुकाबले में निर्यात नही है जिससे हर बार आयातित सामान के लिए भारत को जो पैसा देना होता है वह भारत निर्यात की हुई चीज में वापस नहीं हो पाता। इसलिए डॉलर के मुकाबले रुपया बहुत तेजी से कमजोर हो रहा है।
रुपए के गिरने के वर्तमान कारण
सबसे सामान्य कारण भारत में विदेशी करेंसी की कमी होता है। देश मे जब विदेशी मुद्रा कोश मे विदेशी मुद्रा कम होने लगती है तो देश की करेंसी पर दबाव पड़ता है और वह कमजोर होती है। आइए देखते हैं वो कारण जिससे यह स्थिति आई है:
1: तेल के बढ़ते दाम: तेल के लगातार बढ़ते दाम रुपए के कमजोर होने का सबसे पहला कारण है। भारत कच्चे तेल को दूसरे देशों से खरीदने के मामले में बस कुछ ही देशों से पीछे है। इसे इस तरह से कहा जा सकता है कि हमारा देश कच्चे तेल के बड़े इंम्पोटर्स में एक है। ऐसे में वैश्विक करेंसी होने के कारण इसकी भुगतान भारत डॉलर में करता है। महंगा तेल होने के कारण भुगतान ज्यादा करना पड़ रहा है जिसके फलस्वरूप देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम होता है और रुपया कमजोर हो जाता है।
2: शेयर बाजार में हुई जबरदस्त बिकवाली: हाल ही में शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों ने खूब जम कर बिकवाली की। इस बिकवाली के चलते निवेश की गई विदेशी मुद्रा वापस चली गई जिसने स्वत: ही रुपए को घुटनों के बल ला दिया।
3: अमेरिका में बांड्स में निवेश हुआ: अब नए नियमों के अनुसार अमेरिकी नागरिक भारत में अपने निवेश को निकालकर ले जा सकत हे और वहां जाकर इसे बॉड्स में निवेश कर सकते है।
ऐसे में मोदी सरकार के पास चुनौती है कि जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान ढूढें क्योकि रुपए की गिरती साख कहीं न कही सरकार की साख पर भी बट्टा लगा रही है।