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2050 तक भारत में भोजन की थाली से गायब हो जाएगा चावल!

सम्पूर्ण पूर्वी जगत में चावल को प्रमुख रूप से भोजन में शामिल किया जाता है। भारत में इससे कई प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं। चावल का चलन दक्षिण भारत और पूर्वी-दक्षिणी भारत में उत्तर भारत से अधिक है।

कभी-कभार चावल को ‘षड्रस’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें स्वाद के छहों प्रमुख रस मौजूद हैं। लेकिन वर्ष 2050 में आपकी थाली से ये रस गायब होने वाला है। जी हां, वर्ष 2050 में आपकी थाली से चावल गयाब होगा।

यह संभावना जताई जा रही है कि बदलते मौसम में पानी की कमी और ग्लोबल वार्मिंग के कारण अगले 30 सालों में लोगों की थाली से चावल गायब होने वाला है। भारत दुनिया के सबसे बड़े चावल उगाने वाले क्षेत्रों में से एक है। इलिनोइस विश्वविद्यालय के अमेरिकी शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह अध्ययन किया है कि साल 2050 तक चावल के उत्पादन की मात्रा में भारी कमी देखने को मिल सकती है।

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शोधकर्ताओं की एक टीम ने बताया कि अगर मृदा संरक्षण के लिए आधुनिक तकनीकी का प्रयोग नहीं किया गया और फसल के समय अपशिष्ट को सीमित करने पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में चावल का उत्पादन काफी कम हो सकता है। इस टीम द्वारा बिहार में स्थित ‘नॉर्मन बोरलॉग संस्थान’ के चावल उत्पादन केंद्र पर अपने शोध को अंजाम दिया गया है। जिसका मकसद था साल 2050 तक चावल की पैदावार और पानी की मांग का अनुमान लगाना।

प्रशांत कलिता जो की इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और इलिनोइस विश्वविद्यालय में कृषि और जैविक इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर है। उन्होंने बताया कि बदलता हुआ मौसम तापमान, वर्षा और कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता को भी प्रभावित करता है। विशेष रूप से ये चावल जैसी फसल की वृद्धि के लिए बेहद आवश्यक सामग्री हैं। यदि इन पर बुरा असर पड़ता है तो उत्पादन का प्रभावित होना पूरी तरह तय है।

प्रोफेसर कलिता के अध्ययन के आधार पर यह अनुमान जताया गया है कि अगर चावल उत्पादक किसान वर्तमान प्रथाओं के साथ अपनी खेती को जारी रखते हैं, तो उनके पौधों की उपज 2050 तक घट सकती है। हमारे मॉडलिंग के परिणाम यह बताते हैं कि फसल की वृद्धि अवस्था काफी कम होती दिख रही है। फसलों की बुआई से लेकर कटाई तक का समय अब काफी तेजी से कम होता दिख रहा है। इससे फसलें भी तेजी से परिपक्व होती दिख रही हैं। इस कारण किसानों को भी अपनी पूरी उपज का फायदा नहीं मिल पा रहा है।

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