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आरक्षण ने बढ़ाई बोम्मई सरकार की मुश्किलें

कर्नाटक विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य में 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण खत्म किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट के इस बयान से कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार को झटका लग सकता है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार का फैसला बिल्कुल गलत धारणा पर आधारित है।

”वोकालिंगा और लिंगायत के लिए दो-दो प्रतिशत आरक्षण बढ़ाने तथा मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत ओबीसी आरक्षण खत्म करने का फैसला प्रथम दृष्टया त्रुटिपूर्ण है। कर्नाटक की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई तक नई नीति के आधार पर कोई भी दाखिला या नौकरी में भर्ती नहीं की जाएगी। कोर्ट ने मामले में बोम्मई सरकार को नोटिस भेजा है। वहीं इस दौरान वोकालिंगा और लिंगायत समुदायों के सदस्यों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि उन्हें याचिकाओं पर अपना जवाब देने की अनुमति दिए बिना कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले की अगली सुनवाई अब 18 अप्रैल को होगी। खास बात यह है कि कर्नाटक में करीब 20 से 23 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जिसमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है। इन विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की आबादी करीब 13 प्रतिशत है, जो 40 सीटों पर हार और जीत का अंतर तय कर सकते हैं।
वहीं, 19 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है, जो 70 सीटों के नतीजों पर असर डालते हैं. अगर पार्टी इन क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं को ज्यादा संख्या में उतारती है तो जातीय समीकरण के चलते परिणाम उनके पक्ष में जा सकते हैं।

 

मुस्लिम उम्मीदवारों का प्रदर्शन

 

जातीय समीकरण के आधार पर देखा जाए तो कर्नाटक के इन मुस्लिम उम्मीदवारों की मांगें जायज हैं। लेकिन जेडी (एस) और कांग्रेस उनके समीकरण के तर्क को समझकर चुनावी टिकट काट सकती है। इसका फैसला तो उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद ही चल पाएगा। मगर एक नजर पिछले 5 विधानसभा चुनावों में डालें तो साल 1999 में 12, साल 2004 में 6, साल 2008 में 9, साल 2013 में 11, साल 2018 में 7 मुस्लिम उम्मीदवार विधानसभा पहुंचे हैं। साल 1978 में सबसे अधिक 17 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतने के बाद कर्नाटक विधानसभा पहुंचे थे। अगर पार्टियां इस बार के चुनाव में मुस्लिम नेताओं की बात मानकर अधिक से अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारती हैं तो साल 1978 का यह आंकड़ा भी पीछे छूट सकता है। लेकिन, पिछले 5 विधानसभा चुनाव के परिणामों को देखते हुए ये मुश्किल होता दिखाई दे रहा है।

 

मामला क्या है

 

कर्नाटक सरकार ने हाल ही में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी ) के मुसलमानों के लिए चार फीसदी कोटा समाप्त करते हुए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की दो नई श्रेणी की घोषणा की थी। ओबीसी मुसलमानों के चार फीसदी कोटे को वोकालिंगा और लिंगायत समुदायों के बीच बांट दिया गया है। यही नहीं, आरक्षण के लिए पात्र मुसलमानों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के तहत वर्गीकृत कर दिया गया है। राज्य सरकार के फैसले के बाद अब यहां आरक्षण की सीमा करीब 57 फीसदी हो गई है। बोम्मई सरकार के इस फैसले को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

गौरतलब है कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है। राज्य में 10 मई को मतदान होना है एवं 13 मई को इसके नतीजे आएंगे। राज्य में 224 सदस्यीय विधानसभा है। कर्नाटक में इस वक्त भाजपा की सरकार है। चुनाव आयोग के अनुसार, इस चुनाव में कुल पांच करोड़ 21 लाख 73 हजार 579 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इनमें 2.59 करोड़ महिला, जबकि 2.62 करोड़ पुरुष मतदाता हैं। राज्य में कुल 9.17 लाख मतदाता ऐसे होंगे, जो पहली बार वोट डालेंगे। इनकी उम्र 18 से 19 साल के बीच है। चुनावी रणभेरी बजने के साथ ही सियासी पार्टियों ने कमर कसना शुरू कर दिया है। भाजपा नेता और राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने एक बार फिर से दक्षिण राज्य की सत्ता में वापसी के लिए ताल ठोंक दी है तो वहीं कांग्रेस भी कर्नाटक की राजनीति का किंग बनने के लिए बेकरार है। भाजपा लिंगायत और अगड़ों के इतर वोकालिंगा और दलितों में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में है। पार्टी ने जीत हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और आरक्षण को हथियार बनाया है। वोकालिंगा और दलितों को साधने के लिए पार्टी ने इनके आरक्षण की सीमा बढ़ाई है, जबकि मोदी-येदियुरप्पा को पोस्टर ब्वॉय के रूप में इस्तेमाल कर रही है। पार्टी ने रणनीति बनाने की जिम्मेदारी अमित शाह को दी है।

कर्नाटक में इस वक्त आरक्षण के दो मुद्दे काफी गर्म हैं। इसमें पहला मुस्लिम आरक्षण है। बीते 27 मार्च को ही कर्नाटक की भाजपा सरकार ने मुस्लिमों को मिलने वाला 4 फीसदी आरक्षण खत्म कर दिया। सूबे में करीब 13 प्रतिशत मुस्लिमों की आबादी है। यही कारण है कि भाजपा सरकार के इस फैसले के खिलाफ सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस-जेडीयू दोनों ही एलान कर चुके हैं कि सूबे में उनकी सरकार बनती है तो वह इस आरक्षण को फिर से लागू करेंगे। आरक्षण का दूसरा मुद्दा बंजारा समुदाय से जुड़ा है। इसी महीने कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम समुदाय को मिलने वाले चार प्रतिशत आरक्षण को दो प्रमुख समुदायों, वीरशैव-लिंगायत और वोकालिंगा में बांटा। पहले वोकालिंगा समुदाय को चार फीसद आरक्षण मिलता था, इसे बढ़ाकर छह प्रतिशत कर दिया गया है। पंचमसालियों, वीरशैवों के साथ अन्य लिंगायत कैटेगरी के लिए अब सात प्रतिशत आरक्षण होगा। पहले यह पांच प्रतिशत था। राज्य का बंजारा समुदाय इसका विरोध कर रहा है। फैसला आते ही भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा के घर और दफ्तर पर इस समुदाय के लोगों ने पथराव किया।

 

लिंगायत बनाम वोकालिंगा

 

लिंगायत और वोकालिंगा कर्नाटक में आर्थिक और राजनीतिक रूप से दो प्रमुख समुदाय हैं। राज्य में लिंगायतों की आबादी अधिक है, इसके बाद वोकालिंगा है। पुराना मैसूर या दक्षिणी कर्नाटक वोकालिंगा का आधार है। वे ज्यादातर दक्षिणी क्षेत्र के किसान वर्ग से हैं। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री (कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री भी) और जनता दल (सेक्युलर) के नेता एचडी देवेगौड़ा इसी समुदाय और इसी क्षेत्र से आते हैं।
वोकालिंगा समुदाय मजबूती से जद (एस) का समर्थन करता रहा है। इस समुदाय के पास लंबे समय से उनका एक लोकप्रिय नेता है और चुनावी नतीजे स्पष्ट रूप से इस क्षेत्र में जेडीएस के मजबूत आधार का संकेत देते हैं। यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां जेडीएस को पिछले कई चुनावों में 30 प्रतिशत अधिक वोट मिले हैं और उसने महत्वपूर्ण संख्या में सीटें जीतीं। 2018 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस को दक्षिणी कर्नाटक में 38 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि राज्य में कुल वोट शेयर 18 प्रतिशत था।

 

किसकी कितनी हिस्सेदारी

 

राज्य के मतदाताओं में लिंगायत की 14 फीसदी, वोक्कालिंगा 11 फीसदी, दलित 19.5, ओबीसी 20, मुस्लिम 16, अगड़े 5, इसाई, बौद्ध और जैन की सात फीसदी भागदारी है। इनमें लिंगायत, अगड़ों, बौद्ध-जैन में भाजपा का प्रभाव ज्यादा है। ओबीसी, दलित और मुस्लिम में कांग्रेस का प्रभाव माना जाता है, जबकि वोक्कालिंगा समुदाय में जदएस की पकड़ मानी जाती है। हालांकि बीते चुनाव में भाजपा और कांग्रेस वोकालिंगा समुदाय में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी।

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