आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने पर जाट खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि सरकार ने आरक्षण की मांग पर उनकी अवहेलना की। लिहाजा अब उनका आक्रोश आंदोलन में तब्दील हो रहा है
भाजपा सरकार द्वारा सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देते ही जाट जाति में भारी आक्रोश पैदा हो गया है। आरक्षण की आग में पहले से ही जल रहे जाटों की ज्वाला भड़क सकती है। भाजपा सरकार ने अगड़ों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत का आरक्षण देकर जैसे जाटों के आरक्षण आंदोलन में आग में घी डालने का काम किया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ ही हरियाणा सहित कई राज्यों के जाट फिलहाल सत्तासीन भाजपा सरकार के खिलाफ लामबंद हो गए हैं। बहरहाल जाटों ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का बहिष्कार करने तक की तैयारी कर ली है।
पिछले हफ्ते राजधानी दिल्ली में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और मध्य प्रदेश के जाट नेताओं का जमावड़ा हुआ जिसके बाद बिरादरी के नेता कह रहे हैं कि बीजेपी नेताओं को जाट गांवों में घुसने नहीं दिया जाएगा। जाट नेताओं के मुताबिक भाजपा ने आरक्षण पर अपना वायदा पूरा नहीं किया। इसके उलट इसका इस्तेमाल दूसरे समुदायों और उनमें दूरी पैदा करने के लिए किया गया है, जैसा कि हरियाणा में साल 2016 में सामने आया। जाट आरक्षण आंदोलन से जुड़े नेता दावा कर रहे हैं कि हिंदी-पट्टी, उत्तर और पश्चिम को मिलाकर 14 सूबों में उनकी खासी आबादी है। कम से कम 130 सीटों पर किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत में समुदाय के वोटों की अहम भूमिका होती है, इस बार समुदाय इसका इस्तेमाल बीजेपी के खिलाफ करेगा। हालांकि इसके उलट बागपत में जाटों के बड़े नेता और चौधरी चरण सिंह के वारिस अजित सिंह को लोकसभा चुनावों में हराने वाले बीजेपी नेता सतपाल सिंह इन धमकियों को कुछ लोगों की सोच बताते हैं और दावा करते हैं कि अभी भी समुदाय का अधिकांश वर्ग नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यकीन रखता है और 2019 के आम चुनाव में भी बीजेपी के साथ खड़ा रहेगा। उनके अनुसार जितने जाने-माने जाट नेता हैं वो भाजपा के साथ हैं। ऑल इंडिया जाट आरक्षण बचाओ महाआंदोलन के संयोजक धर्मवीर चौधरी के अनुसार जाट खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है, उसके वोट से बीजेपी ने केंद्र और फिर उत्तर प्रदेश में कुर्सी तो हासिल कर ली लेकिन उसे उसका हक नहीं दिया गया। विधानसभा चुनावों के बाद हरियाणा में बीजेपी की जो सरकार बनी उसमें सूबे के मुख्यमंत्री पद पर लगातार बने रहने वाले जाटों ने पाया कि सबसे ऊंचे पद पर अब वो नहीं, बल्कि एक पंजाबी खत्री बैठा है। फिर आया साल 2016 का हरियाणा जाट आरक्षण आंदोलन जिसमें 20 से अधिक जाट युवक पुलिस की गोली के शिकार हो गए। इस आंदोलन में शामिल सैकड़ों युवक अभी भी जेल की हवा खा रहे हैं। इन घटनाओं के बाद जाटों का बीजेपी से मोह भंग हो चुका था। यशपाल मलिक तो सूबे में भड़की हिंसा को हुकूमत की मिलीभगत का नतीजा बताते हैं। उनके मुताबिक यह इसलिए जरूरी था क्योंकि हरियाणा में मुसलमान तो रहते नहीं हैं इसलिए दूसरे समुदाय के लोगों को बांटने का काम बीजेपी ने इस तरह से किया। जाटों की तरफ से हरियाणा में जारी भाईचारा संदेश यात्रा के संदर्भ में जो पर्चे बांटे जा रहे हैं उनमें साफ तौर पर कहा जा रहा है कि सरकार जाटों के खिलाफ दूसरे समुदायों को लामबंद कर नफरत पैदा करा कर जाट-गैर जाट की खाई खड़ी कर राजनीतिक फायदा लेना चाहती है। सवाल-जवाब की शक्ल में छापे गए पर्चे में कैप्टन अभिमन्यु का भी जिक्र है, जो खुद जाट नेता हैं और खट्टर सरकार में मंत्री भी हैं। कैप्टन अभिमन्यु के घर में 2016 आरक्षण आंदोलन के दौरान लगी आग का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इसमें कई जाट युवा जेलों में बंद हैं और उन्हें राजनीतिक फायदे के लिए नहीं छोड़ा जा रहा है। धर्मवीर चौधरी कहते हैं कि ये एक राजनीतिक आंदोलन था और इसके भीतर जो भी केस हुए थे उसे सरकार को वापस लेना चाहिए था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और आज भी जाटों के 200 से अधिक युवकों के खिलाफ कार्रवाई जारी है। उधर, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर-शामली जाट-मुस्लिम दंगों में जिन जाटों के खिलाफ पुलिस केस दर्ज हुए थे वो तमाम वायदों के बाद भी अब तक खत्म नहीं हुए हैं।
गौरतलब है कि 2009 से कई बड़े जाट आंदोलनों का सामना कर चुकी मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने ठीक आम चुनावों से पहले 4 मार्च, 2014 को जाटों को केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में ओबीसी वर्ग के भीतर आरक्षण दे दिया था। लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और अदालत ने इसे 17 मार्च, 2015 को निरस्त कर दिया। यूपीए सरकार का ये आरक्षण उन नौ सूबों के लिए लागू था जहां जाट ओबीसी सूची में शामिल हैं। साल 1998 में राजस्थान में जाटों को दिए गए आरक्षण के बाद इस समुदाय को दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, बिहार, उत्तराखण्ड और हरियाणा में भी ये हक हासिल हो चुका था। हरियाणा का मामला हालांकि फिलहाल अदालत में है। सत्तर के दशक में बने मंडल कमीशन से बाहर रह गए जाट समुदाय के लोग कहते हैं कि निजीकरण और वैश्वीकरण की वजह से सरकारी नौकरियों में कमी आई है और शैक्षणिक रूप से पिछड़े जाटों को प्राइवेट सेक्टर में नौकरी मिलना मुश्किल है इसलिए उन्हें ओबीसी कैटेगरी में रिजर्वेशन मिलना चाहिए। यशपाल मलिक कहते हैं, जिस ओबीसी लिस्ट में लागू होते वक्त 1200 जातियां शामिल थीं उसकी संख्या अब 2453 जातियों तक पहुंच गई हैं तो फिर जाटों को उस सूची से अलग क्यों रखा जा रहा है? बीजेपी के जाट नेता सतपाल सिंह के अनुसार वो खुद समुदाय को आरक्षण दिए जाने का समर्थन करते हैं। लेकिन समुदाय को ये समझना होगा कि आरक्षण से ही सब मसला हल नहीं होगा और फिर सामान्य वर्ग को मिले आरक्षण से जाटों को भी तो लाभ होगा।
‘हम गुर्जर नहीं जो चुप बैठ जाएंगे’
जाट आरक्षण संघर्ष समिति के संरक्षक यशपाल मलिक से बातचीत
केंद्र सरकार द्वारा सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने का आप समर्थन करते हैं या विरोध?
हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं। कई सालों से जाट सड़कों पर थे वह आरक्षण के लिए लड़ाई लड़ रहे थे। लेकिन केंद्र सरकार ने जाटों के साथ सौतेला व्यवहार किया है। जिनको आरक्षण की जरूरत नहीं थी उनको आरक्षण दे दिया गया है।
अब आगे जाट आरक्षण आंदोलन में क्या योजना है?
पहले तो हम बता दें कि हम गुर्जर नहीं हैं जो आरक्षण आंदोलन में 73 लोगों की मौत के बाद भी चुप बैठे हैं। हम हरगिज चुप नहीं बैठेंगे चाहे हमें कितना ही बलिदान करना पड़े।
आगे की लड़ाई अहिंसा की रहेगी या आंदोलन हिंसा का रास्ता भी अपना सकते हैं।
यह तो समय ही बताएगा। कुछ भी हो सकता है। वैसे हम पूरी कोशिश करेंगे कि यह लड़ाई अहिंसा की हो।
लोकसभा चुनाव से पहले क्या योजना है आपकी?
हम दिल्ली को घेरेंगे। भाजपा का 2019 में लोकसभा का रास्ता रोकेंगे। एक जनसंदेश यात्रा निकालकर भाजपा की कथनी और करनी में जनता को अंतर बतायेंगे। हर हाल में आरक्षण लेकर रहेंगे।