भारत बायोटेक ने ‘कोवैक्सिन’ नामक टीके का भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) के साथ मिलकर विकसित किया है। इस टीके का अगले महीने से पहले और दूसरे चरण का परीक्षण शुरू किया जाएगा।
एक बयान में कंपनी ने कहा कि टीके के विकास में आईसीएमआर और एनआईवी का सहयोग महत्वपूर्ण रहा। हालांकि, चौंकाने वाली बात यह है कि जहां किसी दवा के क्लिनिकल ट्रायल में कई महीनों से लेकर सालों तक का समय लग जाता है।
वहीं आईसीएमआर ने भारत बायोटेक की कोवैक्सिन वैक्सीन को 15 अगस्त तक तीसरे और चौथे चरण का ट्रायल पूरा करने के लिए कहा है। आईसीएमआर ने इसके लिए 12 अस्पताल भी निर्धारित किए हैं, जहां वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल होगा।
आईसीएमआर के निर्देश के मुताबिक, इन 12 अस्पतालों को ट्रायल के लिए 7 जुलाई तक मरीजों का चुनाव कर लेना है। अब तक एथिक्स कमेटी की ओर से 6 अस्पतालों में ट्रायल की मंजूरी भी मिल गई है। हालांकि, कुछ हॉस्पिटलों ने आईसीएमआर की ओर से दी गई ट्रायल की टाइमलाइन पर उसे चेताया है।
जिन 6 अस्पतालों को ट्रायल के लिए अप्रूवल मिला है, उनमें से चार-नागपुर का गिलुरकर मेडिकल हॉस्पिटल, बेलगाम का जीवन रेखा हॉस्पिटल, कानपुर का प्रखर हॉस्पिटल और गोरखपुर का राणा हॉस्पिटल एंड ट्रॉमा सेंटर हैं। यह सभी छोटे प्राइवेट अस्पताल हैं, जहां न तो रिसर्च सेंटर हैं और न ही यह किसी मेडिकल कॉलेज से ही अटैच हैं।
दिल्ली एम्स के डॉक्टर संजय राय ने कहा, “हमने चार दिन पहले एथिक्स कमेटी के पास अप्रूवल के लिए आवेदन किया था। एक बार हमें ट्रायल की मंजूरी मिल जाए, तो हम ईमेल और प्रिंट मीडिया के जरिए ट्रायल के लिए आगे आने वालों की खोज शुरू कर देंगे। लेकिन 7 जुलाई से ट्रायल के लिए मरीज खोजना नामुमकिन है।”
वहीं, ओडिशा के जाजपुर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड एसयूएम हॉस्पिटल के महामारी विशेषज्ञ डॉक्टर वेंकट राव ने बताया कि अगर किसी व्यक्ति को वैक्सीन दी जाती है, तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनने में 28 दिन लगेंगे।
वैसे तो सैद्धांतिक तौर पर यह देखा जा सकता है कि जिन पर वैक्सीन इस्तेमाल की गई है, उनमें 15 अगस्त तक एंटीबॉडी बनती हैं या नहीं, लेकिन असलियत में तब तक पुष्टि के साथ इसका डेटा मुहैया कराना असंभव होगा।
वैक्सीन के लिए एथिक्स कमेटी की मंजूरी में भी समय लगता है। वहीं मरीजों के चुनाव और एनरोलमेंट का काम भी समय लेने वाला है। वैक्सीन के सार्वजनिक इस्तेमाल को मंजूरी देने में एक साल का समय लग सकता है।