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खतरे में खबरनवीस

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों की हत्या दुनिया में चिंता का विषय बन गई है। संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को ने इस मामले में एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार दुनियाभर में मीडिया की आजादी का सिमटना खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।

‘बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे’ इन पंक्तियों को लिखने के बाद फैज साहब दुनिया को अलविदा कह गए। लेकिन आज इन पंक्तियों के लिहाज से एक खेमे को तो स्वतंत्रता है मगर दूसरे खेमे को लब की आजादी के नाम पर इतनी दफे मौत का डर दिखाया जा रहा है कि उनकी नजरों में इन पंक्तियों का कोई अस्तित्व ही शेष नहीं रह गया है। पत्रकारिता को सत्ता और प्रशासन का वाचडाग कहा जाता है, लेकिन पत्रकारिता को ही सत्ता से खतरा महसूस होने लगे तो इससे दुनिया भर में निरंकुशता का राज आ जाएगा। आपको याद होगा 5 सितंबर 2017 का वह दिन जब निर्भीक पत्रकारिता की मिसाल गौरी लंकेश को उनके घर के बाहर गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया गया था। ऐसी कई घटनाओं ने दुनिया में पत्रकारों को डर के साए में रहने को विवश कर दिया है। ऐसा केवल कुछ देशों तक सीमित नहीं है बल्कि दुनिया भर के देशों में स्वतंत्र पत्रकारिता के अस्तित्व पर भयंकर खतरा मंडरा रहा है।

गौरतलब है कि बिना स्वतंत्र मीडिया के स्वस्थ लोकतंत्र होने की कामना करना बेहद मुश्किल है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों में पत्रकारों के लिए बिना किसी बाधा और डर के काम कर पाना लगातार बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। दुनिया भर में निर्भीक पत्रकारिता करना खतरों से भरा हुआ है। जिसके चलते पत्रकारों की जान भी चली जाती है। पत्रकारों को जितना सत्ता माफियाओं से खतरा है उतना ही प्रभुत्वशाली बाहुबलियों के अंधभक्तों से भी खतरा है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में मीडिया की आजादी का सिमटना खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।
दुनिया भर में अपने पेशे को निभाते हुए पत्रकारों की हत्या के ज्यादातर मामलों में अपराधियों को सजा नहीं मिलती है। संयुक्त राष्ट्र सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) जिसके कामकाज में मीडिया मुद्दे भी शामिल हैं। उसने कहा कि पत्रकारों की हत्या के मामलों में सिर्फ 14 प्रतिशत ही अंतिम निर्णय तक पहुंचे हैं। मतलब यह है कि 86 प्रतिशत मामलों में आज तक सजा ही नहीं हुई है। यूनेस्को की इस रिपोर्ट ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के खोखलेपन को उजागर कर दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करने होंगे, ताकि पत्रकारों के खिलाफ किए गए अपराधों की उचित जांच की जाए और उनके अपराधियों की पहचान कर उन्हें सजा दी  जाए।’
दरअसल, पत्रकारों की हत्या ऐसे स्तर पर पहुंच चुकी है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा है। यूनेस्को के महानिदेशक आड्रे अजोले ने एक बयान में कहा ‘अभिव्यक्ति की रक्षा तब तक नहीं की जा सकती है जब-तक इतनी बड़ी संख्या में अनसुलझे मामलों को सुलझाया नहीं जाता। इससे पत्रकारों की रिपोर्टिंग पर गहरा असर पड़ा है। वर्ष 2006 से 20 के बीच 1 हजार 200 से अधिक पत्रकारों को समाचारों की रिपोर्टिंग के दौरान मार दिया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में वर्ष 2020 और 2021 में 955 पत्रकारों की हत्या हुई इसमें से 117 पत्रकारों की हत्या केवल उनके लेखन के कारण की गई थी, वहीं 91 ऐसे पत्रकार थे जिन्हें ऑफ द क्लॉक मारा गया। (जो पत्रकार ड्यूटी पर नहीं थे) रिपोर्ट के अनुसार पत्रकारों के साथ उनके बच्चों और परिवार के सदस्यों के सामने कई पत्रकारों की हत्या के मामले भी सामने आए हैं। यूनेस्को के अनुसार, दस में से नौ मामलों में हत्यारों को सजा नहीं होती है। पिछले दो वर्षों में यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों में (45 हत्याएं) और एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों में (38 हत्याएं) देखी गई। इन देशों में हत्याओं की सबसे ज्यादा संख्या दर्ज की गई है।
यूनेस्को ने कहा कि वह राष्ट्रीय मीडिया कानूनों और नीतियों को विकसित करने और लागू करने के लिए सदस्य देशों के साथ तेजी से काम कर रही है। फिलहाल यूनेस्को द्वारा पत्रकारों के खिलाफ हमलों की जांच और मुकदमा पर न्यायाधीशों, अभियोजकों और सुरक्षाबलों को पत्रकारों के अधिकारों को लागू करने और उन्हें सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
वहीं, संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने भी पत्रकारों पर बढ़ते हमले पर चिंता व्यक्त कर  कहा कि दुनियाभर में साल 2022 में 70 से अधिक पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया गया। वर्तमान में एक रिकाॅर्ड संख्या में मीडियाकर्मी जेलों में बंद हैं। पत्रकारों को हिरासत में लेने और जान से मारने की धमकी जैसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में मीडियाकर्मियों की सुरक्षा, वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बनता जा रहा है। महिला पत्रकारों के लिए तो हालात और भी कठिन हैं।
वर्ष 2021 में महिला पत्रकारों की हत्या का प्रतिशत दोगुना हो गया, जो पिछले वर्ष 6 फीसदी था अब वह बढ़कर 11 फीसदी हो गया है। 30 सितंबर 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार अब तक 11 फीसदी  हत्याएं महिला पत्रकारों की हुई है। जबकि यूनेस्को के अलावा दुनिया के सबसे बड़े पत्रकार संगठन ‘इंटरनेशनल फेडरेशन आॅफ जर्नलिस्ट्स’ (आईएफजे) ने भी इस मामले में अपनी रिपोर्ट जारी की है। उस रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में कुल 45 मीडियाकर्मियों की काम के दौरान हत्या कर दी गई।

सदफ नईम की हत्या हुई या मौत?

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के लाॅन्ग मार्च (30 अक्टूबर 2022) में कंटेनर से कुचलकर एक महिला पत्रकार की मौत हो गई। जिसके बाद उनकी मौत को लेकर कहा जा रहा है कि उन्हें धक्का दिया गया। इससे सवाल उठ रहा है कि यह कहीं हत्या तो नहीं। जान गंवाने वाली सदफ नईम पाकिस्तान के एक निजी चैनल 5 की रिपोर्टर थीं। वे इस लाॅन्ग मार्च को कवर कर रही थीं। उन्होंने एक दिन पहले ही इमरान का इंटरव्यू भी लिया था। इमरान-शहबाज शरीफ सरकार से इस्तीफे की मांग को लेकर लाॅन्ग मार्च पर लाहौर से इस्लामाबाद तक लाॅन्ग मार्च निकाल रहे हैं। फिलहाल इमरान खान ने इस घटना के बाद रैली को रोकने का एलान कर दिया है। खबरों के मुताबिक सदफ इमरान के कंटेनर पर ही सवार थीं। इसी दौरान वहां मौजूद लोगों में से किसी ने उन्हें धक्का दे दिया, सदफ कंटेनर से नीच गिर गईं। कंटेनर का पहिया उनकी गर्दन के ऊपर से निकल गया। सदफ की मौके पर ही मौत हो गई।

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