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सरकारी विज्ञापन में नेहरू का नाम हटाने से बबाल 

भारत की स्वतंत्रता में बड़ा योगदान देने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू जी को आज कौन नहीं जानता। हमारी बचपन से लेकर कॉलिज तक की किताबों में महात्मा गाँधी और चाचा नेहरू के बारे में बताया गया है। लेकिन इस दौर की चल रही सामाजिक सोच का प्रतिष्ठान बदलने के कारण आज उनके  सहयोग पर लोग उंगलियां उठा रहे हैं। ये रूढ़िवादी सोच अनपढ़ नहीं बल्कि पढ़े लिखे समाज के एक पक्ष से सामने आ रही हैं। ऐसा ही एक वाक्य  कर्नाटक में सामने आया है। भारत के 75 वर्ष के स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए कर्नाटक सरकार द्वारा निकाले गए विज्ञापन से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम हटाकर सावरकर की फोटो नाम सहित लगाई गई, जिसको लेकर विवाद शुरू हो गया है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सांसद जयराम रमेश ने कर्नाटक की भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘नेहरू इस तंगदिली को भी झेल जाएंगे।’ कर्नाटक सरकार के विज्ञापन में महात्मा गांधी, मौलाना आजाद, सुभाष चंद्र बोस समेत अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को शामिल किया गया है लेकिन नेहरू के नाम को छांट दिया गया। कांग्रेस के अन्य कई नेताओं ने भी कर्नाटक सरकार के इस विज्ञापन पर विरोध जताया, जो कि कई अखबारों में छपा है। गौरतलब है कि नेहरू के नाम को तो हटाया ही गया है वहीं सावरकर को शामिल कर ‘क्रांतिकारी सावरकर’ लिखा गया है।

विज्ञापन में लिखा है, ‘विनायक दामोदर सावरकर की कई किताबों में क्रांति के माध्यम से संपूर्ण आज़ादी की बात कही गई है। वे अंडमान निकोबार की जेल में रहे जहां उन्हें उत्पीड़न झेलना पड़ा।’ 
सरकार का बचाव करते हुए भाजपा नेता मोहन कृष्णा ने कहा, ‘उनकी तस्वीर महात्मा गांधी, रानी लक्ष्मी बाई और अन्य नेताओं के साथ स्केच रूप में है। विपक्ष लोगों को ऐसी चीज दिखाने की कोशिश कर रहा है जो कि सच नहीं है।’

 
दरअसल, समाज में एक धारणा चल रही है जिसके तहत आज़ादी को भी दो पक्षों में बाट दिया गया है। हालांकि स्वतंत्रता पाने की कोशिश में किसी का धर्म,जाट-पात, ऊंच-नीच, नहीं देखी गई थी। लेकिन आज जब आज़ादी को 75  साल बीत चुके हैं तो लोग स्वतंत्रता दिलाने में सहयोग देने वालों को एक पक्षी और द्वि-पक्षी बता रहे हैं। स्वतंत्रता के समय नेहरू जी का विशेष समुदाय के प्रति संवेदना आज के लोगों को खल रही है। जिसके लिए उन्हें आज़ादी के समय कम महत्वपूर्ण नहीं माना जा रहा है जिसकी वजह से अब यह एक विवाद का मुद्दा बनता जा रहा है। 
 
आज सोशल मीडिया पर फैलाये जा रहे है अफवाहों के सांप्रदायिक प्रचार-तंत्र के द्वारा झूठ को सच बनाने का काम किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर दिखाए और बताये जा रहे नेहरू की छवि खराब करने की कोशिश की जा रही हैं । अफवाह फैलाई जा रही की  नेहरू औरतों का बेहद शौकीन कामुक व्यक्ति था। जिसने एडविना माउंटबेटन के प्यार में पड़कर भारत के भविष्य को अंग्रेजों के हाथों गिरवीं रख दिया। यहां तक यह भी नेहरू की मौत इन्हीं वजहों से यानी एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज) से हुई थी।  इस तरह की बेबुनियादी अफवाहों ने सच पर पर्दा दाल दिया है।

नेहरू गांधी की कृपा से प्रधानमंत्री बने वरना सरदार पटेल आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री होते. यह ऐसा आरोप है जिसका कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है। इसी तरह की बहुत सारी अफवाह  सोशल मीडिया पर आग की तरह फेल रही हैं। इनका असर व्यक्ति के मस्तिष्क पर चढ़ता जा रहा है। जिसके कारण वह धारणाओं को सच मानकर गलत मानसिकता का शिकार हो रहा है। इन्ही कारणों से समाज के इस रूप को तेज़ी से उभरता हुआ देखा जा सकता है। 

कर्नाटक सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग द्वारा हर घर तिरंगा अभियान के तहत पूरे पन्ने का विज्ञापन निकाला गया है। विज्ञापन में लिखा गया है, ‘भारत की आजादी का इतिहास लाखों भारतीयों के बलिदानों से भरा है। आज जब हम भारत का 75  वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं तो हमें उन्हें याद करना चाहिए। ’बता दें कि 2 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों से अपील की थी कि वे डिस्पले पिक्चर में तिरंगा लगाएं. इसके जवाब में कांग्रेस और उसके कई नेताओं ने जवाहरलाल नेहरू के हाथों में तिरंगे वाली तस्वीर को अपनी डिस्पले पिक्चर में लगाया। जिसका जवाब देते हुए भी भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है। 
 
 

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