उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान होते ही राजनीतिक पार्टियों में आरोप-प्रत्यारोप और दल-बदल का खेल चरम पर है। इसमें सभी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हैं।लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश की हो रही है। सबकी निगाहें भी उत्तर प्रदेश पर ही टिकी हुई हैं।
उत्तर प्रदेश में भाजपा छोड़ रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी सहित अन्य विधायक भी खुलेआम बोल रहे हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह, महामंत्री संगठन सुनील बंसल के सामने कई बार अपनी पीड़ा रखी, लेकिन किसी ने समाधान नहीं किया। ऐसे में में अपने विधायकों के बगावती सुरों को नजरअंदाज करना भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन गया है। चुनाव के बीच मंत्रियों व विधायकों के पार्टी छोड़कर जाने से सरकार और संगठन में बैठे जिम्मेदार लोगों के संगठन पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।
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दरअसल , दो साल पहले 18 दिसंबर, 2019 को गाजियाबाद के लोनी से भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर के उत्पीड़न का मुद्दा विधानसभा में उठा था। इसको सदन में सरकार की ओर से नजरअंदाज करने का प्रयास होता देख भाजपा के 200 से अधिक विधायकों ने अपनी ही सरकार व संगठन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
तब सरकार और संगठन ने जैसे-तैसे हालात को नियंत्रित कर लिया था , लेकिन उसके बाद इसकी गहराई में जाने की जगह सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया गया।
हालांकि दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह सहित अन्य शीर्ष नेताओं तक शिकायतें पहुंची। लेकिन वहां से भी केवल आश्वासन मिला। मंत्रियों व विधायकों की नाराजगी दूर न होने से उनके अंदर का असंतोष धीरे-धीरे बढ़ता हुआ अब बगावत के रूप में बाहर आया है। पार्टी के नेता भी दबी आवाज में कहते हैं कि बगावती सुरों को नजरअंदाज करना भाजपा को महंगा साबित हो रहा है।