देश में सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी के इससे ज्यादा दुर्दिन और क्या हो सकते हैं कि विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियां उसे अपनी शर्तों पर गठबंधन में शामिल करना चाहती हैं। उसे अहसास करा रही हैं कि उसका कद बहुत बौना है। बिहार विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन का खामियाजा कांग्रेस को पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ रहा है। राज्यों में सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस पर दबाव बढ़ गया है। अब तक गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस को क्षेत्रीय दल पिछले विधानसभा चुनाव से भी कम सीटें आफर कर रहे हैं। यही वजह है कि अभी तक तमिलनाडु में डीएमके के साथ सीट बंटवारा नहीं हो पाया है।
तमिलनाडु में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है। वर्ष 2011 के चुनाव में कांग्रेस 63 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और पांच सीटें ही जीती थीं। इसका असर यह हुआ कि वर्ष 2016 के चुनाव में डीएमके ने कांग्रेस को 22 सीटें कम यानी 41 सीटें दीं, पर कांग्रेस इस बार भी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई और सिर्फ आठ सीटें जीती। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी डीएमके के साथ 8 सीटें जीतने में सफल रही।
डीएमके ने की 18 सीटों की पेशकश
प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि डीएमके ने 18 सीटें आफर की हैं। इतनी कम सीटें पार्टी को मंजूर नहीं हैं। पार्टी की कोशिश है कि 2016 के चुनाव के बराबर सीटें मिलें, पर गठबंधन का धर्म निभाते हुए कुछ कम सीट पर भी विचार कर सकती है। डीएमके को सीटों की संख्या कम से कम 25 से ज्यादा करनी होगी। पुडुचेरी में भी डीएमके इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है।
बंगाल में 92 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा
पश्चिम बंगाल में तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस लेफ्ट के साथ गठबंधन में पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटें नहीं ले पाई। जबकि वर्ष 2016 के विधानसभा और पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन लेफ्ट के मुकाबले बहुत बेहतर था। कांग्रेस को गठबंधन में ज्यादा सीट की उम्मीद थी, पर आखिरकार पार्टी को 92 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। क्योंकि, वाममोर्चा इससे ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं था।
दक्षिण में सिमटती भूमिका
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि केरल को छोड़कर दक्षिण में पार्टी की भूमिका लगातार सिमटती जा रही है। आंध्र प्रदेश में पार्टी का कोई विधायक नहीं है। तेलंगाना में सिर्फ 19 विधायक हैं। कर्नाटक में भी जनाधार सिमट रहा है। पार्टी के पास सिर्फ केरल बचा है। केरल में पार्टी को इस बार पिछले चुनाव से कुछ ज्यादा सीटें मिली है। पर कांग्रेस इस बार सत्ता में वापसी में नाकाम रहती है, तो केरल में भी पार्टी का कद कम हो जाएगा।