हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की सक्रियता तेज हो चली है। यहां आम आदमी पार्टी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है जबकि बीजेपी को सरकार बचानी है तो वहीं कांग्रेस के सामने चुनौती 5 साल बाद सत्ता वापस पाने की है। इस चुनाव में उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा चुनौती अपने ही लोगों से मिल रही है। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में बगावत ज्यादा सामने आ रही है। आम आदमी पार्टी यहां पहली बार चुनाव लड़ रही है लेकिन वह एग्रेसिव नजर नहीं आ रही है
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव का एलान होने के बाद राजनीतिक पार्टियों ने कमर कसनी शुरू कर दी है। इस बार बीजेपी सत्ता परिवर्तन का इतिहास बदलने के लिए मैदान में है तो कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए हाथ पैर मार रही है तो वहीं तमाम क्षेत्रीय दल भी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें आम आदमी पार्टी से लेकर बसपा और लेफ्ट पार्टियां तक शामिल हैं। हालांकि हिमाचल की परिस्थितियां भौगोलिक रूप से ही नहीं बल्कि चुनावी नजरिए से भी क्षेत्रीय दलों के लिए आसान नहीं रही हैं। कांग्रेस और बीजेपी को छोड़कर कोई भी क्षेत्रीय दल हिमाचल के पहाड़ पर अभी तक नहीं चढ़ सका है।
पहाड़ी राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरो पर हैं। खास बात है कि यहां बीते तीन दशकों में सत्ता कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच बार-बार बदलती रही है, लेकिन इस बार मुकाबला बेहद अलग है। क्योंकि आम आदमी पार्टी की एंट्री से चुनावी मैदान त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है। हालांकि आम आदमी पार्टी ज्यादा एग्रेसिव होती नजर नहीं आ रही है। सभी दल अपने-अपने स्तर पर चुनौतियों का भी सामना कर रहे हैं। राज्य में 12 नवंबर को वोटिंग होगी। इस दिन सूबे की 68 सीटों के लिए 561 उम्मीदवार मैदान में अपनी किस्मत आजमाएंगे। प्रदेश में तीन बड़ी पार्टियों बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर से सभी 68 सीटों पर अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए गए हैं।
एक तरफ बीजेपी उम्मीदवारों की सूची जारी होते ही पार्टी में बगावत का दौर शुरू हो गया है तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के अंदर भी बगावत के सुर सुनाई दे रहे हैं। जिसके चलते कांग्रेस और बीजेपी दोनों की हिमाचल विजय के रास्ते में अपनी पार्टी के ही नेता रोड़ा बन रहे हैं। दरअसल, हिमाचल प्रदेश उन चंद राज्यों में से है जहां हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है। यहां जीतने वाली पार्टी के बीच का अंतर कुछ वोटों का ही होता है। ऐसे में इन दो बड़ी पार्टियों के बागी नेता अब इन पार्टियों के लिए किसी सरदर्द से कम नहीं हैं।
बीजेपी का सिरदर्द बागी नेता
प्रदेश की करीब 18 सीटों पर बीजेपी को अपने ही नेताओं की बगावत का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे ही हालात कांग्रेस के भी हैं। उसे भी करीब 10 सीटों पर अपनों से ही चुनौती मिल रही है। टिकट चाहने वाले उम्मीदवारों को जब पार्टी द्वारा टिकट नहीं दिए गए तो वह सब निर्दलीय के रूप में चुनाव में उतर गए हैं। विधायकों के इस कदम ने बीजेपी की सत्ता में वापसी की राह को और कठिन कर दिया है। वर्तमान में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां बागी नेताओं को मनाने और उनकी दिक्कतों को सुलझाने में लगी हैं ताकि वे चुनावी नुकसान से बच सकें।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी के बगावती तेवर अख्तियार किए नेताओं को शांत कराने की जिम्मेदारी प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर, पार्टी के चुनाव प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह, बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे, प्रदेश पार्टी अध्यक्ष सुरेश कश्यप, पार्टी प्रभारी अविनाश राय खन्ना और उपमुख्यमंत्री संजय टंडन को सौंपी है।
बगावत, बगावत और बगावत
बीजेपी में चल रही बगावत की एक वजह उम्मीदवारों की सूची में मंत्रियों की विधानसभा सीटों को बदलना भी है। दरअसल, पार्टी ने सुरेश भारद्वाज समेत दो वरिष्ठ मंत्रियों की विधानसभा सीटों में बदलाव किया। शिमला शहर से चार बार विधायक रहे भारद्वाज के स्थान पर चायवाला प्रत्याशी संजय सूद को टिकट दिया जबकि सुम्पटी से भारद्वाज को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, पार्टी के 11 मौजूदा विधायक ऐसे हैं जिन्हें टिकट नहीं दिया गया। इसके अलावा बीजेपी ने सबसे पहले चंबा विधानसभा सीट से इंदिरा कपूर को टिकट दिया। इंदिरा को टिकट दिए जाने के विरोध में उस सीट के मौजूदा विधायक पवन नैय्यर ने इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए ‘रोष रैली’ निकाली। इस रैली के बाद बीजेपी ने एक बार फिर अपना फैसला बदला और नैय्यर की पत्नी नीलम को मैदान में उतारा। पार्टी के इस फैसले के बाद इंदिरा कपूर और उनके समर्थकों ने पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी। उन्होंने ‘आक्रोश रैली’ निकाली। हालांकि पिछले महीने बीजेपी में शामिल हुए हर्ष महाजन ने इंदिरा कपूर से मुलाकात कर उन्हें शांत कराने का प्रयास किया है।
महेश्वर सिंह का टिकट काटकर नरोत्तम ठाकुर को कुल्लू सदर सीट से उम्मीदवार बनाया गया था। पार्टी के इस फैसले से नाराज महेश्वर सिंह और उनके बेटे हितेश्वर सिंह निर्दलीय मैदान में कूद गए हैं। भाजपा के एक अन्य नेता राम सिंह ने भी कुल्लू सदर से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल किया है। वहीं एसटी मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष विपिन नैहरिया ने भी नाराजगी जताते हुए पार्टी छोड़ दी। टिकट न मिलने पर अनिल चौधरी ने भी पार्टी छोड़ दी। अब ये दोनों नेता निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर चुके हैं।
मुख्यमंत्री के जिले में भी बगावत
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जनपद कांगड़ा में भी बगावत चल रही है। वर्तमान में कांगड़ा की 10 विधानसभा सीटों पर बीजेपी को अपने ही नेताओं के बागी तेवर का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा नूरपुर से विधायक और कैबिनेट मंत्री राकेश पठानिया को फतेहपुर सीट भेजा है, लेकिन यहां से पूर्व प्रत्याशी कृपाल परमार बागी हो गए हैं और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे। इंदौरा विधानसभा सीट से विधायक रीता धीमान को फिर से टिकट मिला है, लेकिन यहां उन्हें टक्कर देने के लिए एक बार फिर पूर्व विधायक मनोहर धीमान निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं।
जवाली सीट पर पार्टी द्वारा अर्जुन सिंह का टिकट काटा गया है और संजय गुलेरिया को प्रत्याशी बनाया गया है, लेकिन समर्थकों के दबाव के कारण अब अर्जुन सिंह भी चुनाव मैदान में आ गए हैं। वहीं पार्टी ने धर्मशाला में विशाल नेहरिया की जगह राकेश चौधरी को टिकट दिया है, जिससे नाराज होकर विशाल नेहरिया बागी हो गए हैं। इस बगावत के बीच निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मंडी सदर के बीजेपी नेता प्रवीण शर्मा चुनावी मैदान में हैं। वह पार्टी के मीडिया प्रभारी रह चुके थे। ऐसे ही नालागढ़ के विधायक केएल ठाकुर और हमीरपुर जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष नरेश दरजी भी हैं।
कांग्रेस में नेतृत्व का संकट
छह बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में नेतृत्व संकट का सामना कर रही है। हालांकि पार्टी ने उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन कहा जा रहा है कि इससे भी पार्टी को ज्यादा फायदा नहीं हुआ है। साथ ही आंतरिक विवादों के चलते भी कांग्रेस मुश्किलों से घिरी हुई है।
हिमाचल में सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस जमकर प्रचार कर रही है। लेकिन पार्टी के अंदर चल रही आपसी कलह को देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि कांग्रेस के लिए उसके ही नेता चुनौती बन गए हैं। रामपुर में कांग्रेस के कौल नेगी को उम्मीदवार बनाने से नाराज पार्षद विशेषकर लाल बागी हो गए हैं। इसके अलावा चौपाल सीट से दो बार के कांग्रेस विधायक डॉ सुभाष मंगलेट ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है। ठियोग सीट से विजय पाल खाची और इंदू वर्मा को पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। सुलह सीट पर पूर्व विधायक जगजीवन पाल ने बगावत कर दी है। पच्छाद में भी भाजपा ने पूर्व नेता दयाल प्यारी को टिकट दिया है, जिससे पूर्व विधायक गंगू राम मुसाफिर नाराज हो गए हैं। वहीं चिंतापूर्णी विधानसभा में बागी, पार्टी के लिए सर दर्द बन गए हैं।
आम आदमी पार्टी बिगाड़ न दे खेल
राज्य में अब मतदान में करीब दो सप्ताह से भी कम का समय शेष है। ऐसे में जहां कांग्रेस और बीजेपी अपनी-अपनी पार्टी के अंदर के रहस्य को सुलझाने में लगी हुई है, वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इन दोनों पार्टियों के मौजूदा हालात का फायदा आम आदमी पार्टी को मिल सकता है। हालांकि आम आदमी पार्टी इस चुनाव में पूरे आक्रामक तेवर अपनाती नहीं दिख रही है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि ‘आप’ को पंजाब की जीत का मनोवैज्ञानिक फायदा हिमाचल में भी मिल सकता है।