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दिल्ली एमसीडी चुनाव में बागी बिगाड़ेंगे खेल

दिल्ली नगर निगम चुनाव जैसे -जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे – वैसे सभी दलों की सक्रियता बढ़ती जा रही है। लेकिन कई नेताओं ने टिकट न मिलने से निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए नामांकन किया है वहीं कुछ पार्षदों दल – बदल कर चुनाव लड़ रहे हैं। दरअसल ,भाजपा और कांग्रेस से कई नेताओं तो ने पार्टी छोड़ आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं तो कई निर्दलीय चुनाव लड़ने की ताल थोक चुके हैं। ऐसे में कहा जा रहा हैं कि बागी प्रत्यासी खेल बिगाड़ सकते हैं।

इस बार दिल्ली नगर निगम के सभी 250 सीटों पर 4 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे,जबकि 14 नवंबर नामांकन पत्र फाइल करने की लास्ट डेट के बाद अब नामांकन पत्रों की जांच हो चुकी है। इसके बाद से सभी दलों के उम्मीदवार अपने-अपने प्रचार- प्रसार में लग गए हैं। इस चुनावी रणभूमि में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में है, लेकिन बहुजन समाज पार्टी,आजाद समाज पार्टी और ए ‘आईएमआईएम’ की भागीदारी ने मुकाबले को रोचक बना दिया है।

पिछले दो दशक से दिल्ली नगर निगम पर राज करने वाली भाजपा फिर से सत्ता पर काबिज होना चाहती है लेकिन टिकट बंटवारे के बाद पार्टी भीतर अंतर्कलह से उसे संघर्ष का सामना करना पड़ेगा। राजनीतिक पार्टियों के बागी नेता बड़ी संख्या में निर्दलीय चुनावी मैदान मे उतरे हैं,जो पार्टियों के राजनीतिक समीकरणों को बिगाड़ सकती है। आम आदमी पार्टी ने तो अपने कार्यकर्ताओं से अधिक दूसरे दलों से आए प्रत्याशियों पर भरोसा दिखाया है। जिसके बाद पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखने को मिल रही है। नाराज कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पार्टी ने पैसे लेकर टिकट वितरण किया है। ‘आप’ के एक विधायक के पीए को पैसा लेकर टिकट बेचने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया है।भाजपा में भी बगावत थम नहीं रही है। मुंडका वार्ड के तो पूरे मंडल ने ही अपना सामूहिक इस्तीफा दे दिया है। इसका साफ सन्देश यह है कि जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार अन्य को दिया टिकट गया है। वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन वार्ड में नामांकन भी रद्द हुए हैं उनमें झरोडा (वार्ड नंबर 10) सुरेंदर सिंह, देव नगर (वार्ड नंबर 84) सुशीला मदन खोरवाल और लाजपत नगर (वार्ड नंबर 144) बाला सुब्रमण्यम के नाम शामिल हैं।

इस हिसाब से चुनाव परिणाम आने तक यह चुनाव रोमांचक बना रहेगा। क्योंकि तीनों निगम के एकीकरण के बाद निगम की सत्ता काफी अहम हो गई ,एक तरीके से दिल्ली के मेयर की शक्ति दिल्ली के मुख्यमंत्री के समान ही है। इसलिए सभी दल किसी भी हाल में ये चुनाव जीतना चाहते हैं।

पिछले नगर निगम चुनाव यानी साल 2017 के चुनाव में भाजपा ने 272 वार्डों में से 181 में जीत हासिल की थी, आम आदमी पार्टी ने 48,कांग्रेस ने 30 और अन्य 13 सीट जीतने में सफल रहे थे। वहीं 2012 के नगर निगम चुनाव में भाजपा ने 138, कांग्रेस ने 77 और अन्य ने 57 सीटें जीती थीं।हालांकि उस समय निगम की सत्ता तीन भागों उत्तर, दक्षिण और पूर्व में बंटी थी। जिनमें क्रमश: 104-104 और 64 वार्ड थे। पहले दिल्ली में एक ही नगर निगम था, लेकिन 2011 में इसे तीन भागों में बांटकर दक्षिण, पूर्वी और उत्तरी दिल्ली नगर निगम का गठन किया गया। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सरकार का तर्क था कि दिल्ली काफी फैल चुकी है। ऐसे में एक ही नगर निगम के बजाय अगर उसे विभाजित कर दिया जाए तो स्थानीय स्तर पर बेहतर कामकाज होगा। हालांकि अब भाजपा ने एक बार फिर तीनों नगर निगमों का एकीकरण कर 250 वार्ड कर दिए हैं। यानी 22 वॉर्ड घटा दिए गए। फिलहाल दिल्ली में 70 विधानसभा सीटें हैं, लेकिन, एमसीडी के चुनाव सिर्फ 68 विधानसभा सीटों पर होने हैं, क्योंकि दिल्ली कैंट और नई दिल्ली विधानसभा नगर निगम के दायरे में नहीं आती है।

भाजपा को फिर से वापसी की उम्मीद

 

भाजपा ने 2007 से ही नगर निगम पर अपनी सत्ता कायम की हुई है। जबकि इस दौरान केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक में फेरबदल हुए लेकिन उसकी निगम की सत्ता को कोई हिला नहीं सका है। 15 साल से अपने अभेद किले को बचाने के लिए बीजेपी एक बार फिर मैदान में है। उसके नेताओं का कहना है कि उनको हर बार की तरह इस बार भी जनता से सीधे जुड़े होने का फायदा होगा और बेहतर आकड़ों से निगम की सत्ता हासिल करेंगे। बीजेपी ये स्थानीय चुनाव भी मोदी और राम मंदिर के सहारे लड़ रही है। उसके स्थानीय नेता निगम के अपने रिपोर्ट कार्ड की जगह नरेंद्र मोदी और राम के नाम पर वोट मांग रहे हैं। दिल्ली भाजपा को जहां अपने मजबूत जमीनी संगठन पर भरोसा है वहीं उन्हें केजरीवाल सरकार को शराब नीति पर भी घेरने का मौका मिल गया है,लेकिन इसके बावजूद भाजपा को सत्ता विरोधी लहर और बागियों का सामना करना पड़ रहा है। टिकट बँटवारे के बाद से पार्टी में लगातार विद्रोह दिख रहा है। कई इलाक़ों में पार्टी के बागी नेता निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं।

दिल्ली के मुंडका मंडल के अध्यक्ष सभी पदाधिकारियों ने सामूहिक इस्तीफा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भेज दिया था। उन्होंने राज्य नेतृत्व पर लेन-देन कर टिकट देने का आरोप लगाया है। इसके आलवा गुटबाजी के कारण उन्हें 9 घोषित उम्मीदवार बदलने पड़े। इसके अलावा एक अजीबोगरीब घटना हुई जिसको लेकर भाजपा की लगातार फजीहत हो रही है। पूर्व पार्षद हरीओम गुप्ता ने चांदनी चौक (वार्ड 74) सीट पर बिना उम्मीदवार घोषित हुए अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस वार्ड से रविंद्र कुमार उर्फ रवि कप्तान का नाम घोषित किया गया था, उनको सिंबल देकर नामांकन भी करवाया गया। लेकिन बाद में जानकारी सामने आई कि इसी सीट से पार्टी के सिंबल के साथ हरिओम गुप्ता ने भी अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। इस मामले में भाजपा नेताओं ने नॉर्थ एवेन्यू थाने एवं चुनाव आयोग से शिकायत की है और गुप्ता का नामांकन रद्द करवाया है।

बागियों के बहरोसे ‘आप’

 

दिल्ली में पिछले 8 साल से सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी लगातार देश में संगठन को मजबूत कर रही है। इसी तरह आम आदमी पार्टी दिल्ली में भी संगठन को मजबूत करना चाहती है। इसके लिए पार्टी ने कांग्रेस से आए नेताओं को टिकट दिया है। कांग्रेस के कद्दावर नेता और निगम में नेता प्रतिपक्ष रहे मुकेश गोयल भी शामिल हैं। इस तरह पूर्व पार्षद रेखा रानी और गुड्डी देवी समेत लगभग 20 से अधिक पूर्व कांग्रेस नेताओं को अपने सिंबल पर मैदान में उतारा है।लेकिन इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के ऊपर कई आरोप भी लगे रहे हैं । यमुना नदी की गंदगी, गंदे पानी की समस्या और प्रदूषण के मुद्दे पर किए गए केजरीवाल सरकार के वादे पूरे नहीं होना ‘आप ‘ की चिंता बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा टिकट बंटवारे के बाद से लगातार पार्टी पर पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप भी लग रहा है।

कांग्रेस को वापसी की उम्मीद

 

निगम चुनाव में कांग्रेस को अपने खोए हुए पारंपरिक वोटरों के दम पर वापसी की उम्मीद है। दरअसल पार्टी की दिल्ली में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और मुसलमानों मेअच्छी पकड़ थी परंतु आम आदमी पार्टी की सेंधमारी से उसके ये वोटर टूट गए थे। इस चुनाव मे पार्टी को इनसे वापस समर्थन मिलने की उम्मीद है। इसके लिए कांग्रेस पार्टी ने युवा नेता कन्हैया कुमार, सचिन पायलट जैसे युवा नेता पर भरोसा किया है।

अहम भूमिका में अन्य

 

कई दूसरे छोटे दल भी इस चुनाव को रोचक बना रहे हैं। जनता दल (यूनाइटेड) 33 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं जहां अधिकतर उत्तर प्रदेश बिहार के प्रवासी लोगों रहते हैं। वहीं एमआईएम ने भी 17 मुस्लिम बहुल इलाकों में अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। जबकि उनकी सहयोगी आजाद समाज पार्टी ने 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में है। वहीं वाम दल भी अपनी सीमित संसधानों एंव शक्ति के साथ चुनावी रण मे हैं। वाम दल अधिकतर मजदूर इलाकों से चुनाव लड़ रही है। क्योंकि वाम दल भले दिल्ली की सत्ता की राजनीति में मजबूत न हो परंतु दिल्ली की मेहनतकश आबादी में उनकी एक मजबूत पकड़ है और वह उसे ही इस चुनाव में अपने पक्ष मे भुनाने का प्रयास करेगी।

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