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बगावत से जूझती पार्टियां

देश में इन दिनों हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखण्ड के विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीति गरमाई हुई है। तीनां राज्यों के विधानसभा चुनाव के कुछ ही दिन बचे हैं। लेकिन पार्टियां अभी तक बगावत के संकट से जूझ रही हैं। बड़े दिग्गजों को उन्हें मनाने में पसीने छूट रहे हैं। महाराष्ट्र में बीजेपी ने करीब 144 बागियों को तो चुनाव मैदान से हटने के लिए राजी कर लिया है, लेकिन 30 बागी अब भी मुसीबत बने हुए हैं।
भाजपा उम्मीदवारों के विरुद्ध ज्यादातर जगहों पर शिवसेना नेताओं ने बगावत की है, तो कहीं- कहीं इसके उलट हुआ। कुछ जगहों पर भाजपा- शिवसेना के नेता व कार्यकर्ता ही पार्टी के खिलाफ खड़े हो गए हैं। बागियों ने अपने नेताओं को तर्क दिया कि पहले आपने ही चुनाव की तैयारी के लिए कहा था, हम दो साल से लगे हैं। अब हमने जीत की जमीन तैयार कर ली है, तो पीछे हटने को कहा जा रहा है। इन बागियों में कुछ कांग्रेस- एनसीपी से आए नेता भी हैं। जिन्हें टिकट नहीं मिला। करीब 50 विधानसभा क्षेत्रों में 144 बागी उम्मीदवारों को मनाने के लिए
भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, राज्य अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल और शिवसेना की तरफ से अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और केंद्रीय मंत्री सुभाष देसाई को खुद जुटना पड़ा। ज्यादातर मामलों में इन्हें कामयाबी मिली। लेकिन कुछ अहम विधानसभा क्षेत्रों में बागी उम्मीदवार निर्दलीय के रूप में सामने होंगे, जो
भाजपा- शिवसेना के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। ये मुंबई समेत विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र, पश्चिम महाराष्ट्र, कोंकण में सिंधु दुर्ग, ठाणे, रायगढ़ में चुनौती पेश करेंगे। भाजपा- शिवसेना को मराठवाड़ा में बगावत पूरी तरह रोकने में कामयाबी मिली है।
वर्सोवा में भाजपा ने अपनी सहयोगी शिव संग्राम पार्टी को यह सीट देते हुए वर्तमान विधायक भारती लव्हेकर को उतरा। उनके विरुद्ध सेना की पार्षद राजुल पटेल मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतर गईं। उनका कहना है कि वह किसी पार्टी के विरुद्ध नहीं बल्कि लव्हेकर के खिलाफ लड़ रही हैं क्योंकि उन्होंने पिछली बार जीतकर भी क्षेत्र में कोई काम नहीं, किया। वहीं अंधेरी पूर्व से भाजपा के पूर्व पार्षद मुरजी पटेल ने सेना के रमेश लटके के विरुद्ध निर्दलीय मैदान में उतरने का फैसला किया है।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव :पहली बार ‘बड़े भाई’ की भूमिका में भाजपा

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि कांग्रेस और एनसीपी अब थक चुके हैं।
राजनीति में अलग- अलग लड़ने की उनकी ताकत खत्म हो चुकी है, इसलिए भविष्य में वे एक हो सकते हैं। शिंदे सोलापुर में एक सभा को संबोधित कर रहे थे। महाराष्ट्र चुनाव से पहले भी ये बातें सामने आई थीं, लेकिन एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इनका खंडन किया था। हालांकि कांग्रेस ने शिंदे के बयान को उनका व्यक्तिगत मत बताया है।  शिंदे की इस बात के बाद एक बार फिर एनसीपी- कांग्रेस में विलय की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। शिंदे ने सोलापुर में बेटी प्रणीति शिंदे की चुनाव सभा में कहा कि कांग्रेस- एनसीपी को भविष्य में एक होना ही है।
हरियाणा में भी भाजपा ने 12 विधायकों की टिकट काटी तो इनमें से सात बागी हो गए हैं। समझा जा रहा है कि बगावती सुरों को दबाने के लिए पार्टी के बड़े नेताओं के कार्यक्रम राज्य में तय किये गए हैं। कांग्रेस की अंदरूनी कलह चुनाव की घोषणा होते ही सामने आ गई थी। कहा जा रहा है कि बगावत से चिंतित बीजेपी की हरियाणा इकाई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ज्यादा से ज्यादा रैलियों की मांग की है।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कैथल से चुनावी अभियान की शुरुआत की और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी हरियाणा में करीब एक दर्जन रैलियों को संबोधित करेंगे। मोदी के अभियान में मनोहर लाल खट्टर सरकार का भ्रष्टाचार- मुक्त शासन, केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में राज्य का शानदार प्रदर्शन और भूपिंदर हुड्डा और ओमप्रकाश चौटाला जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों के ‘दागदार रेकॉर्ड’ जैसे मुद्दे को उठाए जाने की उम्मीद है। बीजेपी सरकार की ओर से राज्य में रिकार्ड संख्या में दिए गए रोजगार के अलावा जम्मू- कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाए जाने के मुद्दे को भी मोदी जोर- शोर से उठाएंगे। बीजेपी की नजर कांग्रेस के घोषणापत्र में किए जाने वाले दो बड़े वादों पर भी है, जो 11 अक्टूबर को जारी किए। इसमें किसानों का कर्ज माफी और सभी वरिष्ठ नागरिकों को 5100 रुपये का मासिक पेंशन शामिल है।

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