भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी है। आरबीआई ने साल 2022 से लेकर अब तक रेपो रेट में लगातार छठी बार इजाफा किया है। जिसके अनुसार रेपो रेट को 6.25 फीसदी से बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत कर दिया गया है।
जिसका सीधा असर अब निजी लोन, होम लोन, कार लोन आदि पर पड़ेगा और ये महंगे हो जायेंगे। आरबीआई ने यह फैसला आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में लिया । इससे पहले दिसंबर में हुई मीटिंग में ब्याज दरों को 5.90 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया गया था।
रेपो रेट के 0.25 फीसदी बढ़ने का असर
रेपो रेट बढ़ने से EMI में भी उछाल आएगा। उदाहरण के लिए एक रवि नाम के व्यक्ति ने 7.90% के फिक्स्ड रेट पर 20 साल के लिए 30 लाख का लोन लिया है। जिसकी EMI प्रति महीने 24 हजार 907 रुपए है। 20 साल में उसे इस दर से 29.77 लाख रुपए का ब्याज देना होगा। इसके आधार पर 30 लाख के बदले उसे 59.77 लाख रुपए चुकाने होंगे।
लेकिन अब जब रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर दी है तो बैंक भी ब्याज दर 0.25 बढ़ा देगा। इसका मतलब अगर रवि वापस उसी बैंक से लोने लेने जाता है तो बैंक उसे 7.90 की जगह 8.15 प्रतिशत रेट ऑफ इंटरेस्ट बताएगा । इस वजह से अब रवि को 20 साल में कुल 60.90 लाख रुपए चुकाने होंगे। जो पहले लिए गए लोन के ब्याज दर से से 1.13 लाख ज्यादा होगा ।
साल 2022 से अब तक रेपो रेट में हुई बढ़ोत्तरी
नियम के अनुसार एमपीसी की मीटिंग हर दो महीने में होती है। जिसमें मनी फ्लो के आधार पर रेपो रेट को कम या ज्यादा किये जाने पर विचार किया जाता है। इस वित्त वर्ष की पहली मीटिंग अप्रैल में हुई थी। जिसमें RBI ने रेपो रेट को 4 प्रतिशत पर स्थिर रखा था उसमें कोई कमी या बढ़ोत्तरी नहीं की थी। लेकिन मई में आरबीआई ने एमपीसी की एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई और रेपो रेट में 0.40प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की जिसके बाद ब्याज दर बढ़कर 4.40 प्रतिशत हो गया। इसके बाद जून में हुई बैठक में रेपो रेट में 0.50 फीसदी का इजाफा किया। जिसके बाद रेपो रेट 4.40 से बढ़कर 4.90 प्रतिशत पहुँच गया। अगस्त में भी इसे 0.50 की बढ़ोतरी की गई। इस प्रकार सितंबर आते-आते ब्याज दरें 5.90 फीसदी हो गई। दिसंबर के महीने तक ये दरें 6.25 प्रतिशत हो गई और इस बार बढ़ाये गए रेपो रेट के बाद ब्याज दरें 6.50 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
क्या है रेपो रेट
रेपो रेट वह मूल्य है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक नकदी की कमी की स्थिति में कमर्शियल बैंकों को पैसे उधार देता है। साथ ही, मुद्रास्फीति या महंगाई को रोकने के लिए भी इसी दर का इस्तेमाल किया जाता है। यदि मुद्रास्फीति बढ़ने लगती है तो आरबीआई इकोनॉमी मनी फ्लो को कम करने के लिए रेपो रेट की दर बढ़ा देता है, रेपो रेट के बढ़ने से बैंकों को मिलने वाला कर्ज भी महंगा हो जाता है, बदले में बैंक ग्राहक का लोने मेहनगा कर देता है। इससे यह असर पड़ता है कमर्शियल बैंक केंद्रीय बैंकों से पैसा लेना कम कर देते है, और अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम हो जाती है जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि, जब देश में महंगाई कम होती है तो कई बार आरबीआई रेपो रेट को कम भी कर देता है।
रेपो रेट के बढ़ने या घटने के प्रभाव
रेपो रेट के बढ़ने से इसका पहला प्रभाव कमर्शियल बैंकों पर पड़ता है और दूसरा ग्रहाक पर। क्योंकि रेपो रेट के बढ़ा देने पर आरबीआई बैंकों को अधिक ब्याज दर पर कर्ज देता है और बैंक ग्रहकों को दिए गए लोने की EMI बढ़ा देता हैं। इसी के विपरीत जब आरबीआई रेपो रेट को कम करता है तो वह बैंकों को भी कम ब्याजदर पर लोने देता है और बैंक ग्रहकों को दिए गए लोन के EMI को भी कम कर देता है।
किस तरह के लोन पर बढ़ेगा EMI
गौरतलब खाई की बैंकों से लिए गए लोन की ब्याज दरें दो प्रकार की होती हैं, एक फिक्स्ड और दूसरा फ्लोटर। फिक्स्ड लोन में आपका ब्याज दर उसी समय तय कर दी जाती है और शुरू से आखिर तक यह दर एक समान ही रहती है। रेपो रेट में बदलाव का इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
वहीं दूसरी और फ्लोटर लोन में रेपो रेट में बदलाव होने पर ग्राहक के लोन की ब्याज दर पर भी फर्क पड़ता है। ऐसे में अगर रेपो रेट बढ़ता है तो EMI की दरें बढ़ जाएँगी और अगर रेपो रेट कम होता है तो EMI घट जायेगा।