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  •     वृंदा यादव

 

देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहा है। यह आजादी हमें यूं ही नहीं मिली। न जाने कितने देशभक्त फांसी के फंदे पर झूले थे और न जाने कितनों ने गोली खाई थी, तब जाकर हमने यह आजादी पाई थी। लेकिन महिलाओं की जिस बेहतर स्थिति की अपेक्षा की गई थी उसमें आज तक सफलता नहीं मिल पाई है। राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों अनुसार साल 2022 में महिला अपराध के 30 हजार 900 से भी अधिक मामले दर्ज किए गए हैं जिसमें घरेलू हिंसा की 23 फीसदी शिकायतें दर्ज की गई जो देश में महिलाओं की भागीदारी को लेकर चिंता का विषय है

देशभर में तमाम कानूनों के बाद भी महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के मामले कम होने के बजाए बढ़ते जा रहे हैं। जबकि इनको रोकने के लिए प्रावधान मौजूद हैं। बावजूद इसके आज महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा एक सामुदायिक चिंता बन गई है। दरअसल साल 2019 में आई कोरोना महामारी ने पूरे देश के लोगों पर नकारात्मक प्रभाव डाले। जिसका महिलाओं पर एक सबसे बड़ा प्रभाव यह देखने को मिला कि उनके साथ उन्ही के घर में होने वाली हिंसा के मामले बढ़ने लगे। साल 2020 में जारी किये गए आंकड़ों में देखा गया कि महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा में अचानक से बहुत अधिक उछाल आया है जो साल 2022 में भी देखने को मिला।

राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों अनुसार साल 2022 में महिला अपराध के 30 हजार 900 से भी अधिक मामले दर्ज किए गए हैं जिसमें घरेलू हिंसा की 23 फीसदी, इज्जत के साथ जीने का अधिकार सुरक्षित करने के 31 फीसदी, दहेज एवं विवाहिता के उत्पीड़न के 15 फीसदी, महिलाओं से छेड़छाड़ व यौन उत्पीड़न के 8. 2 फीसदी, बलात्कार व बलात्कार की कोशिश करने के 5.5 फीसदी साइबर क्राइम के 3 फीसदी, यौन उत्पीड़न के 2.7 फीसदी, दहेज हत्या के 1.2, अपना जीवन साथी चुनने के 1.3 फीसदी और अन्य हिंसाओं के करीब 4 फीसदी मामले सामने आए हैं जो देश के लिए एक चिंता का विषय है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से यह आंकड़े लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। इससे पहले साल 2020 में महिला आयोग के सामने महिला अपराध के लगभग 23 हजार 700 मामले आए थे तो वहीं साल 2021 में इनकी संख्या में 30 प्रतिशत उछाल आया और इस प्रकार की शिकायतों की संख्या 30 हजार 800 से अधिक पहुंच गई।

राज्यों में महिलाओं की स्थिति
आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं के मामले में उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे ज्यादा खराब हैं। साल 2022 में अकेले उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के 16 हजार 873 यानी 54.5 प्रतिशत मामले सामने आए हैं। दूसरे स्थान पर दिल्ली में 3 हजार 4, महाराष्ट्र 1 हजार 381, बिहार 1 हजार 368, हरियाणा 1 हजार 362, मध्य प्रदेश 1 हजार 141, राजस्थान 1 हजार 30, तमिलनाडु 668, पश्चिम बंगाल 621 और सबसे कम मामले कर्नाटक से सामने आए जहां 554 यानी 1.58 फीसदी मामले दर्ज किए गए हैं। जबकि अन्य राज्यों में कुछ 2 हजार 955 यानी 9.5 फीसदी, मामले देखने को मिले हैं।

क्या कहता है कानून
महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए 2005 में जारी महिला संरक्षण अधिनियम को 26 अक्टूबर, 2006 को कानून का रूप देकर लागू किया गया। इसमें महिलाओं से शारीरिक दुर्व्यवहार, उन्हें शारीरिक पीड़ा पहुंचाने, उनके जीवन या स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करने या उनसे लैंगिक दुर्व्यवहार को अपराध माना गया है। जिसके आधार पर कोई भी महिला अपनी आवाज उठा सकती है और अपने साथ हो रहे अपराध के विरोध में लड़ सकती है।
महिलाओं के अधिकार

यौन उत्पीड़न : महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के मामले आये दिन सामने आते हैं। जिसके विरोध में पीड़ित कानूनी कदम उठा सकती हैं। अगर कोई पुरुष महिला के साथ यौन शोषण के मामले में दोषी पाया जाता है तो उसे आईपीसी की धारा 354 के तहत सजा का प्रावधान है। जिसके तहत अपराधी को 1 साल के लिए कारावास, जो अधिकतम 5 वर्ष तक का हो सकता है और जुर्माने का प्रावधान है।
दहेज उत्पीड़न : भारतीय समाज में दहेज को लेकर महिलाओं पर कई दशकों से अत्याचार होता आ रहा है। कई ऐसे भी मामले सामने आए जहां महिलाओं को दहेज के लिए मौत के घाट उतार दिया गया। इन मामलों को देखते हुए सरकार ने वर्ष 1961 में दहेज प्रतिषेध अधिनियम लागू किया जिसके तहत अगर उसके पिता के परिवार या ससुराल वालों के बीच किसी भी तरह के दहेज का लेन-देन होता है, तो लड़की इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है। अगर व्यक्ति आरोपी सिद्ध होता है तो उसे दहेज प्रतिषेध अधिनियम के सेक्शन 3 के तहत 15 हजार तक के जुर्माने और 5 साल की सजा सुनाई जा सकती है। वहीं सेक्शन 4 के तहत दहेज की मांग करने पर 6 महीने से 2 साल तक की सजा हो सकती है।

घरेलू हिंसा : महिलाओं की सुरक्षा के लिए ‘घरेलू हिंसा के खिलाफ महिला संरक्षण अधिनियम, 2005’ लागू किया गया। जिसके तहत अगर किसी महिला के साथ उसका पति या ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सेक्सुअल या आर्थिक आधार पर किसी भी प्रकार का अत्याचार करते हैं या शोषण करते हैं तो पीड़ित महिला उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है।

गर्भपात : महिलाओं के पास जिस प्रकार अपनी इच्छा से यौन संबंध बनाने के अधिकार हैं उसी प्रकार अपनी मर्जी से गर्भपात कराने का अधिकार भी हैं। जिसका अर्थ है कि अगर महिला चाहे तो नियमित समय में अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को अबॉर्ट करा सकती है। इसके लिए उसे अपने पति या ससुराल वालों के सहमति की कोई आवश्यकता नहीं है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) संशोधन अधिनियम, 2021 के तहत ये अधिकार दिया गया है कि अगर कोई महिला गर्भपात करना चाहती है तो गर्भ के 24 सप्ताह के भीतर गर्भपात करा सकती है। लेकिन कई बार कुछ गंभीर मामलों में एक महिला अपने प्रेग्नेंसी को 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात करा सकती है लेकिन इस स्थिति में कानूनी मंजूरी लेना अनिवार्य हो जाती है।

संपत्ति : ज्यादातर महिलाओं या लड़कियों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि शादी के बाद भी वो अपने माता-पिता की संपत्ति में हकदार होती हैं। साल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संशोधन किया गया। इसके तहत एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या ना हो, अपने पिता की संपत्ति को पाने का बराबरी का हक रखती है।

महिलाओं के लिए हेल्पलाइन नंबर
शिकायतों के इन बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने बताया कि इसका एक कारण अपनी आवाज उठाने के लिए महिलाओं को प्रेरित करना भी है। रेखा शर्मा कहती हैं कि आयोग ने जन सुनवाई के जरिए घरेलू हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं को रिपोर्ट करने, सहायता लेने और आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया है। आयोग ने पिछले साल 24ग्7 हेल्पलाइन प्लेटफार्म सेवा शुरू की है। जिसके तहत किसी भी प्रकार की हिंसा या अपराध झेल रही महिलाएं 7827170170 हेल्पलाइन नम्बर पर कॉल कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि हम लगातार सोशल मीडिया सहित अपने मंच के माध्यम से महिलाओं को आगे आने, बोलने और अपनी चिंताओं को शेयर करने का संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। अधिकतर महिलाएं पोर्टल पर शिकायत कर रही हैं।

अपराध के कारण

  • महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों का सबसे बड़ा कारण अशिक्षा है। महिलाओं को कानूनी रूप से कई अधिकार प्रदान किये गए हैं, लेकिन शिक्षा प्राप्त न होने की वजह से महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती और वे अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती।
  • लोगों में कानून का डर न होना भी एक कारण है। देखा जाए तो महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिए कई नियम लागू किये गए हैं। लेकिन इन कानूनों में पूर्ण रूप से सफलता हासिल नहीं हो पाई है। ये कानून
  • महिलाओं की रक्षा करने और आरोपियों को सजा दिलाने में असफल रहे हैं। जिसकी वजह से आरोपियों के जहन में कानून का डर न के बराबर है।
  • पितृसत्तात्मक मानसिकता भी घरेलू हिंसा का एक बड़ा कारण है। सरकार द्वारा देश की हर लड़की को आगे बढ़ाने के कई प्रयास किए गए हैं ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी दसियों से अधिक योजनाएं भी जारी की जा चुकी हैं लेकिन लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं आ रहा है।
  • महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार हमेशा कार्यरत है मगर इसके बावजूद भी महिला सुरक्षा में काफी कमी देखने को मिलती है। अधिकतर महिलाओं को रात के समय घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता।
  • अपराध रोकने के उपाय
    महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के लिए नियम लागू किए जाने चाहिए। क्योंकि अधिकतर ग्रामीण इलाकों में और कुछ अन्य इलाकों में आज भी महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं हैं।
    महिलाओं के लिए बनाए गए सुरक्षा कानूनों को लागू करने के साथ-साथ उन्हें सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
    सरकार द्वारा महिलाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए और सभी स्तरों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
    महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों को रोकने वाली संस्थाओं को अधिक क्रियाशील और मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
    महिलाओं के लिए बनाए गए थानों की संख्या व इन मुद्दों की जांच करने वाले महिला पुलिस अधिकारियों की संख्या बढ़ानी आवश्यक है।

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