“सियासत में मेरा खोया या पाया हो नहीं सकता। सृजन का बीज हूँ मिट्टी में जाया हो नहीं सकता।” यह चर्चित अंश मशहूर कवि डॉ कुमार विश्वास की एक लोकप्रिय कविता के है। जिसमे वह राजनीति को कविता से दूसरे दर्जे पर रखने का दावा करते है। वह कहते भी है कि ‘राजनीति 10 साल 5 साल लेकिन कविता हजार साल।’ लेकिन फ़िलहाल की परिस्थितियों को देखे तो अब उनकी कविता पर राजनीतिक पलड़ा भारी होते दिख रहा है। उनकी धर्मपत्नी मंजू शर्मा के राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी ) का सदस्य बनने के साथ ही चर्चाओं का माहौल शुरू हो चुका है। इस बार चर्चा कुमार विश्वास की कविताओं की नहीं, बल्कि राजनीतिक सक्रियता की है। पिछले कई सालो से कुमार विश्वास राजनीतिक रूप से अज्ञातवाश में चल रहे थे।राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र के आदेश पर राजस्थान लोक सेवा आयोग में चार सदस्यों की नियुक्ति की गई है। इन चार सदस्यों में बाबूलाल कटारा, डॉ. संगीता आर्य, डॉ. जसवंत राठी और कुमार विश्वास की धर्मपत्नी डॉ. मंजू शर्मा के नाम शामिल है। कुमार विश्वास की धर्मपत्नी के राजस्थान आरपीएससी में सदस्य बनते ही एकाएक वह फिर से राजनितिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गए है। दरअसल, राजस्थान लोक सेवा आयोग में नियुक्तियां राजनीतिक होती हैं। इसीलिए अब नए-नए राजनीतिक कयास भी लगाए जाने लगे हैं।
फिलहाल सबसे बड़ी चर्चा कुमार विश्वास के राजनीतिक ‘धर्म परिवर्तन’ को लेकर है। आखिर एक संघी पिता चंद्रपाल शर्मा का देशभक्त बेटा भाजपा के थिंक टैंक से निकलकर कांग्रेसी सूची में शामिल कैसे हो गया, जबकि पूर्व में कुमार विश्वास अपनी कविताओं के जरिए कांग्रेस खासकर राहुल गांधी पर तंज कसते रहे हैं। कवि कुमार विश्वास कई बार सियासी तौर पर और कई बार कविता के जरिए कांग्रेस पार्टी व राहुल गांधी पर हमला बोल चुके हैं। दिसंबर 2019 में कुमार विश्वास ने राजस्थान के जयपुर में कवि सम्मलेन के दौरान राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए कविता के माध्यम से कहा था कि ‘अधूरी जवानी का क्या फायदा, बिन कथानक कहानी का क्या फायदा’, ‘जिसमें धुलकर नजर भी ना पावन बनी, आंख में ऐसे पानी का क्या फायदा।’ हालाँकि कुमार विश्वास की ये प्रेम पर पक्तियां थीं। पहली पंक्ति राहुल गांधी पर थी कि इस अधूरी कहानी का क्या फायदा। यहां तक कि जयपुर में कुमार विश्वास ने मजाकिया लहजे में यह भी कह दिया था कि मुझे कांग्रेसियों से बड़ी सहानुभूति है ना बहू मिल पा रही है और ना ही बहुमत। हालाँकि कुमार विश्वास ने इस कार्यक्रम में और सियासी दलों पर भी हमला बोला था , लेकिन राहुल गांधी के खिलाफ कहे गए उनके ये शब्द कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहे थे।
अपने अध्यापन करियर की शुरुआत जिस प्रदेश से कुमार विश्वाश ने की उसी प्रदेश से वह राजनीति का नया अध्याय लिखने को आतुर दिखाई दे रहे हैं। याद रहे कि कुमार विश्वास ने अपना करियर राजस्थान में प्रवक्ता के रूप में 1994 में शुरू किया। सूत्रों की मानें तो एक बार फिर से कुमार विश्वास इस प्रदेश से कांग्रेस की पॉलटिकल एप्रोच बनने जा रहे है। यही वजह है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कुमार विश्वाश के मुरीद हो चले है। राजस्थान लोक सेवा आयोग में कुमार विश्वास की पत्नी की नियुक्ति के बाद से कई तरह की चर्चाएं हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि कुमार विश्वास की अशोक गहलोत से नजदीकियां बढ़ रही हैं। याद रहे कि 2019 में भी अशोक गहलोत सरकार के कला संस्कृति विभाग के कार्यक्रम में भी कुमार विश्वास को बुलाया गया था।
अब मुख्यमंत्री गहलोत ने शुरुआत उनकी पत्नी मंजू शर्मा को आरपीएससी का सदस्य बनाकर कर दी है। चर्चा है कि इस प्रदेश से ही कुमार विश्वास का राज्यसभा पहुंचने का महत्वपूर्ण सपना पूरा होने जा रहा है। डेढ़ साल बाद वर्ष 2022 में राज्यसभा सदस्य एवं केंद्रीय मंत्री केजे अल्फोंस, ओम प्रकाश माथुर, रामकुमार वर्मा एवं हर्षवर्धन सिंह डूंगरपुर का कार्यकाल पूरा होगा। ये तीनो भाजपा नेता राजस्थान से राज्यसभा गए है। फिलहाल राजस्थान में कांग्रेस बहुमत में है। स्वाभाविक है कि 2022 में तीनो राज्यसभा सदस्य कांग्रेस के ही होंगे। कहा तो यहां तक जा रहा है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी कुमार विश्वास को उत्तर प्रदेश में साथ लेकर पॉलटिकली फील्डिंग सजाने को आतुर है। कुमार विश्वास मूल रूप से उत्तर प्रदेश के पिलखुवा निवासी है। जानकारों का दावा है कि कुमार कांग्रेस में शामिल होने को तैयार तो हैं लेकिन इसके लिए वे राज्यसभा की सीट का वचन स्वयं प्रियंका से लेना चाह रहे हैं। जानकारों का यह भी दावा है कि जल्द ही कांग्रेस आलाकमान इस बाबत निर्णय ले सकता है।
आज से 9 साल पहले कुमार विश्वास को लोग एक प्रोफ़ेसर और कवि के रूप में जानते थे। लेकिन वर्ष 2011 में दिल्ली में शुरू हुआ अन्ना आंदोलन उनके लिए कई मायनो में महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस आंदोलन में अन्ना के सिपाहियों में अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वाश को काफी यश मिला। जिसकी बदलौत ही बाद में जब आम आदमी पार्टी बनी तो उसमे अरविन्द केजरीवाल ने कुमार विश्वाश को अहम जिम्मेदारी दी।
२६ नवम्बर २०१२ को गठित आम आदमी पार्टी ( आप ) में कुमार विश्वास को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य बनाया गया। यही नहीं बल्कि 2014 में कुमार विश्वास को आम आदमी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की चर्चित लोकसभा सीट अमेठी से चुनाव भी लड़ाया , लेकिन वह यह चुनाव हार गए। इसके बाद आम आदमी पार्टी ने कुमार विश्वास को राजस्थान का प्रभारी भी बनाया। तब चर्चा यह चली थी कि आम आदमी पार्टी कुमार विश्वास को 2018 के विधानसभा चुनावों में राजस्थान से सीएम पद का उम्मीदवार भी घोषित करेगी। तब आम आदमी पार्टी से कुमार विश्वास को राज्यसभा भेजने की भी चर्चा खूब हुई थी। लेकिन यह सियासी चर्चा हकीकत बनती इससे पहले ही कुमार विश्वास आम आदमी पार्टी से बाहर हो चुके थे।
इसके बाद कुमार विश्वास का भाजपा मोह किसी से छुपा नहीं। जिस तरह से वह अपनी कविताओं में बड़ी चालाकी से देशभक्ति के बहाने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की तारीफ कर देते थे उससे उनके सियासी मायने दूसरे निकाले जाने लगे थे। तब एक बारगी यह भी चर्चा शुरू हो चुकी थी की दिल्ली में भाजपा कुमार विश्वास के नेतृत्व में 2019 के विधानसभा चुनाव कराने की तैयारियों में है। तब कुमार विश्वास का भाजपा में जाने के कयास लगाए जाने लगे थे। लेकिन अब कहा जाने लगा है कि कुमार भाजपा के मोहपास से निकल कांग्रेस में मायाजाल में फस रहे है। फिलहाल राजस्थान में उनकी धर्मपत्नी को मिली सियासी नियुक्ति से कांग्रेस और कुमार में कोई खिचड़ी तो जरूर पक रही है। इसके पीछे उनकी कोई राजनितिक मज़बूरी है या यह सिर्फ भाजपा से दूरी है यह तो समय ही बताएगा।