“दुश्मनी निकालनी है तो मेरे से निकालो, क्षेत्र की जनता को परेशान मत करो।” पिछले साल विधानसभा सत्र के दौरान यह बात कहकर हेमाराम चौधरी सियासी गलियारों में चर्चाओं के केंद्र में रहे थे। राजस्थान के बाड़मेर जिले के गुड़ामलानी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हेमाराम चौधरी एक बार फिर चर्चाओं में है। इस बार वह चर्चाओं में इसलिए हैं कि उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है।
चौधरी ने यह इस्तीफा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरोध में दिया है। चौधरी ने अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को सौंप कर एक बार फिर राजस्थान की राजनीति में भूचाल ला दिया है।
चौधरी के इस इस्तीफे से एक बार फिर राजस्थान में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत के बीच सियासी उठापटक का सिलसिला शुरू हो सकता है। क्योंकि हेमाराम चौधरी सचिन पायलट के कट्टर समर्थकों में गिने जाते हैं।
राजस्थान की कांग्रेस राजनीति के दिग्गज नेता हेमाराम चौधरी के मुख्यमंत्री के विरोध में दिए गए इस इस्तीफे ने एक बार फिर कांग्रेस आलाकमान को सोते से जगा दिया है। कांग्रेस आलाकमान फिलहाल राजस्थान की तरफ से निश्चिंता की नींद में सोए हुए थी।
पिछले साल लाकडाऊन के दौरान ही राजस्थान की कांग्रेस राजनीति में जो पायलट और आशोक गहलोत के बीच गृह युद्ध चला था, कांग्रेस हाई कमान फिलहाल उसकी तरफ से ध्यान हटा चुका था।
लेकिन लगता है कि एक बार फिर राजस्थान में कांग्रेस में खेमेबाजी का सिलसिला शुरू हो सकता है। राजनीति से जुड़े लोगों के द्वारा हेमाराम चौधरी के इस इस्तीफे को इसी की शुरुआत माना जा रहा है।
राजस्थान विधानसभा में हेमाराम वरिष्ठ कांग्रेसी विधायक में गिने जाते है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि 200 सीटों वाली राज्य विधानसभा में चौधरी सहित कांग्रेस के 107 विधायक हैं। जिनमें 101 विधायक कांग्रेस के थे। जबकि 6 विधायक बसपा से अलग होकर कांग्रेस में आए थे।
चौधरी की गिनती पायलट गुट के विधायको में होती हैं। पिछले साल की पायलट और गहलोत की सियासी राजनीति में वह सचिन के साथ डटकर खड़े रहे थे। अपने तीन दशक के राजनीतिक कैरियर में वह इस बार छठी बार चुनाव जीतकर विधायक बनें हैं।
अपने राजनितिक जीवन में हेमाराम चौधरी ने अब तक कुल आठ बार चुनाव लड़े है। वह पूर्ववर्ती गहलोत सरकार में राजस्व मंत्री की जिम्मेदारी भी निभा चुके हैं।
वहीं 2008 में चौधरी राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी निभा चुके हैं। इस लिहाज से चौधरी को कमतर नहीं माना जाता है। फिलहाल, उनके इस कदम ने एक बार फिर राजस्थान का सियासी पारा गर्म कर दिया है।