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राजस्थान में कांग्रेस का डबल पावर सेंटर फार्मूला फेल क्यों ?

उत्तर प्रदेश में भाजपा के ट्रिपल पावर फार्मूला की तर्ज पर कांग्रेस ने राजस्थान में डबल पावर फार्मूला बना तो दिया। लेकिन यह फार्मूला सफल नही हो सका। महज पाच महीने में ही लोकसभा चुनाव के दौरान फार्मूला की विफलता सामने आ गयी। फिलहाल राजस्थान की राजनीति  ध्रुवीकरण का शिकार होकर रह गयी है।  जिनके एक ध्रुव सीएम अशोक गहलौत का है तो दुसरा डिप्टी सीएम सचिन पायलट का
गत दिनों राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने जो बयान दिया है वह राजनीतिक दृष्टि से बहुत मायने रखता है। साथ ही इस और इशारा भी करता है कि कही ना कही चूक जरूर हुई है। पायलट ने कहा कि इस बात पर मंथन होना चाहिए कि पांच माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस की जीत हुई तो क्या कारण है कि सरकार होने के बाद भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सभी 25 सीटों पर हार गई। हालाकि कोई माने या ना माने लेकिन निशाना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर था। आज भले ही पायलट लोकसभा चुनाव की हार के लिए गहलोत को जिम्मेदार ठहरा रहे हों, लेकिन डिप्टी सीएम के नाते पायलट भी गहलोत सरकार के हिस्सेदार हैं। पायलट के पास भी पांच विभाग है।
असल में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान में डबल पावर सेंटर बना दिए। नेतृत्व को उम्मीद थी कि दोनों पावर मिल कर कार्य करेंगे, लेकिन यह फार्मूला फेल हो गया। दिखाने को तो पायलट और गहलोत एक मंच पर नजर आए, लेकिन दोनों के मन एक नहीं थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जोधपुर से गहलोत के पुत्र वैभव की हार है। शीर्ष नेतृत्व के लिए यह चिंता की बात है । हालाकि अब गहलोत और पायलट संयुक्त रूप से हार की जिम्मेदारी  नहीं ले रहे हैं।
पांच वर्ष पहले सचिन पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष की कमान तब संभाली थी जब कांग्रेस के मात्र 21 विधायक थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि पायलट ने मरी हुई कांग्रेस में जान डाली। पंचायतीराज और स्थानीय निकायों के चुनावों में सफलता प्राप्त करते हुए जनवरी 2018 में लोकसभा के दोनों उपचुनाव भी जीते। सभी को उम्मीद थी कि विधानसभा में बहुमत मिलने पर पायलट ही मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने गहलोत को सीएम बना दिया और उम्मीद जताई कि पायलट पहले की तरह कांग्रेस को मजबूत करते रहेंगे।
राजनीति में महत्वकांक्षा कितनी प्रबल होती हैं, यह किसी से भी छिपा नहीं है। गहलोत ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा लिया, लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया। इतनी बुरी दशा की उम्मीद तो खुद गहलोत को भी नहीं थी। यदि विधानसभा चुनाव के बाद पायलट को सीएम बना दिया जाता तो इस हार में उन्हीं का दायित्व होता। तब पायलट यह कहने की स्थिति में नहीं होते कि 5 माह के अंतराल में हार क्यों मिली ?
बहरहाल,  कांग्रेस के पास अब भी समय है जब डबल पावर की बजाय एक पावर सेंटर को ही जिम्मेदारी दी जाए। राजनीतिक पंडितो का मानना है कि मौजूदा हालातों में सचिन पायलट को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, ताकि कार्यकर्ताओं को कहने को अवसर नहीं मिले। यह बात अलग है कि शीर्ष नेतृत्व को पायलट पर गहलोत जितना भरोसा न हो।

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