‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी को अभी तक जिस तरह का जनसमर्थन मिल रहा है उसे देख राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा राहुल गांधी को एक गंभीर राजनेता के रूप में स्थापित करेगी और उन्हें अपने विरोधी भाजपा से मुकाबला करने के लिए एक नई ऊंचाई प्रदान कर सकती है। हालांकि इसके लिए राहुल को असाधारण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि यात्रा के जरिए एक स्थायी प्रभाव छोड़ा जा सके। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि यह यात्रा देश की राजनीति के लिए दीर्घकालिक प्रभाव वाली साबित होगी। इस यात्रा से भारतीय राजनीति पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में एक गैर-गंभीर राजनेता के रूप में चित्रित करने के अभियान को यह यात्रा प्रभावी रूप से नुकसान पहुंचाएगी
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ 12 राज्यों के भ्रमण पर है। इस यात्रा का मकसद न सिर्फ 2024 की चुनौती को पार करना है बल्कि अपनी छवि और कुनबे को मजबूत करना भी है। लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का फल अभी तक नहीं मिल पाया है। यात्रा को शुरू हुए दो महीनों से ज्यादा समय हो गया है। यात्रा अब अपने दूसरे पड़ाव में है। इस दौरान कई राज्यों में हुई राजनीतिक उठापटक कांग्रेस के लिए बुरी खबर है। मगर जिस तरह से यात्रा को अभी तक जनसमर्थन मिल रहा है और हाल ही में राहुल गांधी ने एक बयान दिया था कि ‘जब आप सड़क पर चल रहे होते हैं तो संवाद बहुत बेहतर होता है, मैं जब लोगों से बात करता हूं तो मैं उनकी पीड़ा को समझना चाहता हूं।’
इसके बाद से राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा राहुल गांधी को एक गंभीर राजनेता के रूप में स्थापित करेगी और उन्हें अपने विरोधी भाजपा से मुकाबला करने के लिए एक नई ऊंचाई प्रदान कर सकती है। इसके लिए राहुल को असाधारण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि यात्रा के जरिए एक स्थायी प्रभाव छोड़ा जा सके। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि यह यात्रा देश की राजनीति के लिए दीर्घकालिक प्रभाव वाला होगा। इस यात्रा से भारतीय राजनीति पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में एक गैर-गंभीर राजनेता के रूप में चित्रित करने के अभियान को यह यात्रा प्रभावी रूप से नुकसान पहुंचाएगी।
दरअसल, राहुल गांधी इन दिनों ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के जरिए अपनी छवि से सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। असल में मेन स्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर लगातार ट्रोल करके राहुल की छवि एक नासमझ की बना दी गई है। ऊपर से बार-बार हार का सामना, कांग्रेस की अंदरूनी कलह, अचानक छुट्टी पर चले जाना, सब उनकी इस छवि को गढ़ता गया। लेकिन अब उनकी कोशिश एक जननेता की इमेज बनने की दिख रही है। एक ऐसा नेता जिसके पीछे भीड़ एकत्रित हो सकती है।
लोगों के बीच उनकी इस यात्रा को लेकर क्या असर दिख रहा है, इसकी एक झलक बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक में दिखी। कर्नाटक में राहुल की यात्रा को उन इलाकों में भी जनसमर्थन मिला, जहां कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इस वजह से राज्य के बीजेपी नेताओं को राजनीतिक और प्रशासनिक तौर पर सक्रिय होना पड़ा है।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी इस वक्त भारी अंतर्कलह और बिखराव से जूझ रही है। ऐसे में साल 2024 का लोकसभा चुनाव भी है। अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत की है। इस यात्रा के जरिए वे न सिर्फ कांग्रेस की खोई जमीन तलाशने में जुटे हैं, बल्कि पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी नया जोश भरने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल कभी यात्रा के दौरान नेताओं का हाथ पकड़कर दौड़ते नजर आते हैं, तो कभी युवाओं के साथ पुशअप लगाते हैं। चित्रदुर्ग में उन्होंने एक टंकी पर चढ़कर तिरंगा फहराया था। इतना ही नहीं एक मौके पर वे सोनिया गांधी के जूते के फीते भी बांधते नजर आए थे। लेकिन इस बीच बड़ा सवाल उठ रहा है कि यात्रा के खत्म होने के बाद राहुल गांधी की छवि में इतना सुधार आ जाएगा कि अगले लोकसभा चुनाव में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी टक्कर दे सकें?
इसका जवाब तो फिलहाल कांग्रेस नेताओं के पास भी नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि लोकप्रियता के लिहाज से राहुल भले ही मोदी को मात न दे पाएं मगर उनकी इस यात्रा ने कमजोर हो चुकी कांग्रेस में नई जान फूंकने में काफी हद तक कामयाबी पाई है। यही बीजेपी के लिए थोड़ी परेशान करने वाली स्थिति है क्योंकि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू होने से पहले तक तो वह कांग्रेस को कहीं मुकाबले में मानने को ही तैयार नहीं थी।
बीते 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू हुई इस यात्रा पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पिछले आठ सालों में बीजेपी ने राहुल गांधी को जिस तरह से एक कमजोर और मजाकिया नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश की है, उस छवि को राहुल ने अपनी इस यात्रा के जरिये तोड़ने में काफी हद तक सफलता पाई है। यात्रा के दौरान दिए जा रहे भाषणों और पत्रकारों के सवालों के जवाब देकर राहुल ने यह साबित करने की कोशिश की है वे एक गंभीर नेता हैं।
इस यात्रा को दो महीने से ज्यादा समय हो चुका है और राहुल इस दौरान लोगों से सीधे संवाद कर रहे हैं, आम लोगों के साथ वक्त बिता रहे हैं। बीच-बीच में लोगों के घर भी जा रहे हैं और मीडिया से रू-ब-रू होने में भी कतरा नहीं रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनकी कई भावुक तस्वीरें भी वायरल हुई हैं जिनमें वे बारिश के बीच भाषण देते हुए, मां सोनिया गांधी के जूते का फीता बांधते हुए और हिजाब पहने बच्ची को गले लगाते दिखते हैं, तो कभी बच्चों के साथ दौड़ लगाते हुए भी नजर आते हैं। इन सबके जरिये राहुल गांधी अपनी ऐसी छवि बनाने की कोशिश में जुटे हैं कि जनता के बीच यह संदेश जाए कि वे जमीन से जुड़े नेता हैं।
विश्लेषक मानते हैं कि इस यात्रा से कांग्रेस कितनी मजबूत हुई है, यह तो चुनावों के दौरान ही पता चलेगा लेकिन इसका एक बड़ा फायदा यह हुआ है कि राहुल गांधी पर जो ठप्पे सोशल मीडिया में लगाए गए और जैसी छवि उनकी गढ़ी गई थी, वे अब उनसे बाहर निकल आए हैं। इसका बड़ा सबूत यही है कि उनके लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल अब नहीं हो रहा है। शायद इसलिए कि बीजेपी नेताओं को अहसास जो गया है कि ऐसी भाषा का इस्तेमाल बैक फायर कर सकता है, जिसकी जन सहानुभूति का फायदा राहुल को मिल सकता है। लेकिन सियासी समीकरण को देखा जाए, तो राहुल गांधी का असली इम्तिहान यात्रा के आगे के पड़ावों में होगा, जब वे ऐसे प्रदेशों में होंगे जहां कांग्रेस की स्थिति कमजोर है। फिलहाल सबसे पहले महाराष्ट्र से उनकी यात्रा गुजर चुकी है, जहां कांग्रेस अपना आधार बहुत हद तक खो चुकी है। इसके अलावा राजस्थान में आपसी खींचतान से उन्हें इस यात्रा के सियासी गर्म थपेड़ों से जूझना होगा तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ-दिग्विजय सिंह गुट के चलते पार्टी की हालत इतनी ताकतवर स्थिति में नहीं है कि वह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आसानी से पटखनी दे सके।
लिहाजा, यह कह सकते हैं कि इस यात्रा में राहुल की असली परीक्षा का समय अब आ रहा है। हिंदी भाषी राज्यों में अगर वे अपनी इस यात्रा से लोगों को आकर्षित करके कांग्रेस के पक्ष में नहीं ला पाए, तो फिर यह बहस ही बेमानी बन जाती है कि वे पीएम मोदी को कैसे टक्कर दे पाएंगे?
फिलहाल इस यात्रा से राहुल यह संदेश देने में सफल साबित होते दिख रहे हैं कि भाजपा और संघ की विचारधारा के खिलाफ लड़ने वाले नेताओं में वह सबसे आगे और सबसे बेखौफ हैं। साथ ही पीएम मोदी के अलावा ईडी, आईटी और सीबीआई से न डरने की बात वे जिस बेबाकी से कर रहे हैं वह उन्हें केंद्र की सत्ता के खिलाफ एक बड़ा योद्धा बनता दिखाई दे रहा है।
गौरतलब है कि इस यात्रा में पिछले दिनों शामिल हुए भारत के पूर्व हॉकी खिलाड़ी और ओलंपियन असलम शेर खान ने कहा कि यह यात्रा भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (बीजेपी- आरएसएस) गठबंधन द्वारा खेली जा रही ‘विभाजनकारी और ध्रुवीकरण की राजनीति’ के खिलाफ कांग्रेस की बड़ी मुहिम है। क्योंकि राहुल कांग्रेस नेताओं के अत्यधिक दबाव के बावजूद पार्टी अध्यक्ष के सर्व शक्तिशाली पद से गांधी परिवार को दूर रखने की अपनी बात पर अडिग रहकर खुद को एक ‘गंभीर राजनेता’ साबित कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से आयोजित किया गया था और राहुल गांधी ने अब यह साबित कर दिया है कि वह भारतीय राजनीति में एक लंबी पारी के साथ एक गंभीर राजनेता हैं। हालांकि कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने तर्क दिया कि कांग्रेस की राष्ट्रव्यापी पैदल मार्च उस तरह की प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है जिसकी उम्मीद की जा रही थी। क्योंकि यह यात्रा किसी विशेष मुद्दे पर केंद्रित नहीं है इसलिए यह उस तरह की प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं कर रही है जो अतीत में इस तरह के मार्चों में हुई थीं।