बिहार में जातिगत जनगणना शुरू होते ही सियासत भी तेज हो गई है,महागठबंधन के दल इसका श्रेय लेने के लिए फ्रंटफुट पर नजर आ रहे हैं तो भाजपा असमंजस में फंसी दिख रही है। पिछले साल 9 अगस्त में नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना को कैबिनेट से मंजूरी दी थी तो भाजपा इसके समर्थन में खड़ी रही थी, लेकिन अब उसके नेता दो नावों पर सवार हैं। भाजपा के कुछ नेता आर्थिक तो कुछ जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं । ऐसे में भाजपा से न तो खुलकर विरोध करते बन रहा है और न ही समर्थन करते बन रहा है। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों ‘समाधान यात्रा’ के जरिए बिहार का दौरा कर रहे हैं,उन्होंने यात्रा के दौरान कहा कि इस सर्वेक्षण में जाति और समुदाय का विस्तृत रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा।
इस जनगणना से सिर्फ जातियों की गणना नहीं, बल्कि राज्य के हर परिवार के बारे में आर्थिक सहित पूरी जानकारी जुटाई जाएगी, जिससे उनके विकास में मदद मिलेगी और देश व समाज के उत्थान में भी बहुत फायदा होगा। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी कहा कि इस सर्वेक्षण से सरकार को गरीब लोगों की मदद के लिए वैज्ञानिक तरीके से विकास करने में मदद मिलेगी।वहीं भाजपा जातिगत जनगणना पर असमंजस में फंसी हुई दिख रही है। उसके नेता एक तरफ तो इस जातीय गणना का श्रेय भी लेना चाहते हैं और दूसरी तरफ उनके ही नेता इसे जातिवाद की राजनीति बता रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी चाहते हैं कि मौजूदा उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इसका श्रेय न लें बल्कि भारतीय जनता पार्टी को इसका श्रेय मिले। उन्होंने इसका कारण यह बताया कि जब कैबिनेट से जातीय गणना का निर्णय पारित हुआ था तब तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री नहीं थे। वे यह भी कहते हैं कि कर्नाटक और तेलंगाना के बाद बिहार तीसरा राज्य है जहां भाजपा के समर्थन से जातीय जनगणना शुरू हो रही है। दूसरी तरफ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष भारतीय जनता पार्टी के सीनियर लीडर विजय कुमार सिन्हा जातीय गणना के लिए श्रेय लेने के बजाय इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। उन्होंने बयान दिया कि पिछले 75 सालों में किसी दल ने जातीय गणना क्यों कराई, 1931 के बाद जाति जनगणना क्यों नहीं हुई। उन्होंने लालू प्रसाद का नाम लिए बिना कहा कि उनके (नीतीश के) बड़े भाई ने जातीय उन्माद पैदा करवाने के लिए या जातीय गणना शुरू कराई है।उन्होंने लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों के 32 साल के कार्यकाल को जोड़ते हुए पूछा कि इस दौरान उन्होंने जातीय जनगणना क्यों नहीं कराई।
सरकार के साथ रहते हुए भी विजय कुमार सिन्हा का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मनमुटाव सार्वजनिक है। सिन्हा ने इसे जातीय नरसंहार तक से जोड़ कहा कि जो जातीय नरसंहार कराते थे उन्हीं के पथ पर (नीतीश कुमार) क्यों बढ़ गए। हालांकि उन्होंने सीधे-सीधे जातीय जनगणना का विरोध नहीं किया लेकिन कहा कि जातीय गणना करा यह भी बताएं कि जो 500 करोड़ की राशि खर्च होगी , उससे बिहार की जनता को क्या लाभ मिलेगा। सिन्हा ने कहा कि शराबबंदी की ही तरह जातिगत जनगणना भी फेल हो जाएगी। इसी तरह सुशील मोदी कहते हैं कि क्या सरकार गारंटी देगी की जातीय गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी?भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता, जिनमें सिन्हा भी शामिल हैं, अब भी यह कोशिश कर रहे हैं कि जाति जनगणना को हानिकारक बताते हुए इसके बदले सिर्फ आर्थिक जनगणना करवाने की बात की जाए। इसी तरह पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता तार किशोर प्रसाद ने कहा कि महागठबंधन सरकार की ओर से कराई जा रही जातीय गणना से समाज के विकास की जगह जातीय तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा मिलेगा।
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल जातीय जनगणना के विरोध में सीधे तो कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन इसकी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि सिर्फ जाति की गणना हो रही है, उप जातियों की गणना क्यों नहीं हो रही है। उन्हें लगता है कि इसमें आंकड़े छिपाने की साजिश है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कुशवाहा समाज में दांगी समाज को उपजाति नहीं मानेंगे तो क्या उसे एक अलग ही जाति मानेंगे और बनिया समाज में 65 उपजातियां हैं तो क्या उसे एक वैश्य समाज ही मानेंगे या 65 उप जातियों में मानेंगे।हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि उप जातियों की गणना संबंधित जाति में होगी।राजनीतिक विशेषज्ञों का तो यह कहना है कि एक तरफ भाजपा नेता जहां जातीय जनगणना पर जातिवाद की आशंका जता रहे हैं तो दूसरे कुछ भाजपा नेता हरियाणा मॉडल और अन्य राज्यों में कराए गए जातीय गिनती का भी उल्लेख कर रहे हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार यह भी स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि इस गणना का लाभ हर जाति के लोगों को होगा क्योंकि इसमें आर्थिक जानकारी भी ली जा रही है। जदयू के वरिष्ठ नेता विजय कुमार चौधरी ने कहा कि बिहार में जाति आधारित गणना शुरू हो जाने से भाजपा हताश और परेशान हैं। भाजपा को यह उम्मीद नहीं रही होगी कि जातीय जनगणना शुरू होगी लेकिन अब जब यह शुरू हो गई है तो वे आरोप लगा रहे हैं इससे जातीय उन्माद का खतरा है। उन्होंने कहा कि इससे तो सवर्णों सहित सभी जाति के गरीबों की पहचान होगी जिससे उनके उत्थान के लिए योजनाएं बनाने में सुविधा होगी। आमतौर पर सुशील कुमार मोदी को जवाब देने का काम नीतीश कुमार के करीबी जदयू उपाध्यक्ष व एमएलसी संजय सिंह का रहता है। उन्होंने सुशील मोदी की आपत्तियों पर कहा कि यदि वे जाति आधारित गणना के समर्थन में हैं तो फिर हिम्मत दिखाएं और केंद्र सरकार से अपील करें कि पूरे देश में ऐसी गणना की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि जातीय गणना कराने का फैसला जरूर पिछली सरकार का था लेकिन भाजपा का फैसला मजबूरी का था और उसके नेताओं ने कदम-कदम पर यह बताने की कोशिश की थी कि उनका समर्थन नहीं है। जातिगत जनगणना को लेकर यह भी समझना होगा कि मंडल की सियासत से निकले लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी सहित तमाम क्षेत्रीय राजनीतिक दल जातिगत जनगणना की मांग करते रहे हैं, लेकिन भाजपा हमेशा से इसके विरोध में रही है। मोदी सरकार ने संसद में भी जातीय जनगणना कराने से मना कर दिया था। मोदी सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा देकर कहा था कि जाति आधारित विभिन्न तरह के ब्योरे जुटाने के लिए जनसंख्या जनगणना उपयुक्त साधन नहीं है। भाजपा तकनीकी कारणों का हवाला देकर भले ही मना कर रही हो, लेकिन उसके पीछे सियासी मकसद है।
52 फीसदी भागीदारी का खेल
जातिगत जनगणना के विरोध और समर्थन के पीछे सारा खेल सियासत से जुड़ा है। जातिगत जनगणना के समर्थन के पीछे पिछड़ी जातियों के वोट बैंक का है, जिसकी आबादी 52 फीसदी से ज्यादा बताई जाती है। विरोध के पीछे उच्च जातियों का दबाव है। मंडल कमीशन के आंकड़ों के आधार पर पिछड़े समुदाय की आबादी 52 फीसदी है, लेकिन उन्हें 27 फीसदी आरक्षण मिलता है। उनका का कहना कि उनकी आबादी बढ़ी है। इसीलिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जोर- शोर से जनगणना का श्रेय ले रहे हैं,क्योंकि बिहार की सियासत लंबे समय से ओबीसी समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है। भाजपा से लेकर आरजेडी और जेडीयू बिहार में ओबीसी को केंद्र में रखकर अपनी सियासत कर रही हैं। ऐसे में जातिगत जनगणना की डिमांड ओबीसी समुदाय के बीच से उठ रही है,अन्य पिछड़ी जातियों को लग रहा है कि उनकी आबादी का दायरा बड़ा है। अभी जो राजनीति होती है, उसका ठोस आधार नहीं है, उसे चुनौती दी जा सकती है, लेकिन एक बार जनगणना में वो दर्ज हो जाएगा, तो सब कुछ ठोस रूप ले लेगा। बिहार सियासत में ओबीसी समुदाय की राजनीति क्षेत्रीय दल करते रहे हैं, लेकिन साल 2014 के बाद से भाजपा की लोकप्रियता भी ओबीसी में बढ़ी है। उत्तर प्रदेश में ओबीसी का बड़ा तबका भाजपा के साथ है। हालांकि, भाजपा का कोर वोटबैंक आज भी सवर्ण जातियां है, जो जातिगत जनगणना के विरोध में हैं। ऐसे में जातिगत गणना होगी तो केंद्र की नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी कोटे में बदलाव के लिए सरकार पर दबाव बनाने का मुद्दा पिछड़े समुदाय के बीच आधार रखने वाले दलों को मिल जाएगा, भाजपा भूलकर भी इसका समर्थन नहीं करेगी ।