पूरा देश कोरोना वायरस के संकट को झेल रहा है तो वहीं भारत को इंजीनियर और डॉक्टर देने वाला राजस्थान का कोटा शहर अब सियासी मैदान बन गया है। इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए बिहार और उत्तरप्रदेश से हजारों की संख्या में छात्र कोटा गए थे। लेकिन यह सभी छात्र देशव्यापी लॉकडाउन लगने के बाद वापस नहीं आ सके। जिसके बाद छात्रों ने मदद की गुहार लगाई तब जाकर उत्तरप्रदेश सरकार ने 35 हजार फंसे छात्रों की घर वापसी करवाई। लेकिन यह मुद्दा यही पर खत्म नहीं हुआ।
भिड़े गहलोत-योगी और नीतीश
कोटा मुद्दे को लेकर अब सियासत गर्माने लगी है। कोटा के इस मामले को लेकर अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच तीखी नोकझोक शुरू हो गई है। दरअसल, राजस्थान के कोटा में करीब 35 हजार छात्रों के फंसे होने का मामला कुछ दिनों से काफी चर्चा में हैं।
लेकिन इसपर विवाद तब शुरू हुआ जब राजस्थान सरकार ने इन छात्रों को घर वापसी के लिए पास उपलब्ध कराने शुरू किए गए। जिसके बाद कुछ छात्र अपने राज्य की सीमा पर पहुंचे तो लेकिन उससे आगे जाने से उन्हें रोक दिया गया। फिर बिहार सरकार की ओर से शीघ्र ही केंद्र को पत्र लिखकर अवगत कराते हुए लिखा गया कि ये लॉकडाउन के नियमों के खिलाफ है, इसपर तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।
देशव्यापी लॉकडाउन में कोटा में फंसे इन छात्रों ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाई। घर लौटने के लिए सोशल मीडिया पर एक मुहिम चलाई गई। कोटा में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए उन विद्यार्थियों को वहां से बाहर निकाल घर पहुंचाने की मांग तेजी से उठने लगी थी।जैसे ही मामला विवादित होने लगा तो राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार की ओर से छात्रों को घर वापस जाने की अनुमति दे दी गई। सीएम गहलोत ने कहा है कि कोटा में फंसे छात्रों को संबंधित राज्य सरकार की सहमति पर उनके गृह राज्यों में भेजा जा सकता है। जैसा कि यूपी सरकार ने कोटा में रहने वाले छात्रों को वापस बुलाने के लिए कदम उठाए हैं अन्य राज्य की सरकारें भी अपने यहां के छात्रों को बुला सकती हैं।
लॉकडाउन का मजाक
जब राजस्थान सरकार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो यूपी सरकार ने अपनी ओर से तीन बसों को कोटा भेजकर अपने राज्यों के छात्रों को वापस लाया गया। लेकिन इस बीच सामाजिक दूरी की धज्जियां उड़ गईं। अफरा-तफरी के कारण छात्र जैसे-तैसे बस पर सवार होने लगे। जिसको लेकर लॉकडाउन उल्लंघन एक अलग ही विवाद खड़ा हो गया है।
वहीं इस विवाद में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बोलने से पीछे नहीं हटे। उन्होंने योगी सरकार के कोटा बस भेजने के फैसले को गलत बताया और कहा कि यह लॉकडाउन का मजाक उड़ाने जैसा था। साथ ही उन्होंने राजस्थान सरकार से बसों का परमिट वापस लेने का आग्रह किया और कोटा में ही विद्यार्थियों को सुविधा और सुरक्षा देने का अनुरोध किया। इससे पहले भी वह कई बार कह चुके हैं कि इस तरह से सड़क मार्ग से लोगों का आना-जाना लॉकडाउन के साथ खिलवाड़ है। कोटा में सबसे ज्यादा छात्र यूपी और बिहार के हैं। सबसे अधिक उत्तर प्रदेश के हैं। जिनकी संख्या 7500 है। बिहार के भी 6500 छात्र लॉकडाउन के कारण कोटा में हैं। इनमें से अधिकतर छात्र कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के हॉस्टल और पीजी में ठहरे होते हैं।
वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने योगी सरकार के इस कदम को बिलकुल सही ठहराते हुए इसका स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि कोटा में फंसे छात्रों के लिए बसें भेजी गई और उन्हें सुरक्षित घर भेजा गया। यह स्वागत योग्य कदम है। बीएसपी इसकी सराहना भी करती है। मायावती अपने ट्वीट में कहा, “लेकिन सरकार से यह भी आग्रह है कि वह ऐसी चिंता यहां के उन लाखों गरीब प्रवासी मज़दूर परिवारों के लिए भी ज़रूर दिखाए, जिन्हें अभी तक भी उनके घर से दूर नरकीय जीवन जीने को मजबूर किया जा रहा है।”
लोग अपने घर क्यों नहीं आ सकते
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के तेजस्वी यादव ने सीएम नीतीश कुमार के नाम खुला पत्र लिखा है। पत्र में तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने सरकार पर भी आरोप लगाए हैं कि प्रदेश के बाहर फंसे गरीब मजदूरों और छात्रों को सरकार की ओर से बेसहारा छोड़ दिया गया है।
तेजस्वी ने प्रदेश सरकार पर तीखे सवाल दागे कि बिहार सरकार आखिरकार अनिर्णय की स्थिति में क्यों है? प्रवासी मजबूर मजदूर और छात्रों से इतना बेरुखी भरा व्यवहार क्यों? उन्होंने कहा कि छात्र सरकार से लगातार घर वापसी के लिए गुहार लगा रहे हैं, लेकिन सरकार को उनकी कोई फिक्र नहीं। आखिर उनके प्रति असंवेदनशीलता क्यों है?