देश की नई शिक्षा नीति पर प्रधानमंत्री मोदी भी अपनी मुहल लगाकर इसे व्यवहारिक और उचित बता चुके हैं, शिक्षा मंत्री निशंक और उनके समर्थक तो इसे बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं, लेकिन इसी के साथ राज्यों से विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। इसी बची झारखंड़ के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने कुछ सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए लाई गई है। 2022 के बाद सारे पारा शिक्षक या जो कांट्रैक्ट पर रखे गए हैं उन्हें हटा दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो झारखण्ड प्रदेश में 65000 हजार पारा शिक्षक बेरोजगार हो जाएंगे और झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को बहाल कर पाना काफी मुश्किल हो जाएगा।
महतो ने कहा कि “पहले राज्य मंत्रिपरिषद की तीन सदस्यीय मंत्रिमंडलीय उप समिति इसकी समीक्षा करेगी, उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही राज्य सरकार आगे कदम बढ़ाएगी। मु्ख्यमंत्री हेमंत सोरेन से उनकी बात हुई है। कई ऐसे बिंदु हैं,जिन पर विचार करना जरूरी है। राज्य सरकार पारा शिक्षकों के स्थाईकरण और उन्हें वेतनमान देने पर काम कर रही है। पारा शिक्षकों को वेतनमान देने और नियमितीकरण के लिए प्रयास कर रही है। उन्हें 5200 रुपए से 20200 रुपए का वेतनमान देने के लिए विधि विभाग की राय मांगी गई है।
नई शिक्षा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री महतो ने तीन सवाल उठाए हैं,
1. केंद्र को बताना चाहिए कि स्कूलों से पारा शिक्षक हट जाएंगे, तो क्या नए शिक्षकों को वह वेतन देगी। पारा शिक्षकों के हटने के बाद आखिर स्कूलों में पढ़ाई कैसे चलेगी। झारखंड को कैसे और क्या सहयोग करेगी।
2. नई शिक्षा नीति में स्टेट टेट परीक्षा को समाप्त कर सिर्फ सेंट्रल टेट परीक्षा को ही मान्यता दी गई है। यह एकदम गलत है। सेंट्रल टेट परीक्षा होने से झारखंड के बच्चों को दिक्कत आएगी। एक ही टेट परीक्षा होने से गांव के बच्चे कैसे पास कर पाएंगे।
3. आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी। वहां पर तो कोई व्यवस्था ही नहीं है। ऐसे में सिर्फ बोल देने भर से तो नहीं हो जाएगा। ऐसे में यह सिर्फ आई वाश हैं।