लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब कार्यपालिका और विधायिका पंगु हो जाती है तब न्यायपालिका उम्मीद की किरण बनकर नजर आती है। कानूनी व्ययवस्था को लेकर आज देश में जो हालात हो गए हैं उसमें देश की सर्वोच्च अदालत पर भी कई सवाल खड़े हो जाते हैं। वास्तव में देश के संविधान निर्माताओं की मंशा सुप्रीम कोर्ट को अनिश्चितकाल के लिए मनमानी की चाबी सौंपे जाने की नहीं थी। न्याय के मंदिर में न्यायाधीश को भगवान माना जाता है। लेकिन सबको सही रास्ता बताने वाला जब रास्ता भटक जाए और मनमानी पर उतर जाए तो उसे क्या कहेंगे ?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति पर चर्चा करने के लिए 7 अप्रैल, गुरुवार को न्यायाधीश CJI एसए बोबडे की अध्यक्षता में कोलेजियम की पूर्व निर्धारित बैठक हुई। लेकिन इस कॉलेजियम बैठक की टाइमिंग को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं।
सवाल इसलिए उठे हैं क्योंकि ये बैठक परंपरा से हटकर हुई। अगले सीजेआई की नियुक्ति का आदेश राष्ट्रपति द्वारा जारी होने के बाद रिटायर हो रहे चीफ जस्टिस केंद्र सरकार से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करते हैं।
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लेकिन इसके उलट मीटिंग भी हुई और नतीजा भी कुछ नहीं निकला। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों द्वारा सीजेआई एसए बोबड़े की ओर से 8 अप्रैल, गुरुवार को शीर्ष अदालत में नियुक्ति के लिए संभावित उम्मीदवारों पर चर्चा के लिए बुलाई गई कॉलेजियम की बैठक पर आपत्ति जताई । उनका तर्क है कि चूंकि भारत के राष्ट्रपति द्वारा नए सीजेआई की नियुक्ति के आदेश जारी हो चुके हैं ऐसे में कार्यवाहक सीजेआई के लिए किसी भी नाम की सिफारिश करना अनुचित है।
जानकारी ये भी मिली कि अधिसूचना जारी होने से पहले ही कॉलेजियम की बैठक निर्धारित कर दी गई थी और इस बैठक को लेकर कई आपत्ति जताई गयीं लेकिन बावजूद इसके सीजेआई बोबड़े ने अपना फैसला नहीं बदला। सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में 5 जज होते हैं। इस बार कॉलेजियम की बैठक में सीजेआई बोबड़े और न्यायाधीश रमना के अलावा जस्टिस रोहिंटन नरीमन, यू यू ललित और ए एम खानविलकर हैं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे 23 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो रहे हैं और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सुप्रीम कोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश के तौर पर एनवी रमना के नाम का ऐलान किया है। वह 24 अप्रैल से सीजेआई बोबड़े के रिटायर होने के बाद अपना पद संभालेंगे। मुख्य न्यायाधीश बोबड़े के अलावा सुप्रीम कोर्ट से इस वर्ष जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस नरीमन, और जस्टिस नवीन सिन्हा रिटायर होंगे।
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वहीं, इस पूरे मामले पर पूर्व सीजेआई आर एम लोढ़ा ने कहा कि, ‘ऐसा कोई नियम नहीं है कि निवर्तमान सीजेआई अपने कार्यकाल के अंत में सिफारिशें नहीं कर सकता, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह अपने सहयोगियों को कैसे विश्वास में लेता है।’
माना जा रहा है कि जस्टिस बोबडे सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए जस्टिस अकील कुरैशी और त्रिपुरा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नामों की सिफारिश करना चाहते हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट में कम से कम 6 जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया अभी बाकी है। कॉलेजियम की बैठक के गतिरोध ने उस चर्चा को अब अवरुद्ध कर दिया है जिसके माध्यम से अन्य संभावित उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा की जा सकती है जैसे कि बीवी नागरत्न, कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त होती तो वह पहली महिला CJI बन जाती।
परंपरावादी मुख्य न्यायाधीश हैं बोबडे
कुछ सदस्य न्यायमूर्ति कुरैशी के नाम की सिफारिश का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें सरकार से प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है, जैसा कि त्रिपुरा उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के पद पर उनकी नियुक्ति के दौरान हुआ था। जबकि अन्य सदस्यों का कहना है कि कॉलेजियम को यह फैसला सरकार पर छोड़ देना चाहिए।
आपको बता दें कि कॉलेजियम द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कुरैशी के नाम की सिफारिश पर आपत्ति जताने के बाद वर्ष 2019 में उन्हें त्रिपुरा के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। साथ ही वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की कमी है, जबकि CJI बोबडे ने सुप्रीम कोर्ट में 14 महीने के कार्यकाल के दौरान सरकार को किसी के नाम की सिफारिश नहीं की है।