सन् 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश में चरखा चलाकर महिलाओं को स्वावलंबी बनाने का संकल्प लिया था। तब चरखा चलाने के पीछे महात्मा गांधी की धारणा थी कि लोग विदेशी कपड़ों के बजाय स्वदेशी कपड़ा पहनें। इसके लिए न केवल गांधी ने खादी को बढ़ावा दिया बल्कि सूत कातकर खुद ही कपड़े बनाने को प्राथमिकता दी थी। तब लगभग हर किसी के हाथों में चरखा होता था।
आज ठीक 100 साल बाद लोगों खासकर महिलाओं के हाथों में चरखा तो नहीं है लेकिन कपड़ा सिलने वाली मशीन जरूर है। ऐसा नहीं है कि कपड़ा सिलने वाली मशीन पहले नहीं होती थी, पहले होती तो थी लेकिन आज की तरह मास्क बनाने का काम नहीं किया जाता था। अब कोरोना महामारी पर नियंत्रण करने के लिए महिलाएं बहुसंख्य मात्रा में मास्क बना रही है।
इनमें ज्यादातर ऐसी महिलाएं हैं जो मशीन तो चलाती थी लेकिन कभी-कभी। कोरोना काल के दौरान आजकल ऐसी समाजसेवी महिलाएं सामने आई है जिन्होंने कोरोना वायरस के संक्रमण पर रोकथाम के लिए बहुउपयोगी मास्क बनाने का संकल्प लिया है। इनके बनाए मास्क लोगों को कोरोना संक्रमण से रोकने में सक्षम है। सबसे बडी बात यह है कि यह मास्क खादी में ही बनाए जा रहे हैं। इससे फायदा यह होता है कि यह मास्क गर्म पानी से धोने के बाद फिर से युजेबल बन जाते हैं।
आजकल उत्तराखंड (कुमाऊं) के प्रवेश द्वार हल्द्वानी में ऐसा ही एक समाज सेवा का काम कर रही हैं एडवोकेट पुष्पा भट्ट। श्रीमती पुष्पा भट्ट ऊधमसिंह नगर-नैनीताल लोकसभा के सांसद अजय भट्ट की पत्नी है। समाजसेवा में सदैव आगे रहने वाली एडवोकेट पुष्पा भट्ट के इस कार्य की आजकल हर कोई सराहना कर रहा है।
उन्होंने अपने हाथों से कपड़े सिलने वाली मशीन चला कर अब तक करीब साढ़े 400 मास्क निर्मित किए हैं। काफी दिनों के बाद सिलाई मशीन चलाने और दिन रात मास्क बनाने के काम करने से श्रीमती भट्ट के हाथों में दुखन होने लगी। इसके बावजूद भी वह इस काम को लगातार जारी किए हुए हैं। बल्कि ज्यादा से ज्यादा मास्क बने इसके लिए श्रीमती भट्ट ने अपने साथ ही दो और सहयोगी महिलाओं को इस काम के लिए रख लिया है।
एडवोकेट पुष्पा भट्ट ने मास्क बनाने की शुरुआत गत 13 अप्रैल से की। अभी 7 दिन हुए हैं उनको मास्क बनाते हुए। लेकिन इस दौरान उनके इस कार्य से प्रेरणा लेकर प्रदेश की कई महिलाओं ने अपनी बंद बक्से में रखी सिलाई मशीन को निकालकर मास्क बनाने शुरू कर दिए हैं। रानीखेत और द्वाराहाट में उनकी कई समर्थक महिलाएं उनको अपना आइडियल मान चुकी है और मास्क बनाकर लोगों में निशुल्क वितरित कर रही हैं।
मास्क बनाने का आइडिया उनको कहां से मिला? इस सवाल के जवाब में श्रीमती भट्ट बताती हैं कि वह एक दिन हल्द्वानी मार्केट में मास्क लेने के लिए गई। तब उनको 30 रूपए का भी मास्क नहीं मिला। तब उन्होंने सोचा कि जो मास्क फ्री में मिलना चाहिए वह उन्हें 30 रूपये में भी नहीं मिल रहा है तो गरीब आदमी कैसे कोरोना वायरस के संक्रमण से रोकथाम करेगा। ऐसे में अगर वह मास्क नहीं पहन पाया तो कोरोना बीमारी से कैसे लड़ पाएगा।
इन्हीं सवालों की उधेड़बुन में श्रीमती पुष्पा भाट को अपनी सिलाई की मशीन बक्से से बाहर निकालने को मजबूर होना पड़ा। फिलहाल श्रीमती भट्ट के बनाएं मास्क फिलहाल चर्चा का विषय बने हुए है। हल्द्वानी में उनकी पार्टी के कई नेताओं ने उनके बनाए मास्क को लोगों में निशुल्क वितरण किया है।
एडवोकेट पुष्पा भट्ट बताती है कि उनके बनाए हुए मास्क सबसे पहले हल्द्वानी के भाजपा नगर अध्यक्ष विनित अग्रवाल ने बांटे थे। तब शुरुआत में उन्होंने 51 मास्क बनाए और उन्हें विनीत अग्रवाल को सौंप दिया था। वह कहती है कि कभी-कभी ऐसा समय भी आता है जब हमें बचाव के उपायों पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता है। यह बुरा वक्त भी गुजर जाएगा। बस लोगों को घरों में रहकर सावधानी बरतनी चाहिए।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ऊधमसिंह नगर-नैनीताल के सांसद अजय भट्ट वह पहले नेता है, जिन्होंने अपनी एक साल की पूरी सांसद निधि कोरोना महामारी को कंट्रोल करने के लिए दे दी है। अब तक यह देखने में आया है कि ज्यादातर सांसदों ने अपनी निधि का एक करोड या दो करोड़ रुपया कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए दिया है। सांसद अजय भट्ट ने ऊधमसिंह नगर और नैनीताल के दोनों जिलाधिकारियों को अपनी 5 करोड़ की निधि दे दी है। इसके साथ ही भट्ट ने अपना एक माह का वेतन प्रधानमंत्री केयर फंड में दे दिए हैं।