कई महीनों की उठापटक के बाद आखिर पंजाब कांग्रेस का समाधान निकाल लिया गया है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब के प्रभारी हरीश रावत पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का हाथ मिलाने के लिए जी जान से जुटे हुए थे। जिसमें उन्हें कल सफलता भी मिल गई। कल नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश पार्टी का मुखिया बना दिया गया। जबकि सरकार के सरदार कैप्टन अमरिंदर सिंह हैं।
कैप्टन और नवजोत सिंह सिद्धू का विवाद 4 साल से चला आ रहा है। 4 साल पहले नवजोत सिंह सिद्धू को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी सरकार में विद्युत मंत्री बनाया था। तब नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने कद के हिसाब से पद न देने की बात कह कर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था । उसके बाद नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब की राजनीति से सक्रिय तौर पर दूर हो चले थे।
कपिल शर्मा के शो में अक्सर अट्टहास करते हुए दिखते नवजोत सिंह सिद्धू अपनी ही सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर जमकर भड़ास निकालते रहे हैं। टि्वटर हैंडल पर उन्होंने कई ऐसी पोस्ट लिखी जो अपने ही सरकार को घेरती नजर आई।
कल जब हरीश रावत की मध्यस्था से कैप्टन और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सुलह हुई तो उसके बाद से चर्चा है कि अभी भी दोनों का मन मिला नहीं है। इसके पीछे कैप्टन की एक शर्त बताई जा रही है जिसके अनुसार कैप्टन ने प्रदेश प्रभारी हरीश रावत से कहा था कि वह नवजोत सिंह सिद्धू को तभी माफ करेंगे जब वह अपने टि्वटर हैंडल से जारी किए गए विवादास्पद बयानों की बाबत माफी मांग लेंगे। लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू ने ऐसी कोई माफी नहीं मांगी।
इसके बावजूद कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धू को पार्टी का पंजाब मुखिया बनाकर मजबूती दे दी। हालांकि इसी के साथ ही चार चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर कहीं न कहीं कांग्रेस ने सिद्धू को आजाद या फ्री हैंड नही छोड़ा है। स्वाभाविक है कि जब 4 – 4 कार्यकारी अध्यक्ष होंगे तो वह भी संगठन में अपना हस्तक्षेप करेंगे। लेकिन कांग्रेस को सबसे बड़ी चिंता कैप्टन और सिद्धू के आपसी मतभेद सुलझाने की रहीं। अब कहा जा रहा है कि दोनों के मतभेद खत्म हो चुके हैं लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि अभी भी कैप्टन सामान्य तौर पर सिद्धू को अध्यक्ष पद पर देखने के लिए तैयार नहीं हैं।
चर्चा तो यहां तक है कि कैप्टन सिद्धू के बढ़ते कद के आगे पार्टी से बगावत भी कर सकते हैं। पंजाब में फिलहाल चुनाव सिर पर है इसके मद्देनजर पार्टी में फिर से जान फूंकने की कोशिश की जा रही है।
फिलहाल, किसान आंदोलन के बाद पंजाब में कांग्रेस पहले से मजबूत होती दिखी है। जबकि भाजपा कहीं काफी पीछे हो गई है। हालांकि आम आदमी पार्टी एक बार फिर प्रदेश में अपना रुतबा कायम करने के लिए प्रयासरत है। 2017 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 20 सीटों पर जीत मिली थी। आम आदमी पार्टी पंजाब में कांग्रेस के बाद दूसरी बड़ी पार्टी बनी थी। जबकि भाजपा तीसरे नंबर पर रही थी।