उत्तर प्रदेश में जब से प्रियंका को कमान मिली है तब से वह काफी सक्रिय हैं। हालांकि अभी भी उनकी सक्रियता कांग्रेस को सत्ता की लड़ाई में नहीं ला पाई है। लेकिन मायावती को प्रियंका से डर सता रहा है कि प्रियंका कहीं उनके बचे-खुचे वोट बैंक में सेंध न लगा ले
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। में उत्तर प्रदेश सबसे महत्वपूर्ण है। सबकी निगाहें भी यहीं टिकी हुई हैं। राज्य में इस बार सत्ताधारी भाजपा और सपा के बीच सीधी टक्कर होती दिख रही है। लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने कई बार छुपे रुस्तम की तर्ज पर बेहतर प्रदर्शन कर सबको चौंकाया है। धीरे-धीरे ही सही अब मायावती की सक्रियता भी दिखने लगी है। इससे मुकाबला रोचक होने लगा है। हाल में मायावती ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पर हमला बोला। इसके कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।
मायावती ने प्रियंका गांधी पर हमला बोलते हुए कहा कि ‘कांग्रेस को वोट देना अपने मत को बर्बाद करना है।’ उनका यह बयान यूपी चुनाव में कांग्रेस के चेहरे को लेकर प्रियंका के एक बयान को लेकर सामने आया है। कुछ दिन पहले प्रियंका गांधी ने एक सवाल के जबाब में कहा था कि श्क्या आपको उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की तरफ से कोई और चेहरा दिखाई दे रहा है?’ बाद में प्रियंका ने इस बयान को वापस ले लिया और कहा कि यूपी में सिर्फ वो ही पार्टी का चेहरा नहीं हैं। इसे लेकर ही मायावती ने प्रियंका को निशाने पर ले लिया।
मायावती ने एक ट्वीट में लिखा, ‘यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के हाल इतने ज्यादा खस्ताहाल हैं कि इनकी मुख्यमंत्री की उम्मीदवार ने कुछ घंटों के भीतर ही अपना स्टैंड बदल लिया। ऐसे में बेहतर होगा कि लोग कांग्रेस को वोट देकर अपना वोट खराब न करें बल्कि एकतरफा तौर पर बीएसपी को ही वोट दें।’ दरअसल, मायावती की नजर कांग्रेस की वोट बैंक पर है। प्रदेश में खराब प्रदर्शन के बावजूद कांग्रेस का वोट प्रतिशत 10 फीसदी के करीब रहा है। मायावती की नजर कांग्रेस के इसी दस फीसदी वोट पर है।
सिर्फ यही नहीं प्रियंका गांधी की मुहीम ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ से मायावती को महिला वोट खिसकने का डर भी सता रहा है। प्रियंका इस मुहीम से उत्तर प्रदेश की लड़कियों और महिलाओं को संदेश देने में कामयाब हो रही हैं कि वह भी अपने अधिकार के लिए लड़ सकती हैं। उन्हें किसी के रहमो-करम पर नहीं रहना है। प्रियंका गांधी ने महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देने का वादा कर कांग्रेस के उम्मीदवारों में जमकर महिला प्रत्याशियों को टिकट देकर अपने कहे को पूरा कर दिखाया है। प्रियंका के इस कदम से मायावती को महिलाओं के वोट कांग्रेस में शिफ्ट होने की आशंका सताने लगी है। गौरतलब है कि मायावती को कमजोर वर्ग की महिलाएं खुलकर वोट किया करती थीं।
कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ इसके पीछे दोनों के वोट बैंक की समानता को वजह मानते हैं। कांग्रेस की राजनीति दलित, मुस्लिम और ब्रह्मणों के इर्द-गिर्द रही है। ये तीनों कांग्रेस का वोट बैंक रहे हैं। लेकिन क्षेत्रीय दलों के उभरने के बाद से कांग्रेस का वोट बैंक खिसकना शुरू हो गया। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस के वोट बैंक में दरार डाल कर ही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दल उभरे हैं। अब वही दल यूपी में कांग्रेस के लिए चुनौती बन गए हैं।
कांग्रेस की मजबूती, बसपा का डर
यूपी में कांग्रेस को सबसे कमजोर स्थिति में बताया जा रहा है। कहा जाता है कि कांग्रेस जमीनी स्तर पर अपना आधार खो चुकी है। लेकिन, प्रियंका यूपी में कांग्रेस को चर्चा में लाने में जरूर सफल दिख रही हैं। हाथरस मामला हो, गैंगस्टर विकास दुबे की हत्या या महिलाओं से जुड़े मसले हों, प्रियंका लगातार सक्रिय नजर आई हैं। उनकी यहां सक्रियता मायावती के लिए मुश्किल बन सकती है। बसपा के संस्थापक कांशीराम पर ‘कांशीराम’ किताब लिखने वाले प्रोफेसर बद्री नारायण कहते हैं, ‘धारणा के स्तर पर कांग्रेस को फायदा हुआ है, जिसमें प्रियंका गांधी की भूमिका रही है। लेकिन जमीनी स्तर पर कांग्रेस अभी भी नहीं है। ये आधार का मामला नहीं है ताकि विधानसभा चुनाव में कई जगह दो-तीन हजार के अंतर से भी फैसला होता है। बिहार में 500 वोट से भी फैसला हुआ है। ऐसे में कुछ विधानसभा क्षेत्रों में हो सकता है कि ब्राह्मण वोट कांग्रेस में जाएं।’
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कांग्रेस के गिरने के साथ- साथ ही बसपा का उदय हुआ है। इसी तरह अगर कांग्रेस मजबूत होती है तो बसपा के वोट शेयर पर भी असर पड़ेगा। ऐसे में जनता को कांग्रेस की कमजोरी और अस्पष्टता की याद दिलाकर बसपा अपना आधार बनाए रखना चाहती है।
दलित वोटों का डर
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि श्कांग्रेस और बसपा दोनों के वोट बैंक का बड़ा आधार जाटव दलित रहे हैं। लेकिन, 1977 में आपातकाल के बाद से इसमें गिरावट आनी शुरू हो गई। बाबू जगजीवन राम और राम विलास पासवान जैसे नेताओं की कांग्रेस के इस आधार में बड़ी सेंध लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके बाद 1984 में कांशीराम द्वारा बसपा की स्थापना के बाद दलितों को अपनी पार्टी मिल गई। वो उसकी तरफ चले गए। लेकिन अब भी कांग्रेस और बसपा के बीच जाटव दलित वोटों को लेकर टकराव है। अगर बसपा का ये वोट बैंक खिसकेगा तो वो कांग्रेस के पास जा सकता है। प्रियंका गांधी ने ‘गंगा यात्रा’ के जरिये इस वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की। इसलिए मायावती बयान देकर लोगों को सतर्क करती रहती हैं।
राज्य में तकरीबन 22 फीसद दलित आबादी है जिनमें जाटव का वोट शेयर काफी बड़ा है। ऐसे में सभी दलों की नजर इस वोट बैंक पर रहती आई है। दलितों को लेकर कांग्रेस और बसपा में पहले भी टकराव दिखा है। जब राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश में एक दलित के घर रूकने पर मायावती ने कहा था कि राहुल गांधी दलितों के घर से लौटने पर विशेष साबुन से नहाते हैं। हालांकि मायावती बीजेपी के खिलाफ भी बोलती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर आक्रामकता नहीं दिखाती, क्योंकि बीजेपी और बसपा का उतना समान वोट बैंक नहीं है जितना की कांग्रेस और बसपा का है।
बसपा और कांग्रेस के बीच तल्खी काफी पुरानी है। दोनों ही पार्टियों के नेता एक-दूसरे के दलों में जाते रहे हैं। कांग्रेस का पुराना दलित वोट बसपा ने लिया है। अब बसपा का वोट दूसरी पार्टियों में जा रहा है। जबकि गैर जाटव वोट कांग्रेस में चला गया। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी उनका नुकसान हुआ था जब कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन, 2009 के बाद कांग्रेस की हालत बहुत खराब हो गई।
ब्राह्मण और मुस्लिम वोट
लगभग ऐसी ही स्थिति ब्राह्मण और मुस्लिम वोट के साथ है। एक समय था जब मायावती ब्राह्मण वोटों के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी थीं। जानकार कहते हैं कि बसपा ने अपना ये आधार खो दिया है। हालांकि इस चुनाव में बसपा ने ब्राह्मण वोट साधने की पूरी कोशिश की है। चुनाव में ‘प्रबुद्ध सम्मेलन’ के साथ प्रचार अभियान की शुरुआत करते हुए ही उन्होंने इसके संकेत दे दिए थे। इस प्रचार अभियान के दौरान बसपा ने ब्राह्मणों के साथ अत्याचार होने और मुसलमानों के साथ सौतेला व्यवहार होने की बात कही थी। इसके लिए उन्होंने बीजेपी, सपा और कांग्रेस तीनों को निशाने पर लिया था। उत्तर प्रदेश में 1989 के विधानसभा चुनाव से कांग्रेस का क्षरण शुरू हुआ था। इसके साथ ही बसपा का भी उदय होने लगा, जो ब्राह्मण और मुस्लिम वोट पहले कांग्रेस के पक्ष में था वो बिखर कर सपा, बसपा और बीजेपी में आ गया।
साल 2002 तक मुलायम सिंह बड़े नेता बनकर उभरे और कांग्रेस व बीजेपी के लिए चुनौती बन गए। इसी बीच धीरे-धीरे बसपा ने भी रफ्तार पकड़ी और अगले ही चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। ऐसे में कांग्रेस से निकला ब्राह्मण और मुस्लिम वोट सपा और बीजेपी से होते हुए बसपा के पास आया। बसपा को ब्राह्मणों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन करके जिताया था। 2002 के चुनाव में बीजेपी के ब्राह्मण नेताओं ने भी मायावती का समर्थन किया था क्योंकि उस समय मुलायम सिंह को रोकना था, लेकिन, 2007 में उन्होंने बीजेपी के समर्थन के बिना ब्राह्मणों का समर्थन हासिल कर लिया। उस समय बीजेपी और कांग्रेस दोनों कमजोर हो गई थीं। हालांकि तीन-चार सालों में ही बसपा के पास से ब्राह्मणों का समर्थन कम होता गया।
दरअसल, मायावती चाहती हैं कि अगर उत्तर प्रदेश में बीजेपी कमजोर होती है और ब्राह्मण वोट खिसकता है तो वो कांग्रेस में ना जाकर बसपा के पास आए। कांग्रेस के कमजोर रहने में उन्हें फायदा मिल सकता है। मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा भी बसपा, कांग्रेस और सपा के बीच ही रहता है, क्योंकि कांग्रेस कमजोर स्थिति में है तो मुस्लिम वोटों का उससे छिटकना संभव है। ये वोट भी बसपा अपनी तरफ करना चाहती है। इसके लिए उन्होंने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे हैं।