प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार सुबह अचानक लेह पहुंचकर हर किसी को चौंका दिया। उनके इस दौरे को चीन और दुनिया को मैसेज देने के तौर पर देखा जा रहा है। इस दौरे के कूटनीतिक और राजनीतिक मायने क्या हैं? इससे क्या चीन सीमा पर तनाव और बढ़ेगा? चीन और दुनिया को इससे क्या संदेश जाएगा? इस पूरे मसले पर हमने विदेश मामलों के जानकार हर्ष वी पंत से बातचीत की।
यह साफ है कि भारत सरकार इस पूरे मामले में चीन को अंडर स्कोर कर रही है। सरकार यह बताना चाह रही है कि यह विवाद एकतरफा चीन ने पैदा किया है। वह जमीन कल भी हिंदुस्तान के पास थी, आज भी है। हमारे प्रधानमंत्री वहां जा सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी खुद वहां जाकर यह बता रहे हैं कि भारत अपनी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा। वे चीन को संदेश दे रहे हैं कि भारत अपनी एक इंच जमीन नहीं छोड़ेगा, पूरा लद्दाख भारत का है।
प्रधानमंत्री का वहां जाना, इस बात को भी बताता है कि टॉप लेवल लीडरशिप इस मामले को कितनी गंभीरता से ले रही है। सरकार यह भी बता रही है कि दोनों देशों के बीच भले ही बातचीत चल रही है, लेकिन यह विवाद चीन की वजह से है। चीन बार-बार यही करता रहा है कि जब भी अरुणाचल प्रदेश में चुनाव होते हैं या प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री वहां जाते हैं, तो वो एक बयान जारी कर देता है कि यह ठीक नहीं है।
लेकिन यहां चीन यह भी नहीं बोल सकता है कि प्रधानमंत्री लेह क्यों आए हैं। चीन अपने माउथपीस मीडिया के जरिए यही कहेगा कि इस मुद्दे पर भारत में कितनी घबराहट है। भारत बौखला गया है। प्रधानमंत्री को खुद जाना पड़ रहा है। चीन किसी डिप्लोमैटिक स्टैंड की स्थिति में नहीं है।
भारत अपनी डिप्लोमेटिक रणनीति को साधने में सफल हुआ है। भारत ने हाल ही में यूनाइटेड नेशंस में हांगकांग का मुद्दा उठाया है। भारत की रूस के साथ कल वार्ता हुई, इसमें रक्षा डील भी हुई है। अमेरिका खुलकर भारत के पक्ष में बोल रहा है।
दुनिया में चीन बहुत ही अलग-थलग पड़ा हुआ है। हिंदुस्तान की यह समस्या ऐसे वक्त में आई है, जब चीन अन्य मुद्दों पर घिरा हुआ है। ऑस्ट्रेलिया से लेकर जापान, वियतनाम, यूरोप, अमेरिका तक हर कोई चीन को समस्या बता रहा है। हांगकांग, ताइवान, दक्षिण चीन सागर की भी समस्या बनी हुई है।