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क्या महाराष्ट्र में कोरोना के बहाने चल रही ठाकरे को ठिकाने लगाने की तैयारी?

क्या महाराष्ट्र में कोरोउद्धव ठाकरे बोले, महाराष्ट्र में 30 जून के बाद भी जारी रहेगा लॉकडाउन ना के बहाने चल रही ठाकरे को ठिकाने लगाने की तैयारी?
एक तरफ देश में कोरोना महामारी का संकट छाया हुआ है तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र प्रदेश में राजनीति का शीत युद्ध चल रहा है । इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि जिस प्रदेश में देश के सबसे ज्यादा कोरोना मरीज हो वहां कोरोना से बचाव की बात ना करने की बजाय सरकार को बचाने और राष्ट्रपति शासन लगाने के बयान दिए जा रहे हैं। इन बयानों से समझा जा सकता है कि महाराष्ट्र में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। यानी कि कहीं ना कहीं राजनीति की खिचड़ी जरूर पक रही है।
राजनीतिक सूत्रों की माने तो जिस तरह कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस किया गया था, उसी तरह महाराष्ट्र में भी ऐसा ऑपरेशन करने की तैयारी चल रही है। कोरोना महामारी के बीच लोटस ऑपरेशन की तैयारी में भाजपा के कई वरिष्ठ नेता ऑपरेशन थिएटर में अपनी राजनीतिक गोटियां सेट कर रहे हैं। कहां जा रहा है कि भाजपा महाअघाडी सरकार को अस्थिर करने की योजना पर काम कर रही है। फिलहाल बहाना तो कोरोना का है लेकिन असली निशाना सरकार को अस्थिर करने का है। हो सकता है इस बहाने ठाकरे को ठिकाने लगाया जाएँ।

शायद यही वजह है कि शिवसेना के संजय राउत कह रहे हैं कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है। दूसरी तरफ भाजपा के सांसद नारायण राणे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलकर कह रहे हैं कि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए। अगर कोरोना का संकट बढ़ता ही जा रहा है तो सभी दल मिलकर इसका समाधान ढूंढ सकते हैं। लेकिन क्योंकि कोरोना पर राजनीति के बादल छाये हुए हैं तो ऐसे में कभी भी कुछ विधायक बरसने की फिराक में है। कहा जा रहा है कि वह कभी भी इधर से उधर हो सकते है। राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो चुका है। जिसमें कहा जा रहा है कि भाजपा अंदर ही अंदर शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के विधायकों से सेटिंग करने में लगी है।
इसकी भनक शायद एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार को लग गई  है। जिसके चलते वह प्रदेश के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी से मिले। इसके बाद शरद पवार सीधा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिलने गए। इसके बाद उन्होंने कहा कि उनकी महाअघाडी सरकार को कोई संकट नहीं है। सवाल उठता है कि जब संकट नहीं है तो बार-बार यह सब बात क्यों दोहराई जा रही है। कभी शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत यही बात कहते हैं तो कभी एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार यही दोहराते नजर आते हैं।
गौरतलब है कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी पर आरोप लगाते रहे हैं।  शरद पवार ने कई बार कहा है कि राजभवन राजनीति का अड्डा बन गया है। इसी के साथ शिवसेना के संजय राउत गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी पर निशाना साधते रहे हैं। लेकिन फिलहाल की स्थिति को देखें तो कांग्रेस शिवसेना सरकार को कहीं भी सपोर्ट करती दिखाई नहीं दे रही है। यहां तक कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस तरफ से बिल्कुल चुप्पी साधे हुए हैं।
ऐसे समय में जब देश में सबसे ज्यादा कोरोना वायरस के संक्रमित केस महाराष्ट्र में आ रहे हैं तो महाराष्ट्र सरकार को सलाह देने की बजाय कांग्रेस नेता रहस्यमय चुप्पी साधे हुए हैं। इसके भी मायने निकाले जा रहे हैं। आखिर क्यों राहुल गांधी इस मुद्दे पर चुप है? लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या राहुल गांधी की राजनीति दिल्ली के प्रवासी मजदूरों तक ही सीमित होकर रह गई है। जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने मजदूरों के लिए 1000 बस भिजवाने का प्रस्ताव रखती है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र की मदद के मामले पर कांग्रेस मौन क्यों है?
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीट है। जिसमें भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा सीट मिली और वह 105 विधायकों के साथ ही पहले नंबर पर रही। इसके चलते भगत सिंह कोश्यारी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव भेजा था। वह मुख्यमंत्री बन भी गए थे, लेकिन बहुमत हासिल नहीं कर पाए। इसके बाद महाअघाडी गठबंधन हुआ जिसमें शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई। मुख्यमंत्री उधव ठाकरे को बनाया गया, जबकि उपमुख्यमंत्री एनसीपी के नेता अजीत पवार को बनाया गया। याद रहे कि महाराष्ट्र में दूसरे नंबर पर शिवसेना है। शिवसेना के 56 विधायक हैं जबकि एनसीपी के 54 और कांग्रेस के 44 विधायक है।

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