सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। भाजपा इसे अब तक की अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मान रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे राममंदिर और हिंदुत्व का मुद्दा गरमाता जा रहा है। भाजपा अयोध्या के बाद अब मथुरा और काशी पर सियासी एजेंडा सेट करने में जुट गई है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का हालिया बयान इसी ओर इशारा करता है। जिसके बाद कहा जा रहा है कि पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे पर ही चुनावी मैदान में उतरेगी।

दरअसल, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे से अपनी सियासी जमीन मजबूत करने वाली भाजपा एक कदम आगे बढ़ते हुए नए राजनीतिक एजेंडे पर चलने की ओर अग्रसर हो गई है। वहीं अयोध्या से दूरी बनाए रखने और खुद को सेक्युलर कहने वाली पार्टियां धीरे-धीरे सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ आयोध्या की तरफ कदम रख रही है। यह कहीं न कहीं भाजपा की रणनीतिक जीत को दर्शाता है। इससे भाजपा के उत्साहित रणनीतिकारों को लगता है कि यदि विपक्ष हिंदुत्व की मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहती है तो क्यों न नए सियासी एजेंडे पर चुनाव लड़ा जाए। इसी एजेंडे के तहत उत्तर प्रदेश के उपमुख्यंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने 30 नवंबर को ट्वीट करते हुए कहा था अयोध्या और काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है। मथुरा की तैयारी है। जिसके बाद प्रदेश में राजनीतिक शुरू हो गई है।
राजनीतिक विश्लेशकों कहना हैं कि भाजपा को जहां भी मौका मिलता है,वह हिंदुत्व के एजेंडे को आगे कर देती है। ऐसे में भाजपा ने धार्मिक आधार पर 2022 के चुनाव के लिए अपनी प्राथमिकता तय कर ली है। अब्बा जान इसकी पहली कड़ी थी। फिर ‘जिन्ना’ का मुद्दा और अब अयोध्या के राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने साथ-साथ काशी और मथुरा की बात को खुलकर उठाना शुरू कर दिया है। जो इस बात का संकेत है कि भाजपा हिंदुत्व के एजेंडे पर ही 2022 चुनाव लड़ेगी।
वही विपक्षी पार्टियों का मानना है कि भाजपा मथुरा का मुद्दा उठाकर उत्तर प्रदेश के चुनाव को हिंदू-मुस्लिम करने की कोशिश कर रही है। क्योंकि भाजपा ने आपने पांच साल के कार्यकाल में कोई विकास का काम नहीं कि है। प्रदेश की कानून-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। बेरोजगारी और भ्रष्टाचार चरम पर है। युवा रोजगार के लिए परेशान हैं। सूबे के मुख्य मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए फिर से मुथरा का मामला ये लोग उठा रहे हैं ताकि हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। बीजेपी कहती है कि अयोध्या-काशी-मथुरा हमारे लिए चुनाव के मसले नहीं हैं, बल्कि आस्था से जुड़ा मामला है। हम सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के केंद्रों को सहेजने के साथ-साथ सजाने व संवारने का काम कर रहे है।
विपक्ष जाति की बिसात पर अपना सियासी एजेंडा सेट कर रहा है। खासकर अखिलेश यादव ओबीसी जातियों के बीच आधार रखने वाली पार्टियों के साथ गठबंधन कर रहे हैं। वह जातिगत आरक्षण और दलित-ओबीसी से जुड़े मुद्दों पर बीजेपी को घेर रहे हैं। सपा की यह रणनीति बीजेपी के लिए टेंशन बढ़ा रही हैं, क्योंकि बीजेपी को यह बात बखूबी पता है कि जाति के एजेंडे पर वो पार नहीं पा सकती है। ऐसे में बीजेपी के तमाम नेता इसी कोशिश में है कि किसी न किसी तरह 2022 के चुनाव में हिंदुत्व के एजेंडे पर लड़ा जाए। इसी सिलसिले में कुछ दिन पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लखनऊ में अयोध्या के राम मंदिर का मुद्दा उठाते हुए सपा को घेरा था और कहा था। अखिलेश यादव को मैं याद दिलाता हूं कि आपकी पार्टी की सरकार में निर्दोष रामभक्तों को गोलियों से भून दिया गया था। आज उसी जगह पर रामलला शान के साथ गगनचुंबी मंदिर में विराजमान होने वाले हैं। सीएम योगी ने भी 3 नवंबर को अयोध्या में कहा था कि यह वही अयोध्या है जहां रामभक्तों पर गोली चलाई जाती रही है। अब कारसेवकों पर गोली नहीं फूल बरसेंगे। तेजी से चल रहा राम मंदिर का निर्माण कार्य अयोध्या-काशी-मथुरा बीजेपी के एजेंडे में शुरू से शामिल रहे है।

6 दिंसबर 1992 में बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने विध्वंस कर दिया था। उस समय वीएचपी का एक नारा था- ‘बाबरी मस्जिद झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है। मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और कृष्ण जन्मभूमि और वाराणसी में काशी में विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद है।अखिल भारत हिंदू महासभा ने अयोध्या की तरह मथुरा में ईदगाह स्थल पर बाल गोपाल का जलाभिषेक करने के लिए 6 दिसंबर को कारसेवा की घोषणा कर रखी थी। हालांकि, मथुरा में धारा 144 लागू होने के कारण यह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है।