बाल विवाह निषेध अधिनियम पर असम सरकार द्वारा कड़े रुख अपनाये जाने के कारण पूरे असम में अफडा-तफडी का माहौल है। अपने परिवार वालों को बचाने की कोशिश में महिलाएं खुद सरकार के विरोध में सड़कों पर उतर आई हैं। अब तक इस मामले में लगभग 2 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
महिलाओं और उनके परिवार के अंदर प्रशासनिक कार्यवाहियों का इतना डर बैठ गया है कि वे महिलाएं जो इस दौरान गर्भावस्था की स्थिति में हैं और मां बनने वाली हैं वो अपनी चिकित्सकीय प्रक्रिया के लिए अस्पताल जाने से भी घबरा रही हैं, चिकित्सकों का कहना है कि महिलाएं डिलीवरी की डेट पर भी अस्पताल नहीं आती हैं जिसके कारण बच्चा और मां दोनों ही असुरक्षित रहते हैं । उन्हें इस बात का डर है कि अगर वह अस्पताल जाती हैं तो उनकी उम्र का पता सरकार को चल जाएगा और उनके पति और बच्चे के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही होगी और उसके पति व पिता आदि परिजनों को गिरफ्तार कर लिया जायेगा। हाल ही में एक महिला की मृत्यु इसी कारण हो गई की वह सरकार से अपनी उम्र छुपाने की कोशिश में डिलीवरी के लिए अस्पताल नहीं गई और घर पर ही अपने बच्चे को जन्म दिया। जिसमें डॉक्टर ने बताया कि यह एक किशोर गर्भावस्था का मामला है। किसी अनुभवहीन ने घर पर ही बच्चे की डिलीवरी करवाई थी। उस युवती को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था। घर पर ही बच्चे का जन्म करवाने के कारण यह और जटिल हो गया और लड़की की मौत हो गई।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, असम देश में सबसे अधिक मातृ एवं शिशु मृत्यु दर वाला राज्य है। इन मौतों के पीछे एक बड़ा कारण बाल विवाह है। असम में 31 प्रतिशत विवाह में एक नाबालिग लड़का या लड़की शामिल है। यानी ऐसी शादियों में लड़की की उम्र 18 साल से कम और लड़कों की उम्र 21 साल से कम होती है।
क्या है मामला
असम सरकार ने राज्य में बाल विवाह के खिलाफ सख्त नीति अपनाई है। इसी नीति के तहत कड़ी कार्रवाई की जा रही है। असम में बाल विवाह को रोकने के लिए पिछले कई दिनों से प्रयास किए जा रहे हैं। अब सरकार ने बाल विवाह और इन शादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है। गौरतलब है कि देश में एक ओर जहाँ बाल विवाह को क़ानूनी रूप से अपराध वहीं दूसरी ओर असम राज्य में बाल विवाह के आंकड़े बढ़ते जा नजर आ रहे हैं। आकंड़ों के अनुसार राज्य अभी भी करीब 4 हजार मुकदमे सिर्फ और सिर्फ बाल विवाह कानून की धाराओं में दर्ज हुए। इन आंकड़ों को देखते हुए असम सरकार एक्शन में आ गई और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा ने ट्वीट कर कहा कि राज्य सरकार शुरू से ही बाल विवाह के खतरों से वाकिफ थी। इसी का परिणाम है कि राज्य की पुलिस ने 4 हजार से ज्यादा मुकदमे सिर्फ और सिर्फ बाल विवाह कानून का मखौल उड़ाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ दर्ज किए हैं। जिससे यह साफ़ नजर आ रहा है की किस तरह कानून की धज्जिया उड़ाई जा रही है।
क्या है बाल विवाह कानून
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के तहत 18 वर्ष से पहले विवाह को बाल विवाह के रूप में परिभाषित किया गया है। अगर कोई किसी भी प्रकार से बाल विवाह को बढ़ावा दे रहा है और इसमें शामिल है तो कानून इस प्रथा को मानव अधिकार का उल्लंघन मानता है। क्योंकि बाल विवाह का बच्चों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है जैसे, बच्चे का शिक्षा ,परिवार और दोस्तों से अलगाव, यौन शोषण, जल्दी गर्भावस्था जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव, घरेलू हिंसा , उच्च शिशु मृत्यु दर, कम वजन वाले शिशुओं का जन्म आदि।
भारत सरकार ने बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 के पहले के कानून के स्थान पर बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 को लागू किया। जिसका उद्देश्य बाल विवाह और इससे जुड़े और आकस्मिक मामलों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना है। इस अधिनियम द्वारा बाल विवाह पर रोक लगाने, पीड़ितों को राहत देने और इस तरह के विवाह को बढ़ावा देने या इसे बढ़ावा देने वालों के लिए सजा बढ़ाने के जैसे प्रावधानों को उपलब्ध करवाता है।