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ऐतिहासिक रही प्रचंड की भारत यात्रा

तीन दिवसीय भारत दौरे पर आए नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल का झुकाव भारत की तुलना में चीन की ओर ज्यादा रहा है। लेकिन उनके इस दौरे में भारत और नेपाल के बीच जो समझौते हुए हैं उन्हें कूटनीतिक दृष्टि से ऐतिहासिक माना जा रहा है
भारत-नेपाल में क्या-क्या संधि हुई
दोनों देशों के बीच ट्रांजिट एग्रीमेंट संपन्न किया गया है। इसमें नेपाल के लोगों के लिए नए रेल रूट्स के साथ-साथ भारत के इनलैंड वाटर रूट्स की सुविधा का भी प्रावधान होगा।
नए रेललिंक्स बनाकर फिजिकल कनेक्टिविटी बनाने का फैसला लिया गया है।
नेपाल के रेल कर्मियों को भारत में प्रशिक्षण दिया जाएगा।
क्राॅस-बाॅर्डर डिजिटल पेमेंट के माध्यम से फाइनेंशियल कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा।
भारत और नेपाल के बीच दीर्घकालीन पावर ट्रेड
एग्रीमेंट हुआ है। इसके तहत आने वाले दस वर्षों में नेपाल से 10 हजार मेगावाट बिजली आयात करने का लक्ष्य रखा गया है।
नेपाल में एक उर्वरक संयंत्र स्थापित करने के लिए भी एक समझौता किया गया है।
पड़ोसी देश नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड 31 मई से 3 जून तक तीन दिवसीय दौरे पर भारत आए हुए थे। प्रचंड का भारत की तुलना में चीन की तरफ ज्यादा झुकाव माना जाता है। बीते कुछ सालों में नेपाल का भारत के प्रति रुख भी कुछ ठीक नहीं रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि उनके इस दौरे से क्या बदलने वाला है? प्रचंड ने भारत और नेपाल के बीच किस संधि में संशोधनों पर दस्तखत किए हैं। इसमें नेपाल का क्या फायदा है?
दोनों देशों के शीर्ष नेता जब मिले तो पूरी गर्मजोशी से मिले और दोनों के बीच जो समझौते हुए उन्हें कूटनीतिक दृष्टि से अहम माना जा रहा है, खासकर बिजली के क्षेत्र में हुए समझौते। आने वाले दस वर्षों में दस हजार मेगावाट बिजली आयात का लक्ष्य, नई तेल पाइपलाइन, पर्यटन से लेकर क्यूआर कोड के जरिए व्यापारिक लेन-देन जैसे समझौते ऐतिहासिक माने जा रहे हैं।
कालापानी विवाद सुलझने के आसार
नेपाली प्रधानमंत्री ने इस दौरे में भारत के साथ सीमा विवाद को भी सुलझाने के संकेत दिए हैं। कालापानी को लेकर लंबे समय से तनातनी का दौर चल रहा था। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जल्द ही इस विवाद का स्थाई समाधान हो सकता है। दोनों देश इस विवाद को सुलझाने के लिए जमीन की अदला- बदली कर सकते हैं। साल 2020 में नेपाल ने अपने नक्शे में कालापानी, लिपुलेख दर्रे और लिपियाधूरा को शामिल किया था। माना जा रहा था कि नेपाल ने यह नक्शा चीन की शय पर जारी किया था, जिसके बाद यह विवाद चरम पर पहुंचने के साथ दोनों देशों की सुर्खियों में आ गया था। अब इसके सुलझने के कयास लगाए जा रहे हैं।
क्या है कालापानी विवाद  
उत्तराखण्ड के कालापानी क्षेत्र का क्षेत्रफल 372 वर्ग किलोमीटर है। इस इलाके पर आईटीबीपी (भारत तिब्बत सीमा पुलिस) का नियंत्रण है। तीन गांव और तीन हजार की आबादी वाले इस इलाके में लिपुलेख दर्रे के जरिए व्यापार होता है। वर्ष 2020 में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख दर्रे को उत्तराखण्ड के धारचूला से जोड़ने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सड़क का उद्घाटन किया। जिस पर नेपाल ने विरोध जमकर जताया था। भारत के साथ ऐतिहासिक संबंध होने के बावजूद नेपाल ने नया नक्शा पेश किया, जिसमें कालापानी को अपना हिस्सा दिखाया। विवाद को सुलझाने के लिए भारत सरकार ने 1980 में एक समिति का गठन किया, लेकिन उसका भी कोई हल नहीं निकला। 1997 में भारत और नेपाल ने विवादित स्थल पर एक संयुक्त टीम भेजने का फैसला किया, लेकिन यह भी आगे नहीं बढ़ पाया।
यात्रा से नेपाल को क्या फायदा
वर्ष 1999 में नेपाल और भारत के बीच ट्रांजिट संधि हुई थी। हर सात साल में ये एग्रीमेंट स्वतः रिन्यू हो जाता था। आखिरी बार जनवरी 2020 में यह एग्रीमेंट रिन्यू हुआ था। अब इसमें जो संशोधन हुए हैं उनसे आयात और निर्यात में लगने वाले समय और लागत में कमी आएगी और भी कई फायदे होंगे। नेपाल अभी तक सामान के आयात और निर्यात के लिए भारत के कोलकाता बंदरगाह का इस्तेमाल करता रहा है। एग्रीमेंट में जो नए बदलाव हुए हैं, उनसे नेपाल को भारत के दूसरे जलमार्गों तक भी पहुंच मिल जाएगी।
प्रचंड के दौरे के राजनीतिक मायने
प्रचंड के बारे में कहा जाता है कि वह भारत और अमेरिका को साम्राज्यवादी देश मानते आए हैं। भारत ने नेपाल को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के पक्ष में अमेरिका और यूरोपीय संघ का समर्थन हासिल करने में भी मदद की थी। लेकिन साल 2013 में प्रचंड ने कहा था कि भारत को नेपाल की राजनीति को माइक्रो मैनेज करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। प्रचंड ने चेतावनी दी थी कि यह भारत के लिए ही हानिकारक होगा। प्रचंड ने यह भी कहा कि जब नेपाल में पश्चिमी देशों की भूमिका बढ़ी तो इसके जवाब में चीन ने भी नेपाल में अपनी मौजूदगी और प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की।
नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युबराज घिमिरे की इंडियन एक्सप्रेस अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पीएम प्रचंड के दिल्ली आने से कुछ घंटे पूर्व ही नेपाली राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल द्वारा नेपाल के नागरिकता कानून में एक संशोधन पर अपनी सहमति दी गई। संशोधन के मुताबिक, नेपाली पुरुषों से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं को नेपाली नागरिकता के लगभग सभी अधिकारों सहित राजनीतिक अधिकारों की भी गारंटी मिलेगी। राष्ट्रपति पौडेल का उठाया यह कदम चीन के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। क्योंकि चीन लगातार इस कानून के खिलाफ बयान देता रहा है। चीन का कहना है कि यह कानून तिब्बती शरणार्थियों को नागरिकता और संपत्ति के अधिकार दिला सकता है।
सिरदर्द बनी भारत यात्रा
भारत यात्रा से लौटने के बाद अब नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ की यह यात्रा उनके लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो रही है। एक तरफ प्रचंड इस दौरे को बहुत सफल बता रहे हैं। वहीं दूसरी ओर यह दौरा विपक्षी पार्टियों के लिए उन पर हमले का एक कारण बन गया है। सभी विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर अब उनके खिलाफ एकजुट हो गई हैं। विपक्षी दलों ने पीएम पर नेपाल को भारत के हाथों पूरी तरह से बेचने का आरोप लगाया है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत माक्र्सवादी लेनिनवादी, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी और नेपाल मजदूर किसान पार्टी सहित विपक्ष पीएम पर हमलावर है।
महाकाल मंदिर में पूजा पर बवाल
प्रचंड द्वारा दिसंबर 2022 में पद संभालने के बाद उनकी यह पहली आधिकारिक विदेश यात्रा थी। प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्रचंड की बैठक में दोनों देशों की ओर से सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए और नयी रेल सेवाओं सहित छह परियोजनाओं की शुरुआत पर भी मुहर लगाई गई। इस बीच उन्होंने उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना भी की। पूजा के दौरान प्रचंड मंदिर में भगवा रंग की शाॅल ओढ़े दिखाई दिए। उन्होंने यात्रा के दौरान मंदिर में सौ रुद्राक्ष और 51 हजार रुपये चढ़ाए। उनकी इस पूजा पर भी उनके देश नेपाल में हंगामा हो रहा है।
गौरतलब है कि 31 मई 2023 को प्रचंड भारत आए और तीन जून तक रहें। प्रचंड ने बीते साल दिसंबर में नेपाल के प्रधानमंत्री का पद संभाला था। वे नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ नेपाल-माओवादी (माओवादी) के नेता हैं। प्रचंड का दिल्ली हवाई अड्डे पर भारत सरकार में विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने स्वागत किया था। इससे पहले भी प्रचंड, साल 2008 और 2016 में नेपाली प्रधानमंत्री के तौर पर भारत की यात्रा पर आ चुके हैं।

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