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लखनऊ संसदीय क्षेत्र की 09 विधानसभा सीटों पर 23 फरवरी वाले दिन वोट डाले जायेंगे। लगभग 60 लाख की आबादी वाले लखनऊ में वोटरों की संख्या तकरीबन 39 लाख है। जिसमें से महिला वोटरों की संख्या 18 लाख के आसपास है। अर्थात आधी आबादी की भूमिका को नजरअंदाज करना राजनीतिक दलों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। गौरतलब है कि आधी आबादी की ताकत का आंकलन यदि किसी दल ने किया है तो वह कांग्रेस हैं। यही वजह है कि कांग्रेस ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के उद्घोष के साथ मैदान में है। अधिकतर सीटों पर उसने महिलाओं को ही प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस अपने इस मिशन कितना सफल होती है, यह देखने वाला होगा। यदि कांग्रेस की सीटों में बढ़ोत्तरी होती है तो यह मान लेना चाहिए के प्रियंका गांधी का फार्मूला काम कर गया जिसका असर अगले लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।

अब आइए नजर डालते हैं लखनऊ की समस्त 09 विधानसभा सीटों पर ताल ठोंक रहे प्रत्याशियों की दावेदारी पर।

 

लखनऊ पश्चिम से भाजपा के टिकट पर इस बार अंजनी श्रीवास्तव को मैदान में उतारा गया है जबकि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव ने सपा के मोहम्मद रेहान को 13 हजार से भी अधिक मतों के अंतर से शिकस्त दी थी। इस सीट पर सपा ने भी इस बार मोहम्मद रेहान के स्थान पर अरमान को मैदान में उतारा है। साफ है कि सपा को अपने मुस्लिम वोट बैंक पर अधिक भरोसा है। हालांकि लखनऊ पश्चिम विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक अवश्य है लेकिन इस सीट पर भाजपा का ही वर्चस्व रहा है। यहां से कांग्रेस ने भी मुस्लिम प्रत्याशी पर भरोसा जताया है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के वायदे को पूरा किया है और शहाना सिद्दीकी नाम की मुस्लिम महिला को मैदान में उतारा है। बसपा ने कयाम रजा खान को मैदान में उतारकर मुकाबले को दिलचस्प कर दिया है। यदि मुस्लिम मतदाताओं में बिखराव होता है तो निश्चित तौर पर इसका सीधा लाभ भाजपा के पक्ष में जायेगा। इधर ‘आप’ ने राजनीति के नए खिलाड़ी राजीव बख्शी को मैदान में उतारकर पहले ही हार मान ली है। लखनऊ पश्चिम में मतदाताओं की संख्या तकरीबन 2 लाख है। ऊंट किस करवट बैठेगा? इसका फैसला तो 23 फरवरी वाले दिन ईवीएम में कैद हो जायेगा और 10 मार्च वाले दिन फैसला भी सुना दिया जायेगा लेकिन इस सीट पर प्रमुख राजनीतिक दलों ने जिन प्रत्याशियों को दांव पर लगाया है उनका राजनीतिक भविष्य लखनऊ पश्चिम की जनता की उंगली पर निर्भर टिका हुआ है।

लखनऊ मध्य विधानसभा क्षेत्र की तस्वीर भी इस बार बेहद रोमांचक स्थिति में है। इस सीट पर कांग्रेस और आप ने मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है जबकि सपा से रविदास मेहरोत्रा, भाजपा से रजनीश गुप्ता और बसपा से आशीष श्रीवास्तव मैदान में हैं। देखा जाए तो हिन्दु बाहुल्य इस इलाके में भाजपा प्रत्याशी रजनीश गुप्ता की दावेदारी मजबूत नजर आ रही है जबकि सपा से रविदास मेहरोत्रा अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। इलाके में हो रही चर्चा को आधार मानें तो मुस्लिम वोटरों में यदि बिखराव न हुआ तो निश्चित तौर पर रविदास मेहरोत्रा भाजपा के रजनीश गुप्ता पर भारी पड़ सकते हैं। रही बात कांग्रेस और आप प्रत्याशियों की तो इन प्रत्याशियों की जीत तो दूर इन्हें लड़ाई में भी नहीं माना जा रहा है। कांग्रेस के सदफ जाफर मैदान में ताल ठोंक रहे हैं तो दूसरी ओर आप प्रत्याशी नदीम अशरफ ने पूरा जोर लगा रखा है। चर्चा यहां तक है कि कांग्रेस और आप ने मुस्लिम वोटरों में बिखराव की गरज से ही मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। यदि कांग्रेस और आप के प्रत्याशी मुस्लिम वोट पाने में सफल होते हैं तो निश्चित तौर पर सपा की स्थिति कमजोर होगी।

लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर बृजेश पाठक की स्थिति काफी मजबूत नजर आ रही है। सपा ने इस सीट से सुरेन्द्र गांधी को मैदान में उतारा है। कैंट विधानसभा सीट वीआईआई सीट मानी जाती है। वर्ष 2017 में इस सीट से भाजपा के टिकट पर रीता बहुगुणा जोशी ने बाजी मारी थी। इस बार भाजपा ने बृजेश पाठक पर भरोसा जताया है। हालांकि व्यक्तिगत रूप से सुरेन्द्र गांधी और सपा पर भरोसा करने वालोें की संख्या भी कम नहीं है लेकिन कोरोना काल में मिस मैनेजमेंट, महंगाई मुद्दे ने जिस तरह से भाजपा की छवि बिगाड़ी है उसे देखते हुए इस सीट पर संघर्ष की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसी सीट पर कांग्रेस से दिलप्रीत सिंह, बसपा से अनिल पाण्डेय और आप से अजय कुमार मैदान में ताल ठोंक रहे हैं।

लखनऊ उत्तर से भाजपा के टिकट पर नीरज बोरा मैदान में हैं। उत्तर प्रदेश में राज्यपाल रह चुके मोतीलाल बोरा के पुत्र नीरज बोरा ने भले ही अपनी छवि आम जनता के बीच न बनायी हो लेकिन यह क्षेत्र आंख बंद करके भाजपा प्रत्याशी पर भरोसा करता है। यहां की जनता प्रत्याशी पर नहीं बल्कि पार्टी पर ज्यादा भरोसा करती है। यदि महंगाई मुद्दे और बेरोजगारी की समस्या आड़े नहीं आयी तो निश्चित तौर पर नीरज बोरा का जीतना तय है। दूसरे स्थान पर सपा की पूजा शुक्ला की दावेदारी मानी जा रही है। पूजा शुक्ला पहली बार सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने जा रहीं हैं। खास बात यह है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्र का टिकट काटकर पूजा शुक्ला को मैदान में उतारा है। जाहिर है पूर्व विधायक का टिकट कटना सपा के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है जिसका लाभ सीधे नीरज बोरा को मिलना तय है। पूजा शुक्ला समाजवादी पार्टी की फायर ब्रांड युवा नेत्रियों में से एक मानी जातीं हैं। पूजा शुक्ला मौजूदा सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के कारण चर्चा में आयीं हैं। सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। समाजवादी छात्रसभा की तेज तर्रार लीडर पूजा शुक्ला का नाम लखनऊ यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को काला झंडा दिखाने में भी आ चुका है। उस वक्त सीएम योगी को सूबे की कमान संभाले कुछ दिन ही बीते थे। इसी घटना के बाद से पूजा शुक्ला चर्चा में आयीं।

लखनऊ पूर्व पिछले कई चुनावों से भाजपा का गढ़ बना हुआ है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र से किसी सभासद को भी मैदान में उतार दिया जाए तो उसकी जीत पक्की है। आशुतोष टण्डन को भाजपा ने एक बार फिर से मौका दिया है। आशुतोष टण्डन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से एक स्वर्गीय लालजी टण्डन के सुपुत्र हैं। लालजी टण्डन की जमीनी नेताओं में पहचान रही है। इसका लाभ भी आशुतोष टण्डन को मिलना तय है। आशुतोष टण्डन वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी लखनऊ से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। यहां से सपा ने वरिष्ठ सपा नेता अनुराग सिंह भदौरिया को मैदान में उतारा है। अनुराग भदौरिया की दावेदारी को कमतर आंकना भाजपाइयों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष मनोज तिवारी कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। इलाके में युवाओं के बीच इनकी खास पकड़ है। खासतौर से उत्तराखण्ड के मूल निवासियों का पूरा कुर्मांचल नगर मोहल्ला कांग्रेस प्रत्याशी मनोज तिवारी के पक्ष में नजर आ रहा है। बसपा से आशीष और आप से आलोक इस जंग में कहीं नजर नहीं आ रहे।

इस बार सरोजनीनगर विधानसभा क्षेत्र में कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। नौकरशाही से राजनेता तक का सफर तय करने वाले राजेश्वर सिंह को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है जबकि इस क्षेत्र से सपा के अभिषेक मिश्रा को टिकट दिया गया है। अभिषेक मिश्रा इससे पूर्व लखनऊ उत्तर विधानसभा सीट से विधायक चुने जा चुके हैं। जाहिर है सपा का वोट बैंक अपना प्रभाव दिखा सकता है। कांग्रेस से रूद्रदमन सिंह और बसपा से जलीस खान सहित आप प्रत्याशी रोहित श्रीवास्तव की दावेदारी में दम नजर नहीं आ रहा।

मलिहाबाद विधानसभा सीट पर भाजपा की दावेदारी मजबूत नजर आ रही है। भाजपा ने यहां से जयदेवी को मैदान में उतारा है। जयदेवी जमीनी स्तर की नेता हैं। इलाके में इनकी पहचान काम करने वाले नेताओं में शुमार है। सपा के टिकट पर सोनू कन्नौजिया भाजपा के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। यदि यहां की जनता के मन में थोड़ा भी बदलाव आता है तो निश्चित तौर पर इसका सीधा लाभ सपा के सोनू कन्नौजिया को ही मिलेगा। बसपा ने यहां से जगदीश रावत और कांग्रेस ने इंदल रावत को मैदान में उतारा है। आप ने यहां से किसी को टिकट नहीं दिया है।

मोहनलालगंज (सुरक्षित) विधानसभा सीट पर सपा की दावेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यहां से सपा ने राजनीति की दिग्गज खिलाड़ी सुशीला सरोज को मैदान में उतारा है जबकि भाजपा राजनीति के नए खिलाड़ी अमरेश कुमार के सहारे जंग जीतने की ख्वाब संजोए बैठी है। यहां से कांग्रेस ने ममता चौधरी को मैदान में उतारा है जबकि बसपा के टिकट पर देवेन्द्र सरोज तीसरे नम्बर पर नजर आ रहे हैं। आप के टिकट पर सूरज कुमार भी ताल ठोंक रहे हैं। इलाकाई निवासियों की मानें तो सूरज कुमार अपनी जमानत भी नहीं बचा पायेंगे।

बक्शी का तालाब विधानसभा में कांटे की टक्कर नजर आ रही है। इस क्षेत्र से सपा उम्मीदवार गोमती यादव बाजी मारते नजर आ रहे हैं जबकि भाजपा के टिकट पर खडे़ योगेश शुक्ला दूसरे नम्बर पर दिख रहे हैं। कांग्रेस के लल्लन कुमार डमी प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं जबकि बसपा की तरफ से सलाउद्दीन सिद्दीकी सपा के वोट बैंक पर सेंध लगाते नजर आ रहे हैं।

बात यदि लखनऊ की समस्त 09 सीटों पर प्रत्याशियों की संख्या की करें तो सर्वाधिक प्रत्याशी बीकेटी और सरोजनीनगर में हैं। बीकेटी में 24 और सरोजनीगर में 23 प्रत्याशी मैदान में हैं। महिलाबाद में सबसे कम 11 प्रत्याशी भाग्य आजमा रहे हैं। लखनऊ पश्चिम से 21, लखनऊ उत्तर से 20, लखनऊ पूर्व से 20, लखनऊ मध्य से 16, लखनऊ कैंट से 18 और मोहनलालगंज विधानसभा क्षेत्र से 15 प्रत्याशी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं।

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