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‘अभी तो मैं जवान हूं’

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पांच राज्यों में इन दिनों चल रहे विधानसभा चुनावों की गहमागहमी के बीच चुनाव प्रचार छोड़ एकाएक ही अपने गृह राज्य गुजरात के महानगर अहमदाबाद पहुंचते हैं। उनकी यात्रा का उद्देश्य बताया जाता है, अहमदाबाद शहर में एक निजी अस्पताल का उद्घाटन करना। इत्तेफाक से ठीक इसी दिन 28 मार्च 2021 को महाराष्ट्र की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के दो बड़े नेता शरद पवार और प्रफुल पटेल भी एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अहमदाबाद में मौजूद थे। यहां तक इसे इत्तेफाक माना जा सकता है। लेकिन फिर अचानक ही इत्तेफाक को इत्तेफाक न मानने वाली खबरें चलने लगी। ऐसी खबर जिसके चलते महाराष्ट्र में ‘महाविकास अघाड़ी’ की सरकार का भविष्य दांव पर लग सकने का अनुमान अहमदाबाद से होता हुआ दिल्ली और महाराष्ट्र के सत्ता गलियारों में सुनामी बन छा चुका है। खबर के आते ही कयासबाजियों का दौर शुरू हो चला है कि राजनीति के खेल के मास्टर ब्लास्टर शरद पवार कुछ ऐसी खिचड़ी पका रहे हैं जिसका असर जल्द ही उद्धव ठाकरे सरकार पर पड़ सकता है। शरद पवार का राजनीतिक जीवन नजदीक से देख चुके राजनेताओं और विश्लेषकों के अनुसार पवार महाविकास अघाड़ी सरकार से अलग हो सकते हैं। भले ही वे भाजपा साथ गठबंधन न भी बनाएं, उनकी रणनीति ठाकरे के बजाए भाजपा सरकार की ताजपोशी करा सकती है ताकि मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह द्वारा राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर लगाए गए भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की आंच शरद पवार तक न पहुंच पाए। इस कथित गुफ्तगु की बाबत हालांकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने सिरे से इंकार कर दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री का स्पष्ट रूप से इंकार न करना इशारा करता है कि कुछ न कुछ झोल जरूर है। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में पार्टी के बड़े नेता सजंय राउत का देखमुख पर कड़े शब्दों में प्रहार करना और गठबंधन सरकार में साझीदार कांग्रेस का शरद पवार से जवाब-तलब करना यह समझने के लिए काफी है कि दोनों ही दलों के नेता शरद पवार की विश्वसनीयता को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। पवार की अविश्वसनीय छवि का नाता उनके दागदार अतीत से है। इसलिए पवार की पावर पाॅलिटिक्स को समझने के लिए उनके अतीत की यात्रा करना जरूरी है।

मौकापरस्ती और भ्रष्टाचार से लबरेज अतीत

शरद पवार ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1958 में कांग्रेस पार्टी के यूथ विंग में शामिल हो की थी। महाराष्ट्र के दिग्गज नेता यशवंत राव चव्हाण की छत्रछाया में वे तेजी से कांग्रेस में तरक्की पाते गए। यशवंत राव के कहने पर ही 1970 में महाराष्ट्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसंतराव नाईक ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर गृहमंत्री बनाया था। 1977 में कांग्रेस की लोकसभा चुनावों में भारी पराजय के बाद पवार के राजनीतिक गुरु यशवंत राव चव्हाण इंदिरा गांधी का साथ छोड़ कांग्रेस (यू) में शामिल हो गए। पवार ने भी कांग्रेस (यू) का दामन थाम लिया। 1978 में लेकिन जब राज्य विधानसभा के चुनाव नतीजे आए तब एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस (इंदिरा) और कांग्रेस (यू) गठबंधन कर सत्ता में काबिज हो गए। इस सरकार में पवार उद्योग एवं श्रममंत्री बनाए गए थे। यहां से उनकी सत्ता लोलुपता का उत्कर्ष काल शुरू हुआ। इस सरकार के गठन के कुछ माह बाद ही पवार ने जनता पार्टी संग गठजोड़ कर अपनी ही सरकार गिरा डाली और 38 बरस की उम्र में राज्य के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन गए।

1980 में केंद्र में कांग्रेस सरकार बनते ही उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। 80-87 तक पवार भाजपा के साथ बने रहे। 1985 में प्रोगेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट के लीडर बतौर वे राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए गए। इस फ्रंट में भाजपा जनता पार्टी और पवार की समाजवादी कांग्रेस शामिल थे। 1987 में एक बार फिर से अवसरवादी राजनीति का उदाहरण पवार ने पेश किया। वे कांग्रेस में वापस शामिल हो गए। इसका ईनाम 1988 में तत्कालीन प्रधनमंत्री राजीव गांधी ने महाराष्ट्र का सीएम बनाकर दिया। 1990 में हुए विधानसभा चुनावों बाद दोबारा बनी कांग्रेस सरकार का नेतृत्व पवार को ही मिला और वे तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए।

प्रधानमंत्री बनने का ध्वस्त ख्वाब

वर्ष 1991 में राजीव गांधी की नृशंस हत्या बाद कांग्रेस में नेतृत्व का घमासान शुरू हुआ। शरद पवार की महत्वाकांक्षाएं अब उन्हें महाराष्ट्र छोड़ दिल्ली की गद्दी तरफ धकलने लगी थी। 1992 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए जो महाराष्ट्र से सबसे ज्यादा सांसद कांग्रेस को मिले थे। पवार ने खुद को पीएम बनाने के लिए जबरदस्त लाॅबिंग शुरू कर दी। बाजी लेकिन पीवी नरसिम्हा राव के हाथ लगी। पवार को रक्षामंत्री पद पर ही संतोष करना पड़ा। 1993 में हुए मुबंई बम धमाकों के बाद कांग्रेस ने तत्कालीन सीएम सुधाकर राव का इस्तीफा करा पवार की राज्य वापसी करा दी। वे चैथी बार महाराष्ट्र के सीएम बने। इस बार लेकिन उनका मुख्यमंत्रित्वकाल सबसे ज्यादा विवादास्पद होने जा रहा था। पवार ने शायद इतने विवादों की कल्पना भी नहीं की थी। उन पर मुंबई बम धमाकों की जांच को गुमराह करने के आरोप सबसे पहले लगने शुरू हुए। अभी वे इन आरोपों से उबर भी नहीं पाए थे कि एक ईमानदार सरकारी अधिकारी और एक समाजसेवी ने उन्हें महाभ्रष्ट नेता का खिताब दे उनकी परेशानियों में चार गुना इजाफा कर डाला।

खैरनार और अन्ना हजारे ने दिया महाभ्रष्ट करार

यह ईमानदार अधिकारी थे वृहद मुंबई महानगर पालिका के डिप्टी कमिश्नर जीआर खैरनार और समाजसेवी थे अन्ना हजारे। खैरनार ने पवार पर भ्रष्टाचार के साथ-साथ अपराधियों संग गठजोड़ के गंभीर आरोप लगा महाराष्ट्र के साथ-साथ राजनीति में भूचाल ला दिया। समाजसेवी अन्ना हजारे ने एक कदम आगे बढ़कर वन विभाग के 12 भ्रष्टतम अफसरों की बर्खास्तगी की मांग को लेकर आमरण-अनशन शुरू कर पवार की सत्ता को हिला डाला। इन सबका बड़ा असर राज्य विधनसभा के नतीजों से समझा जा सकता है। 1995 में हुए चुनावों में कांग्रेस को शिव सेना भाजपा गठबंधन के हाथों करारी हार मिली और मनोहर जोशी के नेतृत्व में पहली बार शिवसेना को राज्य में अपना मुख्यमंत्री मिल गया। सत्ता से बेदखल हुए पवार को दिल्ली की गद्दी पर बैठने का ख्वाब दोबारा आने लगा था। 1997 में उन्होंने सीताराम केसरी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा लेकिन सोनिया गांधी का समर्थन न मिलने के चलते वे पराजित हो गए। पवार के लिए एक कहावत खासी प्रसिद्ध है कि वे अपने दुश्मनों को कभी माफ नहीं करते। 1999 में उन्होंने विदेशी मूल को मुद्दा बना सोनिया गांधी से अपना बदला ले लिया। कांगे्रस के दो अन्य बड़े नेता पीए संगमा और तारीक अनवर संग सोनिया के खिलाफ बगावत कर पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस का गठन कर डाला। हालांकि अपने सत्ता मोह के चलते कांग्रेस संग गठबंधन करने में उन्हें इस बगावत बाद भी ऐतराज नहीं रहा। 2004 में यूपीए सरकार के सत्ता में आने पर वे मनमोहन सिंह के कैबिनेट में यह जानते हुए भी शामिल हुए कि यूपीए की जीत का क्रेडिट उसी विदेशी मूल की सोनिया गांधी को जाता है जिनकी उन्होंने खिलाफत की थी।

पवार पर कृषि मंत्री रहते भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। 2007 में भाजपा ने उन पर गेहूं की खरीद में भारी घोटाले का आरोप लगाया। मई 2007 में Food Corporation of India ने गेहूं की खरीद के लिए अंतरराष्ट्रीय टेंडर जारी किया था जिसे पवार ने यह कहते हुए रद्द कर डाला था कि टेंडर में सबसे कम कीमत जो अमेरिकी डाॅलर 263 प्रति टन की थी, बहुत ज्यादा है। इसके बजाय पवार के आदेश पर निजी व्यापारियों को बाजार भाव से गेहूं खरीदने की छूट दी गई। नतीजा एफसीआई के गोदामों में गेहूं की भारी कमी हो गई। बाद में डाॅलर 263 प्रति टन के बजाय डाॅलर 360 प्रति टन के हिसाब से एफसीआई को गेहूं का आयात करना पड़ा। खरबों का उसे नुकसान हुआ। भाजपा ने इसे तब बड़ा मुद्दा बनाया था। महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने तब शरद पवार से इस पर जवाब तलब किया था। इसी दौरान उन पर जान-बूझकर चीनी की किल्लत पैदा कर जमाखोरों को लाभ पहुंचाने के आरोप भी लगे थे। एक घातक रसायन ENDOSUL FAN को प्रतिबंधित न करने के चलते पवार को एक्टिविष्ट वंदना शिवा ने तब महाभ्रष्ट कह पुकारा था।

ऐसा अतीत फिर भी पद्म विभूषित

इतने शानदार अतीत वाले शरद पवार को ‘भय, भूख और भ्रष्टाचार’ से नफरत करने वाली भाजपा की केंद्र में काबिज नरेंद्र भाई दामोदर दास मोदी सरकार ने यदि पद्म विभूषण से सम्मानित किया तो इसके मायने समझे जाने जरूरी हैं। पद्म सम्मानों की शुरुआत 1954 में हुई। भारत सरकार द्वारा मानवीय सरोकारों के किसी भी क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए चार सम्मान प्रतिवर्ष दिए जाते हंै। सबसे बड़ा है भारत रत्न, उसके बाद पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्मश्री। शरद पवार को 2017 में देश के दूसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्मविभूषण का दिया जाना भारतीय राजनीति राजनेता और लोकतंत्र की दशा-दिशा पर बहुत कुछ कह जाता है। शब्दों पर विशेष ध्यान दीजिए। यह सम्मान ‘अतुलनीय’ एवं ‘स्मरणीय’ योगदान के लिए दिए जाना वाला सम्मान है। शरद पवार निश्चित ही अतुलनीय राजनेता हंै, यह उनकी संक्षिप्त जीवन यात्रा से आप समझ चुके होंगे। 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान पत्रकार राजदीप सर देसाई ने पवार से पूछा था कि ‘वे कब राजनीति से संन्यास लेंगे? पवार का उत्तर था ‘अभी तो मैं जवान हूं।’ यकीनन मानसिक तौर पर उनकी जवानी अतुलनीय है। इसलिए पूरी कथा का सार निकलता है कि उद्धव ठाकरे सरकार वाकई संकट में हैं। कभी भी उसकी विदाई हो सकती है और आने वाले गणतंत्र दिवस पर पवार साहब को उनकी अतुलनीय’ सेवा के चलते भारत रत्न दिया जा सकता है।

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