कुछ दिन पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की। हालांकि संगठन यह सूची हर साल जारी करता है। लेकिन इस बार की रिपोर्ट भारत के लिए खतरे की घंटी है। अक्सर भारत में राजधानी दिल्ली के अलावा गिने- चुने मैट्रो सिटी के प्रदूषण पर ही कभी-कभार चर्चा होती है। छोटे सिटी (सेकेंड टीयर) के प्रदूषण की तो कभी खबर भी नहीं बनती। जबकि डब्ल्यूएचओ की इस बार के रिपोर्ट में प्रदूषण के मामले में यूपी का कानपुर शहर टॉप पर आ गया है। सिर्फ कानपुर ही नहीं बल्कि टॉप 20 में एक दर्जन के करीब छोटे सिटी ने भी प्रदूषण में अपनी जगह पक्की की है। हालांकि वर्ष 2014 की रिपोर्ट में भी छोटे शहरों की स्थिति कमोबेश यही थी। फिर भी न सरकारी स्तर और न ही मीडिया के स्तर पर यह खबर बनी।
रिपोर्ट में दिल्ली विश्व का छठा सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है। कानपुर, दिल्ली के अलावा फरीदाबाद, वाराणसी, गया, पटना, लखनऊ, आगरा, मुजफ्फरपुर, श्रीनगर, गुरुग्राम, जयपुर, पटियाला और जोधपुर के नाम भी इसमें शामिल हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह समस्या देश के बड़े शहरों से कहीं ज्यादा छोटे शहरों की है। छोटे शहरों में गाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आबादी बढ़ने से शहरों का बेतरतीब ढंग से विकास हो रहा है। रात-दिन कंस्ट्रक्शन का काम हो रहा है। इससे धुएं और धूल की गंभीर समस्या पैदा हो गई है। छोटे शहरों में राज्य सरकारों का इस ओर ध्यान जाता ही नहीं है।
राजधानी दिल्ली में तो सरकार को आईना दिखाने और फटकारने के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी हैं। जिससे यहां का प्रदूषण सुर्खियों में रहता है। विभिन्न देशों के डेलिगेट्स, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद एवं बड़े उद्योगपतियों का निवास होने के कारण यहां का प्रदूषण खबर बनता है। सरकार में एक स्तर तक हलचल भी मचती है। चर्चा होती है। कुछ कार्यवाही भी होती है। लेकिन छोटे शहरों के प्रदूषण पर कुछ नहीं होता। यहां तक कि राष्ट्रीय मीडिया में वह एक कॉलम की खबर तक नहीं बनती, क्योंकि इन शहरों में निम्न एवं मध्यम वर्गीय परिवार रहते हैं।
इन छोटे शहरों में न केवल बेतरतीब निर्माण कार्य हो रहे हैं। बल्कि आबादी बढ़ने के साथ ही यहां वाहन भी तेजी से बढ़े हैं। निजी वाहनों के अलावा इन छोटे शहरों में यात्री ढोने वाले टैम्पू वर्षों पुराने चलते हैं। इन पुराने टैम्पू में पेट्रोल के साथ कैरोसीन तेल भी मिला दिया जाता है। जिससे प्रदूषण बहुत ज्यादा फैलता है। दिल्ली और कुछ मैट्रो सिटी में यूरो सिक्स वाहन और नए ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है, पर छोटे शहरों में आज भी इस तरह की अनिवार्यता नहीं की गई है और न ही इसे लागू करने की साफ नीयत राज्य सरकारों और प्रशासन में दिखती है। यही वजह है कि प्रदूषित शहरों की लिस्ट में 13 भारत के सेंकेंड टीयर शहर और अन्य छोटे शहर शामिल हैं।
दुनिया में हर साल 70 लाख से अधिक लोगों की मौत वायु प्रदूषण के चलते होती है। दक्षिण-पूर्व एशिया में रहने वाले 60 फीसदी लोगों के पास साफ ईंधन नहीं है। डब्ल्यूएचओ की दक्षिण-पूर्व एशिया की रीजनल डायरेक्टर पूनम क्षेत्रपाल सिंह के अनुसार, इस रीजन में सभी देश अपने लोगों तक साफ ईंधन और तकनीक पहुंचाने में लगे हैं। इसके बावजूद 60 प्रतिशत लोगों के पास अब भी साफ ईंधन उपलब्ध नहीं है। अगर इस विषय पर जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो घरेलू और बाहरी प्रदूषण बड़ी मुश्किलें पैदा करेंगे।
उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण को तुरंत और महत्वपूर्ण रूप से नियंत्रित करने की जरूरत है। दुनिया में नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज बढ़ रही हैं और इनमें प्रदूषण का महत्वपूर्ण रोल है। साफ हवा से इन बीमारियों से निपटने में मदद मिलेगी। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ देश प्रयास और उपाय कर रहे हैं। इस संदर्भ में, भारत की प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल दो वर्षों में गरीबी रेखा से नीचे 3 करोड़ 70 लाख महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराए गए हैं। यह स्वच्छ घरेलू ऊर्जा के लिए बहुत जरूरी है। भारत ने 2020 तक इस योजना को 8 करोड़ परिवारों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के सभी देश स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयास कर रहे हैं। मगर अभी किए जा रहे प्रयासों का कोई ज्यादा असर देखने को नहीं मिला है। इसलिए डब्ल्यूएचओ के दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय निदेशक पूनम क्षेत्रपाल सिंह का कहना है कि घरेलू और बाहरी वायु प्रदूषण के संयुक्त प्रभाव से जल्द और कड़ाई से निपटने की जरूरत है। सिंह ने कहा, ‘हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसे साफ करने से लोगों को स्वस्थ रखने खासकर महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों जैसे कमजोर एवं पहले से ही बीमार लोगों की सुरक्षा हो सकेगी।“
दुनिया की कई मेगासिटी डब्ल्यूएचओ के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश के स्तर से 5 गुना अधिक खराब हैं। यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। यह सिर्फ किसी एक देश या राज्य नहीं बल्कि दुनिया भर के सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चुनौती है। जिसे सभी देशों को राजनीतिक सोच से ऊपर उठकर काम करना होगा। तीन अरब से अधिक महिलाएं और बच्चे अभी भी स्टोव और अस्वच्छ ईंधन का उपयोग करने से हर दिन घातक धुआं सांस में ले रहे हैं। वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में घरों, उद्योग, कृषि, परिवहन क्षेत्रों और कोयले से बनने वाली बिजली संयंत्रों द्वारा ऊर्जा का अक्षम उपयोग शामिल है। कुछ क्षेत्रों में, रेत और रेगिस्तानी धूल, अपशिष्ट जलने और वनों की कटाई वायु प्रदूषण के अतिरिक्त स्रोत हैं। विकसित देशों में वायु प्रदूषण का स्रोत एयर कंडीशन संयंत्र है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2014 में एक रिपोर्ट जारी की थी। यह रिपोर्ट 67 देशों के 795 शहरों में प्रदूषण का अध्ययन करने के बाद तैयार की गई थी।
- इस रिपोर्ट में तब दुनिया के टॉप 20 में से 13 शहर भारत के थे।
- दुनिया टॉप 10 में से चार शहर भारत के हैं। ये चारों शहर सेकेंड टीयर के हैं। तब ग्वालियर दूसरा, इलाहाबाद तीसरा, पटना छठा और रायपुर सातवें नंबर पर था।
- दिल्ली 11 वें नंबर पर था। इनके अलावा लुधियाना, कानपुर, खन्ना (पंजाब स्थित एशिया का सबसे बड़ा अनाज मंडी), लखनऊ, फिरोजाबाद (यूपी में चूड़ी और कांच के सामान का सबसे बड़ा निर्माण केंद्र) प्रदूषित शहरों की सूची में 12, 15, 16, 17 और 18 वें नंबर पर था।
- असम का तेजपुर शहर प्रदूषण स्तर के मानक सीमा के अंदर था।
- सेकेंड टीयर शहरों में यूपी का आगरा, बनारस, झांसी, कानपुर, लखनऊ आदि शहर हैं। छतीसगढ़ का रायपुर, कोरबा और रायगढ़ हैं। मध्यप्रदेश के इंदौर, भोपाल, उज्जैन, देवास, सिंगरोली आदि शहर सूची में हैं।
- निम्न एवं मध्यम आय वाले एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले विश्व के 98 फीसदी शहरों की स्थिति चिंताजनक है। इन शहरों में पिछले पांच वर्षों में वायु प्रदूषण पांच गुणा बढ़ा है।
- रिपोर्ट के मुताबिक विश्व की 80 फीसदी शहरी आबादी जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं।
- वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष दुनिया में 70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु हो रही है। इनमें से करीब तीन लाख मौतें बाहरी वायु प्रदूषण से होती हैं।
‘प्रदूषण सीमाओं को नहीं पहचानता’
वरिष्ठ पर्यावरणविद् वंदना शिवा से संवाद
डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के मुताबिक छोटे शहरों में प्रदूषण चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है। आप क्या कारण मानती हैं?
देश भर में ग्रामीण आबादी तेजी से पलायन कर रही है। ये छोटे शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। पेड़-पौधे काटकर छोटे शहरों का विस्तार हो रहा है। वहां वाहनों की संख्या बढ़ रही है। वहां निर्माण कार्य में किसी रूल्स को फॉलो नहीं किया जाता। नतीजा वहां की हवा में धूल के कण अत्यधिक होते हैं।
इसे कैसे कंट्रोल किया जा सकता है?
वायु प्रदूषण रोकने और कम करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानक तय किए गए हैं। हमने राष्ट्रीय स्तर पर भी रूल्स बनाए हैं। हमें उनका पालन करना होगा। सरकारों को इसे सख्ती से पालन करवाना होगा?
छोटे शहरों का प्रदूषण देश के लिए कितना घातक है?
प्रदूषण छोटे या बड़े शहर का नहीं होता। प्रदूषण, प्रदूषण है, जो खतरनाक और जानलेवा है। वायु प्रदूषण सीमाओं को नहीं पहचानता है। वह एक स्थान से दूसरे स्थान तक फैलता चला जाता है। हमें तो इसके लिए सख्त होना ही पड़ेगा। पूरी दुनिया को मिलकर एक साथ सभी स्तरों पर निरंतर और समन्वित ढंग से इस पर काम करना होगा।
‘सभ्यता खत्म करने के लिए प्रदूषण ही काफी’
केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. एस.के. निगम से बातचीत
डब्ल्यूएचओ की हालिया रिपोर्ट आपने देखी होगी। छोटे शहरों में प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ा है। क्या कहेंगे?
मानव सभ्यता को खत्म करने के लिए किसी युद्ध की जरूरत नहीं है। उसके लिए प्रदूषण ही काफी है। यदि हमें अपने आप को दुनिया को बचाना है तो इस पर कंट्रोल तेजी से करना होगा।
कंट्रोल कौन करेगा?
प्रदूषण को रोकना सिर्फ सरकार के वश की बात नहीं है। सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर के रूल्स बनाए हैं। सभी राज्य सरकारों को एडवाइजरी जारी किए जाते हैं। सरकारों की जिम्मेवारी है कि वे इसे सख्ती से पालन करवाएं। इसके अलावा हमें भी अपनी जिम्मेवारी समझनी होगी। ऐसे कई काम करके हम प्रदूषण को नियंत्रित कर सकते हैं। आम लोगों का सहयोग चाहिए।
इसकी जिम्मेदारी सिर्फ राज्य और जनता की है?
नहीं, सबकी है। मैंने कहा न कि सबको मिलकर इस पर गंभीरता से काम करना होगा। रूल्स के पालन की जिम्मेवारी समझनी होगी