इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार 11 मई को यूपी सरकार को पंचायत चुनावों के दौरान कोविड़-19 के कारण ड्यूटी पर मारे गए मतदान अधिकारियों को दी जाने वाली मुआवजे की राशि को वापस करने के लिए कहा और कहा कि राशि “कम से कम 1 करोड़ रुपए होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि सरकार द्वारा तय की गई राशि (30 लाख रुपये) से परिवार की रोटी कमाने वाले के जीवन की क्षति की भरपाई करना बहुत कम था। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पीठ ने राज्य में कोविड़-19 के प्रसार को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की।
अदालत ने कहा, ‘‘परिवार की आजीविका चलाने वाले व्यक्ति की जिंदगी का मुआवजा और वह भी राज्य और निर्वाचन आयोग की ओर से जानबूझकर उस व्यक्ति को आरटीपीसीआर सहायता के बगैर ड्यूटी करने के लिए बाध्य करने के चलते कम से कम एक करोड़ रुपये होना चाहिए। हमें आशा है कि राज्य निर्वाचन आयोग और सरकार मुआवजे का राशि पर पुनर्विचार करेगी।’’
मेरठ में एक अस्पताल में 20 मरीजों की मृत्यु पर अदालत ने कहा, ‘‘भले ही यह एंटिजेन टेस्टिंग के लिए संदिग्ध रूप से कोरोना से मृत्यु हो, हमारा विचार है कि मृत्यु के इस तरह के सभी मामलों को कोरोना से मृत्यु के मामले के तौर पर लिया जाना चाहिए। अदालत ने मेरठ के मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य को उन 20 मृत्यु की सटीक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।
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प्रधानाचार्य ने अदालत को बताया कि मृत्यु की तिथि से पूर्व, 20 व्यक्तियों को अस्पताल में भर्ती किया गया था जिसमें से तीन व्यक्ति कोरोना से संक्रमित पाए गए थे, जबकि अन्य का एंटिजेन टेस्ट कराया गया और रिपोर्ट निगेटिव आई थी। प्रधानाचार्य ने अदालत को बताया कि मृत्यु की तिथि से पूर्व, 20 व्यक्तियों को अस्पताल में भर्ती किया गया था जिसमें से तीन व्यक्ति कोरोना से संक्रमित पाए गए थे, जबकि अन्य का एंटिजेन टेस्ट कराया गया और रिपोर्ट निगेटिव आई थी।
राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) के वकील तरुण अग्रवाल ने अदालत को बताया था, कि 28 जिलों में 77 मतदान अधिकारियों की मृत्यु हो गई थी और अन्य जिलों से रिपोर्ट आनी अभी बाकी थी।
मंगलवार 11 मई को अग्रवाल ने विवरण लाने के लिए और समय मांगा। मतदान अधिकारियों की ओर से वकीलों ने कहा कि “सरकार द्वारा तय की गई राशि बहुत कम थी।”
एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और अजीत कुमार ने निर्देश दिया कि राज्य के प्रत्येक जिले में, तीन सदस्यीय “महामारी लोक शिकायत समिति” का गठन किया जाएगा और इसमें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या समान रैंक के एक न्यायिक अधिकारी को शामिल किया जाएगा। वह अन्य सदस्य मेडिकल कॉलेज के प्राध्यापक होंगे, जिन्हें मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य द्वारा नामांकित किया जाएगा और यदि कोई मेडिकल कॉलेज नहीं है, तो जिला अस्पताल के तीन या चार डॉक्टर, जिन्हें मुख्य चिकित्सा अधीक्षक द्वारा नामित किया जाएगा।
तीसरा सदस्य जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामित अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट रैंक का एक प्रशासनिक अधिकारी होगा। अदालत ने आदेश दिया कि समितियों को आदेश पारित करने के 48 घंटे के भीतर अस्तित्व में आना चाहिए। अदालत ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में शिकायत एसडीएम को सौंपी जा सकती है जो इसे समितियों को सौंपेंगे।
अदालत ने कहा कि अगर वह गोरखपुर, लखनऊ, प्रयागराज, गौतमबुद्धनगर, और कानपुर के नोडल अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट पर विचार करे तो “दिए गए आकड़ों की बजॉय मौत का यह दृश्य कहीं ज्यादा भयावह है। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले पर फैसला 17 मई को सुनाएंगा।