- प्रियंका यादव, प्रशिक्षु
भारत में आबादी का मामला बहुत संवेदनशील है। एक तरफ सांप्रदायिक विभाजन है तो दूसरी ओर जातीय बंटवारा भी बहुत गहरा है। इस वजह से हर बार आबादी का आंकड़ा भारत में एक खास किस्म के विमर्श को जन्म देता है। पिछले हफ्ते जैसे ही विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र संघ के जनसंख्या डिवीजन ने यह आंकड़ा जारी किया कि अगले साल भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा वैसे ही इस पर देशभर में राजनीति शुरू हो गई
गत सप्ताह विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन’ रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत 2023 तक आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ सबसे बड़ा देश बन जाएगा। मौजूदा समय में भारत की कुल जनसंख्या 1.412 अरब है जबकि चीन की 1.426 अरब है। संयुक्त राष्ट्र संघ ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन’ की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की जनसंख्या 2022 के मध्य तक 7 अरब से बढ़कर 8 अरब तक पहुंच जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1950 से जनसंख्या दर धीमी गति से बढ़ रही थी। साल 2020 में इसकी दर में 1 प्रतिशत की कमी आई लेकिन अब इस रिपोर्ट के आने के बाद चौकाने वाली बात यह है कि भारत 2023 तक आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि अगले वर्ष 2023 तक भारत चीन को पीछे छोड़ देगा और सबसे अधिक जनसंख्या वाल देश बन जाएगा और 2050 तक यह आंकड़ा 1 .668 अरब तक पहुंच सकता है। सयुंक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि साल 2030 तक विश्व की जनसंख्या बढ़कर 8.5 अरब तक पहुंच जाएगी और 2050 तक 9. 7 अरब 2080 में, 10.4 अरब तक पहुंच जाएगी। इस रिपोर्ट के आने के बाद बढ़ती आबादी को लेकर देशभर में राजनीति भी शुरू हो गई है।
इसकी शुरुआत जनसंख्या दिवस के मौके पर देश की बढ़ती जनसंख्या को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कथन से हुई। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘जनसंख्या पर नियंत्रण करने के प्रयास करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि समुदायों के बीच आबादी का संतुलन न बिगड़े, ऐसा न हो कि किसी एक समुदाय वर्ग विशेष की आबादी तेजी से बढ़ जाए और यहां के मूल निवासी की आबादी कम हो जाए।’ उनका यह बयान देश के अल्पसंख्यक समुदाय को आहत कर रहा है। इस बयान के बाद अल्पसंख्यक समुदाय को ऐसा लग रहा है कि जनसंख्या असंतुलन का जिम्मेदार केवल अल्पसंख्यक समुदाय है। मुख्यमंत्री का यह बयान भाजपा के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को भी रास नहीं आया। नकवी ने इस बयान की आलोचना करते हुए ट्वीट किया कि जनसंख्या विस्फोट किसी मजहब की नहीं पूरे मुल्क की समस्या है। इसे जाति, धर्म से जोड़ना जायज नहीं हैं।
विश्व जनसंख्या दिवस के मौके के दौरान योगी आदित्यनाथ ने बयान दिया था। जिसमें उन्होंने जनसंख्या असंतुलन हर उस देश के लिए चिंता का विषय बताते हुए कहा कि जहां जनसंख्या असंतुलन की स्थिति पैदा होती हैं। इससे धार्मिक जनसांख्यिकी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। एक समय के बाद उस जनसांख्यिकी असंतुलन वाले देश में अव्यवस्था और अराजकता पैदा होने लगती है। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण जाति, मजहब, क्षेत्र भाषा, से ऊपर उठकर समाज में समान रूप से जागरूकता के व्यापक कार्यक्रम से जुड़ने की जरूरत है। सीएम योगी के इस कथन पर आलोचकों का मानना है कि योगी सरकार खास तौर पर मुस्लिम वर्ग पर निशाना साध रही है। मुख्यमंत्री द्वारा इस समुदाय को टारगेट किए जाने के कारण विवादित बयानों के लिए सुर्खियों में रहे समाजवादी पार्टी के शफीकुर्रहमान बर्क ने सरकार को नसीहत देते हुए सरकार को सलाह दी कि सरकार मुस्लिमों के बच्चों को तालीम की व्यवस्था सुनिश्चित करे। सरकार का ध्यान जनसंख्या नियंत्रण कानून को बनाने में नहीं बल्कि बच्चों की शिक्षा पर होना चाहिए। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी तो कौम की बढ़ती आबादी अपने आप कम हो जाएगी। हालांकि उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण मामले में एक बेतुका बयान भी दिया। उनका मानना है कि बच्चों को पैदा करने का जाति तौर पर इंसान से कोई ताल्लुक नहीं हैं। बच्चे पैदा करने का ताल्लुक अल्लाह से है। यदि अल्लाह बच्चे पैदा करता है तो उसके खाने-पीने का इंतजाम भी वही करता है। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि बीजेपी नेता जानबूझकर गलत बयानबाजी कर रहे हैं। वह ऐसा इसलिए कर रहे है ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी एक वर्ग का वोट उन्हें निश्चित तौर पर मिल सके।
दूसरी तरफ इस मामले में ओवैसी का कहना है कि उनके अपने ही स्वास्थ्य मंत्री ने माना है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए देश में किसी कानून की जरूरत नहीं है। ज्यादातर गर्भनिरोधक का इस्तेमाल मुसलमान ही कर रहे हैं। 2016 में कुल प्रजनन दर 2.6 थी जो अब 2.3 है।’ दरअसल टू चाइल्ड पॉलिसी पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कहा था ‘ऐसे प्रयास करना चाहिए जिससे जनता स्वयं परिवार नियोजन को अपनाए। इसके लिए कानून जरूरी नहीं है।’
इस बीच नागालैंड के शिक्षा मंत्री ‘तेमजेन इमना अलांग’ ने अजीबो-गरीब बयान दिया है। उनके मुताबिक बढ़ती जनसंख्या को लेकर हमें और ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए और बच्चे पैदा करने के दूसरे विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए। अगर वह नहीं कर सकते हैं तो मेरी तरह सिंगल रहना चाहिए। हम साथ मिलकर सभी को अच्छा भविष्य देंगे। आप साथ आएं और मेरे साथ सिंगल रहने वाले आंदोलन में जुड़ जाएं।
अब इस मामले को लेकर हो रही प्रतिक्रियाओं के बीच इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का भी बयान सामने आया है। उन्होंने कहा है कि जीवित रहना जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। सिर्फ खाना और आबादी बढ़ाना तो जानवर भी करते हैं। शक्तिशाली ही जीवित रहेगा, यह जंगल का कानून है। लेकिन दूसरों की रक्षा करना ही मनुष्य की निशानी है। मनुष्य के कई कर्तव्य होते हैं, जिनका निर्वाहन उन्हें समय-समय पर करते रहना चाहिए।
इन प्रतिक्रियाओं के बीच सपा के एक सांसद ने भाजपा पर आरोप लगाए हैं कि वह मुस्लिम समुदाय का हौसला तोड़ने के लिए कभी मुस्लिम आबादी कम करने की बात कहती है तो कभी आबादी बढ़ाने का जिम्मेदार मुस्लिम समुदाय को ठहरती है। बेरोजगारी, महंगाई और बुनियादी चीजों से ध्यान भटकाने के लिए भाजपा नेताओं द्वारा गलत बयानबाजी अक्सर की जाती रही है।
हिंदू आबादी मुस्लिम आबादी से ज्यादा नहीं
योगी आदित्यनाथ के अनुसार जनसंख्या स्थिरीकरण में हमे ध्यान रखना होगा कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम सफलता के साथ आगे बढ़े लेकिन समुदायिक जनसंख्या असंतुलन की स्थिति उत्पन्न न हो। जिन देशों में समुदायिक जनसंख्या असंतुलन हुई है वहां अराजकता ही फैली है। योगी आदित्यनाथ के बयान से जाहिर होता है कि वे भविष्य में हिंदू अबादी की प्रतिशत दर कम होने की ओर संकेत कर रहे हैं। बीते वर्ष संयुक्त राष्ट्र की प्यू रिसर्च के मुताबिक वर्ष 1947 में बंटवारे के बाद से अब तक भारत की जनसंख्या तीन गुनी बढ़ी है। साल 1951 में भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी, जो साल 2011 तक 120 करोड़ के करीब पहुंच गई थी। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार इस अवधि में भारत में हर प्रमुख धर्मों की आबादी बढ़ी है। हिंदुओं की आबादी 30 करोड़ से बढ़कर 96.6 करोड़, मुसलमानों की आबादी 3.5 करोड़ से बढ़कर 17.2 करोड़। 1951 में जहां भारत की आबादी में 9.8 प्रतिशत मुसलमान थे, 2011 में उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गई। इसके मुकाबले हिंदुओं का हिस्सा 84.1 फीसदी से घटकर 79.8 फीसदी रह गई। रिपोर्ट के अनुसार जनसंख्या दर में कमी उन अल्पसंख्यक समुदाय में आई है, जो पिछले कुछ दशकों तक हिंदुओं से कहीं ज्यादा हुआ करती थी।
यदि इसी शिक्षा और संपन्नता का प्रभाव लोगों पर आने वाले वर्षों में रहेगा तो विकसित देशों की तरह ही भारत में भी जनन दर की क्षमता और कम हो जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में धार्मिक आबादी सबसे बड़ी है। संयुक्त राष्ट्र की प्यू रिसर्च के मुताबिक देखा जाए तो भारत में 2019 से 2021 तक प्रजनन दर घटी है। 2019-21 तक हिंदुओं में प्रजनन दर 1.94 फीसदी रही तो मुस्लिम प्रजनन दर 2.6 फीसदी कम हुई है।
जनसंख्या वृद्धि का कारण
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कई कारण हैं जिसकी वजह से आबादी इतनी अधिक होती जा रही है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण परिवार नियोजन न होना है। अधिकतर भारतीय परिवारों में खासकर निम्न वर्गीय परिवारों में या तो अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण गर्भनिरोध को पाप और पैदा होने वाले बच्चे को भगवान का आशीर्वाद मानते हैं जिसके कारण परिवार के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होती है और यह भारतीय जनसंख्या पर प्रभाव डालती है। साथ ही चिकित्सा में सुधार के कारण मृत्यु दर में भी कमी आई है।