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कश्मीर पर फिर गरमाई सियासत

यूरोपियन यूनियन (ईयू) के सांसदों ने कश्मीर दौरा क्या किया कि देश की सियासत गरमा उठी है। जानकारों के मुताबिक यूरोपीय सांसदों को जम्मू-कश्मीर का दौरा एक कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। संभवतः सरकार दुनियाभर में संदेश देना चाहती है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सामान्य है। पाकिस्तान सिर्फ झूठ बोल रहा है। सरकार की मंशा अपनी जगह पर उचित हो सकती है। लेकिन उसके इस कदम ने विपक्ष को सवाल खड़े करने का अवसर दे दिया है। कांग्रेस के कई नेताओं ने तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि जब यूरोपीय यूनियन के सांसद जम्मू-कश्मीर का दौरा कर सकते हैं, तो भारतीय सांसदों पर प्रतिबंध क्यों? खुद वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रह्मण स्वामी के सुर कांग्रेसी नेताओं जैसे हैं। एआईएर्मआइ एम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तो यूरोपीय सांसदों की तुलना नाजी लपर्स से कर डाली है।
सवाल ये भी उठ रहा है कि इन सांसदों में ज्यादातर दक्षिणपंथी रुझान वाले हैं। इस दौरे का इंतजाम किसने किया? किसने पैसा दिया? इसके अलावा कश्मीर के कई नेताओं ने भी शिकायत की है कि उन्हें यूरोपीयन सांसदों के समूह से मिलने नहीं दिया गया।

कहा जा रहा है कि सुरक्षा के बेहद कड़े इंतजामों के बीच ईयू सांसद श्रीनगर घूमते रहे। उनकी सैर के बीच इत्तिफाक से वो हिरासत केंद्र भी आए और पीछे छूट गए जहां दर्जनों कैद नेताओं के साथ तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी बंद हैं। सरकार इन्हें दिखाना चाहती थी कि सब कुछ ठीक है, लेकिन जमीनी हालात इससे मेल नहीं खा रहे थे। स्थानीय नेताओं के मुताबिक आने वाले प्रतिनिधिमंडल के लिए सूनी सड़कें एक इशारा भर थीं। ये साफ लग रहा था कि डेलीगेशन का दौरा बहुत सख्त नियंत्रण के तहत हो रहा था। सांसदों ने सेना मुख्यालय में सेना अधिकारियों से मुलाकात की जहां उन्हें सुरक्षा के बारे में जानकारी दी गई। इसके अलावा उन्होंने पंचायत सदस्यों से भी मुलाकात की। लेकिन कई लोगों ने शिकायत की कि कोई भी अहम सामाजिक संगठन या कारोबारी संगठन या मुख्यधारा का राजनीतिक दल प्रतिनिधिमंडल से मिल नहीं सका। नेशनल काॅन्फ्रेंस के दो सांसदों ने बताया कि उन्हें ग्रु।से मिलने से रोका गया। यही नहीं, इनके दौरे के पीछे एक अनजान संस्था का हाथ होने की बात भी कही जा रही है।

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर से पांच अगस्त को आर्टिकल 370 के कई प्रावधान खत्म किये जाने के बाद अब पहली बार किसी विदेशी प्रतिनिधिमंडल ने कश्मीर का दौरा किया है। यूरोपियन यूनियन (ईयू) के सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने 29 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर का दौरा किया। घाटी की स्थिति के बारे में कथित पाकिस्तानी दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए इसे सरकार की एक प्रमुख कूटनीतिक पहल माना जा रहा है। जिसके तहत इन नेताओं को ‘स्वयं ही चीजों को देखने’ की अनुमति दी गई थी।

घाटी में जाने से पहले 28 अक्टूबर के दिन डेलिगेशन ने पीएम नरेंद्र मोदी और उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मुलाकात की थी। पीएम मोदी ने कहा था, ‘आतंकवाद को सपोर्ट करने वाले, उसे बढ़ावा देने वाले या ऐसी गतिविधियों और संगठनों का समर्थन करने वाले या स्टेट पाॅलिसी के रू।में आतंकवाद का इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।’ नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर ( एनएसए) अजीत डोभाल ने सभी सांसदों को 28 अक्टूबर के दिन लंच पर इनवाइट किया था। यहां उन्होंने डेलिगेशन को जम्मू कश्मीर की वर्तमान हालत के बारे में जानकारी दी गई और कहा कि कश्मीर में इस वक्त किसी तरह की रोक-टोक नहीं है। ये भी कहा कि सभी मोबाइल और लैंडलाइन कनेक्शन चालू हैं। सभी तरह की मेडिकल सुविधाएं भी दी जा रही हैं। उन्हें बताया कि कश्मीर में सब बढ़िया है, सब ‘नार्मल’ है।

दूसरी तरफ इस दौरे को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी की मोदी सरकार पर सवाल उठाए गए हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने विदेशी सांसदों को जम्मू-कश्मीर जाने देने और भारतीय सांसदों पर ‘बैन’ को लेकर सवाल उठाया तो वहीं, जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने भी इस दौरे का विरोध किया है। महबूबा ने ट्वीट किया, यदि आर्टिकल 370 भारत में जम्मू-कश्मीर को एकीकृत करता है, तो राहुल गांधी को कश्मीर जाने से क्यों रोक दिया गया? इसके बावजूद केंद्र सरकार द्वारा फासीवादी और फासीवादी झुकाव वाले यूरोपीय संघ के सांसदों के एक समूह को वहां जाने की अनुमति दी जाती है। कांग्रेस के अलावा खुद बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने केंद्र की मोदी सरकार के इस रुख पर हैरानी जताई है।  कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, यूरो।के सांसदों का जम्मू-कश्मीर दौरे के लिए स्वागत है, लेकिन भारतीय सांसदों पर प्रतिबंध है और एंट्री नहीं है, इसमें कहीं न कहीं कुछ बहुत गलत है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया, श्जब भारतीय नेताओं को जम्मू-कश्मीर के लोगों से मिलने से रोका जा रहा है तो सीना ठोककर राष्ट्रवाद की बात करने वाले ने क्या सोचकर यूरोपीय नेताओं को जम्मू-कश्मीर जाने की इजाजत दी? यह सीधे-सीधे भारत की अपनी संसद और हमारे लोकतंत्र का अपमान है। शशि थरूर ने भी इस दौरे का विरोध किया और कहा, कि श्लोकसभा में आर्टिकल 370 पर हुई बहस के दौरान मैंने एक अपील की थी। सभी पार्टियों के सांसदों के एक डेलिगेशन को कश्मीर भेजे जाने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन उसे अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है। लेकिन यूरोपियन पार्लियामेंट के मेंबर्स सरकार के मेहमान बनकर वहां जा सकते हैं? ये तो भारत के लोकतंत्र का अपमान है।

इसके पहले भी यूएस सीनेटर क्रिस वन होलेन ने भी श्रीनगर जाने की मंशा जाहिर की थी। लेकिन 3 अक्टूबर के दिन उनकी अपील को भी भारत सरकार ने ठुकरा दिया था। इसके अलावा और भी कई लोगों ने कश्मीर जाने की इच्छा रखी थी, सबको भारत सरकार ने मना किया था। लेकिन यूरोपियन यूनियन के सांसदों को परमिशन मिल गई। इस डेलिगेशन का कश्मीर दौरा 30 अक्टूबर के दिन प्रेस कान्फ्रेंस के साथ खत्म होगा। जाहिर सी बात है इस कान्फ्रेंस में ये सारे सांसद ये बताएंगे कि कश्मीर में क्या हालात हैं। लोगों की क्या स्थिति है? इनका दौरा खत्म होने के अगले दिन यानी 31 अक्टूबर के दिन जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अधिकारिक तौर पर केंद्र शासित राज्य बन जाएंगे। जम्मू-कश्मीर राज्य की खुद की विधानसभा होगी, लेकिन लद्दाख पूरी तरह से केंद्र शासित राज्य होगा। सीनियर आईएएस अधिकारी गिरीश चंद्र मुर्मू जम्मू-कश्मीर के पहले उपराज्यपाल होंगे। वहीं राधाकृष्ण माथुर लद्दाख के पहले एलजी बनाए गए हैं। दोनों 31 अक्टूबर के दिन कार्यभार संभालेंगे।

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