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नई दिल्ली जाति आधारित जनगणना को लेकर राजनीति तेज हो गई हैं। क्या विपक्षी दल अपने-अपने राजनीतिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए। शुरू से यह मांग उठा रहे हैं। स्थिति यह है कि बिहार में जो पार्टियां एक -दूसरे की घुर विरोधी थी। वो आज जाति आधारित जनगणना पर एक हो गई हैं।
अभी हाल में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में बताया कि इस बार एससी और एसटी के आलावा किसी और जाति की जनगणना सरकार नहीं कराएगी।इस पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित तमाम नेता ने जाति आधारित जनगणना की मांग को उठाने लगे। इन नेताओं ने तर्क दिया कि इस जनगणना से जरूरतमंदों को सामाजिक ,आर्थिक शैक्षणिक मदद मिलेंगी।
जाति आधारित जनगणना के लिए बिहार विधानसभा से दो बार सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया है। उत्तर प्रदेश ,बिहार ,ओडिशा ,महाराष्ट्र आदि के तमाम राजनीति दल भी जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं। इस तरह से ये दल केंद्र सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं।
बीते सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में बिहार की 10 पार्टियों का प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने आया और अपनी मांग रखी की की प्रतिनिधिमंडल में नीतीश कुमार के साथ बीजेपी से जनक राम,राजद से तेजस्वी यादव ,हम से जीतन राम मांझी, वीआईपी से मुकेश साहनी,कांग्रेस से अजीत शर्मा और मेहबूब आलम, सीपीआई – एम एल मिले। नीतीश कुमार ने कहा कि हमारी प्रधानमंत्री से हमारी सकारात्मक बात हुई। हम सकारात्मक परिणाम की अपेक्षा रखते हैं।
जाति आधारित जनगणना पर सभी पार्टियां अपने समीकरण और चुनावी रणनीति बनाने में लगी हुई है। 2022 में उत्तर प्रदेश ,उत्तराखंड ,पंजाब ,गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले है। इस चुनाव को देखते हुए जाति आधारित जनगणना की मांग और जोर पकड़ रही है।
चुनाव पर ओबीसी मतदाताओं का प्रभाव है। भाजपा हिंदुत्व की राजनीति, ओबीसी और अति पिछड़ी जातियों के सहारे चल रही है। उत्तर प्रदेश में ओबीसी जातियां निर्णायक भूमिका में होती है। इसलिए सभी पार्टियां समाधान चाहती हैं।इसी कारण से उत्तर प्रदेश की सरकार में बड़े ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य,अनुप्रिया पटेल शामिल हैं। इसी तरह से बिहार में भी ओबीसी मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं। इसलिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्षी नेता तेजस्वी यादव जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं।
नीतीश कुमार और तमाम नेताओं का कहना है कि जाति आधारित जनगणना ही ओबीसी जातियों के विकास में निर्णायक भूमिका निभाएगी। इससे यह भी पता चलेगा कि किस जाति की जनसंख्या किस इलाके में अधिक है, इससे विकास कार्य की योजना ठीक तरीके से काम करेगी। सही जनसंख्या पता चलने से सरकारी नौकरी,शैक्षणिक संस्थान में प्रतिनिधित्व देने का रास्ता साफ हो जाएगा। मंडल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 27 % आरक्षण देने का प्रावधान है। इसका एक यह भी पक्ष है कि संख्या पता चलने से पार्टियों को सियासी रणनीति बनाने में आसानी होगी।
देश में हर दस साल बाद जनगणना होती है ,साल 2011 में आखिरी जनगणना हुई थी। 2021 में जाति आधारित जनगणना हुए थी, लेकिन सरकार जाति आधारित जनगणना के लिये मना कर रही है।
आखिरी बार कब हुई जाति जनगणना
देश में जनगणना की शुरुआत 1881 ब्रिटिश शासन काल में हुई थी। 1881 से 1941 तक जनगणना हुई लेकिन 1941 के जातीय जनगणना द्वितीय विश्व युद्ध के कारण नहीं कराई गयी। इसलिए 1931 के जातीय जनगणना को अंतिम मना जाता है। देश आज़ाद होने के बाद 1951 में तत्कालीन सरकार के पास जातीय जनगणना करने का प्रस्ताव आया आया था। लेकिन उस समय के गृह मंत्री सरदार पटेल ने यह कहते हुए मन कर दिया था कि देश में सामाजिक ताना -बाना बिगड़ जायेगा।1931 के जनगणना के अनुसार उस समय ओबीसी की सभी जातियों को जोड़कर लगभग 52 %प्रतिशत की जनसख्या थी।
इसी 52 प्रतिशत जनसख्याके लिए मंडल कमीशन की सिफारिश के तेहत तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लागू कर दिया था। इसके तेहत 52 प्रतिशत बहुसंख्यक पिछड़े हिन्दू तथा कुछ मुस्लिमो को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया था। यह फैसला ऐतिहासिक था क्योंकि देश के आज़ादी के 43 साल बाद बहुसंख्यक हिन्दुाओं को मुख्यधारा में लाने की पहल विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने की थी।
मंडल कमीशन की सिफारिश लागू करने के बाद देश में विवाद हुआ और इसको मैरिट की हत्या बताते हुए सर्वण कोम सड़कों पे आये कोर्ट में हलफनामे में दायर हो रहे थे। देश के अंदर तोड़ -फोड़ भी हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट आदेश आया कि देश के सरकारी नौकरियों में अब ओबीसी हिन्दुओ को 27 % का आरक्षण दिया जायेगा।
जाति आधारित जनगणना की मांग कब से हो रही है ?
मंडल कमीशन की 40 सिफारिशों में से एक थी जाति आधारित जनगणना और हर बार जनगणना कि के शुरुआत से जाति आधारित जनगणना की मांग की जा रही है। सामाजिक न्याय चाहने वाले तमाम लोग चाहते हैं कि भारत सरकार जाति आधारित जनगणना करे जिससे जातियों का सही डेटा सरकार के पास आ सके और विकास योजना बनाने में लाभ मिल सके। बर्षो से देश के तमाम नेता मांग कर रहे हैं। इन नेताओं में लालू प्रसाद यादव,मुलायम सिंह यादव ,शरद यादव ,काशीराम ,एम करुणानिधि नीतीश कुमार आदि देश के तमाम नेता पहले से ही कर रहे हैं।
केंद्र सरकार क्यों बचना छह रही है ?
भारतीय जनता पार्टी शुरू से हिंदुत्व की राजनीति करती आई हुए आये है। ऐसे में जातीय जनगणना होती है तो हिंदुत्व की राजनीति में जाति आ जाएगी। तमाम जातियां अपना – अपना अपना प्रतिनिधित्व करने लगेगी।संख्या चलने से और आरक्षण की मांग करेंगे। शायद इसलिए सरकार डर रही है। इसका एक यह भी पक्ष है कि जनगणना अपने आप में एक जटिल कार्य है जनगणना में सब चीजें दर्ज हो जाती हैं इससे एक नई राजनीति जन्म लेगी जाती अपने आप को खुद को जोड़ कर देखने लगेंगे।