“आज अखबार देखने पर हमें इस बात पर परेशानी हुई कि कोविड-19 संक्रमण के बीच उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा को जारी रखने का निर्णय लिया है, वहीं पड़ोसी राज्य उत्तराखंड ने इस वर्ष कांवड़ यात्रा की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। हम उस सम्मानित राज्य की राय जानना चाहते हैं। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि क्या हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोना की तीसरी लहर के बारे में आगाह करने के बावजूद ऐसा हो रहा है।”
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस नरीमन ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से उक्त बात कही। साथ ही सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस रोहिंगटन एस नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले पर विचार करने का निर्णय लेते हुए केंद्र सरकार यूपी सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। पीठ ने कहा कि वह 16 जुलाई को इस मामले पर सुनवाई करेगी। उत्तराखंड सरकार द्वारा कांवड यात्रा निरस्त करने और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा की अनुमति देने के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए स्वत: संज्ञान लिया है। यही नहीं बल्कि कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और यूपी सरकार को नोटिस भी जारी किया है। इसी के साथ कांवड यात्रा पर सियासत शुरू हो गई है। एक तरफ लोग उत्तराखंड सरकार की सराहना कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार की घेराबंदी कर रहे हैं। कोरोना की वजह से उत्तराखंड सरकार के कांवड़ यात्रा को रद्द किए जाने के फैसले के बाद हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने चेतावनी जारी की है कि मेले के दौरान हरिद्वार जनपद की सभी सीमाएं सील रहेंगी। इसलिए कोई भी भक्त जल भरने हरिद्वार न पहुंचे । जनपद में प्रवेश का प्रयास करने वालों के वाहन जब्त कर लिए जाएंगे और नियमों का उल्लंघन करने पर पुलिस आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कानूनी कार्यवाही करेगी।
अब सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश की कांवड़ यात्रा से उत्तराखंड का क्या कनेक्शन है। कनेक्शन यह है कि उत्तराखंड में जब तक कांवड़ यात्रा सुचारू नहीं होंगी तब तक उत्तर प्रदेश की कांवड़ यात्रा पूरी नहीं होती। उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लाखों श्रद्धालु उत्तराखंड की तीर्थ नगरी हरिद्वार से कांवड़ उठाते हैं इसके अलावा बहुत से ऐसे श्रद्धालु भी हैं जो गंगोत्री से गंगाजल लाते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कांवड़ यात्रा पर रोक लगाए जाने के बाद अब उत्तर प्रदेश की यात्रा पर सवालिया निशान लगने लगे हैं।
जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी लहर के आहट से चिंतित हैं। ऐसे में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कांवड़ यात्रा को निरस्त करके सराहनीय कदम उठाया है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांवड़ यात्रा जारी रखने के आदेश दिए हैं। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने आरटीपीसीआर की नेगेटिव रिपोर्ट वालों को ही इस यात्रा में शामिल होने के आदेश दिए हैं।

इस संबंध में खास बात यह है कि कुंभ यात्रा में भी आरटी पीसीआर की नेगेटिव रिपोर्ट जरूरी थी। लेकिन बावजूद इसके कुंभ से कोरोना फैलने की सूचनाएं मिली। हरिद्वार में आरटी पीसीआर के नाम पर जमकर धांधलेबाजी हुई। जिन लोगों की पॉजिटिव रिपोर्ट थी उन्हें भी नेगेटिव दिखाकर हरिद्वार में कुंभ में प्रवेश दे दिए गए थे। कहीं एक बार फिर ऐसी ही पुनरावृत्ति ना हो इसके मद्देनजर उत्तराखंड के सीएम धामी ने यात्रा को ही निरस्त कर दिया। उत्तराखंड सरकार की राह पर चलते हुए उड़ीसा सरकार ने भी कोडिया और बोल बम नाम से चलने वाले धार्मिक आयोजनों पर रोक लगा दी है। बोल बम कांवड़ यात्रा की ही तरह होता है और इसमें श्रद्धालुओं की श्रद्धा नदियों से पानी लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करने तक होती है।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी कि आईएमए ने जिस तरह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर कोरोना महामारी के संक्रमण को देखते हुए कांवड यात्रा रद्द करने की अपील की थी उसी तरह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी उन्होंने अपील की थी। लेकिन योगी ने उनकी अपील को अनसुना कर दिया, जबकि धामी ने इसे गंभीरता से लिया।
धामी ने कांवड़ यात्रा निरस्त करने से पहले बकायदा प्रदेश के सीनियर ऑफिसरों के साथ बैठक की। बैठक के बाद सीएम धामी ने कहा कि सरकार हरिद्वार को कोरोना के हॉटस्पॉट के रूप में नहीं बदलना चाहती और लोगों की जान को भी खतरे में नहीं डालना चाहती है। इसे ही ध्यान में रखते हुए सरकार ने कांवड़ यात्रा को रद्द करने का फैसला किया है।
उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार महेश चंद पंत कहते हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी का निर्णय बिल्कुल सही है। डेल्टा प्लस ज्यादा खतरनाक है। कांवड़ यात्रा में पूरे देश से जगह-जगह से यात्रीगण आते हैं और कोविड-19 के नियमों का खुला उल्लंघन होता है। जिसको नियंत्रण करना असंभव है। जीवन रहेगा तो आस्था का निर्वहन बाद में भी हो सकता है। वह कहते हैं कि धामीजी का निर्णय दूरगामी है क्योंकि कावड़ यात्रा का समागम हर की पौड़ी में ही होगा और वहां की व्यवस्था की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री जी की होती है और ऐसे में कोविड-19 होने का बहुत खतरा है। तीरथ सिंह रावत जी के समय में इसी अव्यवस्था के कारण उत्तराखंड में बहुत संख्या में जनहानि हुई थी।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भोले भक्त हरिद्वार से और गंगोत्री से ही गंगाजल लेकर कांवड़ शुरू करते हैं। ऐसे में दो प्रदेशों के कांवड़ियों का उत्तराखंड की सीमा पर प्रवेश बंद होने से बॉर्डर पर तनातनी हो सकती है। क्योंकि सैकड़ों मील की दूरी तय करके जब कांवड़िया उत्तराखंड की सीमा पर पहुंचेंगे और उन्हें सीमा में नहीं घुसने दिया जाएगा तो स्वाभाविक है कि उनका आक्रोश बढ़ जाएगा। हालांकि योगी सरकार ने स्पष्ट आदेश दिए हैं कि वह कांवड यात्रियों को आरटीपीसीआर की नेगेटिव रिपोर्ट के साथ ही अपने प्रदेश में घुसने देंगे। लेकिन सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश के कांवड़िए उत्तराखंड में कैसे प्रवेश कर पाएंगे। जिस आरटी पीसीआर की बात मुख्यमंत्री योगी कर रहे हैं वह उत्तराखंड में पहले से ही लागू है। गौरतलब है कि उत्तराखंड में आरटी पीसीआर की नेगेटिव रिपोर्ट की पुष्टि होने के बाद ही लोगों को प्रदेश में प्रवेश दिया जाता है।
याद रहे कि उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल भी कांवड यात्रा शुरू नहीं होने दी थी। इस साल कांवड़ यात्रा 25 जुलाई से 6 अगस्त के बीच चलेगी। यहां यह भी बताना जरूरी है कि वर्ष 2019 में साढ़े तीन करोड़ कांवड़िए हरिद्वार में आए थे। जिनमें दो से तीन करोड़ कांवड़िए पश्चिम उत्तर प्रदेश में कई जगहों से जल भर कर ले गए थे। इसके अलावा हरिद्वार आने वाले अधिकतर कांवड़िए हरियाणा के होते हैं।