कोरोना महामारी की वजह से गरीब मजदूरों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में फिल्म अभिनेता सोनू सूद गरीबों के लिए मसीहा की तरह आगे आये हैं । सोनू ने अपने घरों को पैदल लौटने वाले मजदूरों को न सिर्फ वाहन और ट्रेनों के जरिये घर पहुंचने में मदद की, बल्कि जहां जरूरी समझा वहां हवाई सुविधा उपलब्ध कराने में भी वे पीछे नहीं रहे। लाचार मजदूरों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिनके लिए उनके फैक्टरी मालिक और सरकार कुछ नहीं कर पायी,वहां सोनू सूद जैसे लोग उनके लिए मसीहा साबित होंगे।
आश्चर्यजनक है कि कोरोना काल में जहां मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं और साथ ही सरकार की ओर से भी उन्हें मूल मदद नहीं मिल पा रही है। कोरोना काल में जहां मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं और सरकार की ओर से उन्हें मदद करने की ठान ली है। मंगलवार 8 जून को सोनू सूद ने मजदूरों के लिए एयर एशिया का एक जहाज बुक कराया जिससे लगभग 170 गरीब परिवारों को महाराष्ट्र के बराक वैली से सिल्चर कुंभिग्राम असम भेजा गया। इस नेक काम के लिए ट्विटर पर तमाम यूजर्स ने सोनू सूद की जमकर सराहना करते हुए उन्हें मजदूरों की मदद करने के लिए दुआएं दी। रिपोर्ट के अनुसार सोनू सूद ने खुद एयरपोर्ट पर मौजूद होकर सबकी विदाई की।
श्रमिकों ने सोनू सूद से ट्विटर के जरिये मदद के लिए उनका शुक्रिया अदा किया। मजदूरों की मदद के लिए सोनू सूद अपनी हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं।
कई लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने कभी हवाई यात्रा तक नहीं की। उन लोगों के चेहरे पर खुशी देखी जा सकती है। इस पर सोनू सूद का बयान है कि मुंबई में फंसे कई परिवारों ने मुझे मदद के लिए कहा। मुझे लगता है कि अगर मैं गरीबों के लिए कुछ कर सकता हूं तो मैं करूंगा। मजदूर गरीब परिवार अपने घर पहुंच जाएं इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है। दिक्कत ये है कि जहां सोनू सूद मदद के करने में लगे व्यस्ते हैं, वहीं राजनीतिक दल उन्हें अपना मुद्दा बना कर घसीटने में लगे हुए हैं।
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सोनू सूद को बुलाकर शाबाशी दी, मगर शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में सोनू सूद को लेकर जमकर निशाने साधे, जबकि सोनू सूद खुद एक दिन पहले मातोश्री भवन गए थे। जहां वह मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिले। सोनू सूद ने मुख्यमंत्री से मिलकर स्पष्ट किया कि वह कोई राजनीति नहीं करना चाहते हैं, ना चुनाव लड़ने का इरादा रखते हैं। इसके बावजूद कुछ राजनेताओं ने उन्हें राजनीति में घसीटा है। इससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या अब हर निस्वार्थ सेवा करने वाले इंसान का काम राजनीतिक चश्मे से देखा जाएगा।