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बिहार में जारी है सियासी उठापटक

बिहार में नीतीश कुमार ने अपनी सरकार तो फिर से बना ली है लेकिन सियासी उठापटक कम होने का नाम नहीं ले रहा है। जिस दिन बिहार के मंत्रियों ने मंत्री पद की शपथ ली, ठीक उसी दिन बिहार के कानून मंत्री को अपहरण के एक मामले में अदालत में सरेंडर करना था, अब ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुराने साथी उन पर आरोप लगा रहे है कि, उनके मंत्रिमंडल में 33 मंत्रियों में से 23 दागी हैं। इनके खिलाफ अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं।

 

दरअसल, बिहार के एक मंत्री ने जिस दिन मंत्री पद की शपथ ली थी ठीक उसी दिन उनको अपहरण के एक मामले में अदालत में सरेंडर करना था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।और आरजेडी के कोटे से कानून मंत्री बनाए गए कार्तिक सिंह उर्फ कार्तिक मास्टर विधान परिषद के सदस्य हैं। हालांकि, उन्हें किसी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया है। जिसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि ‘उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है।’ एक रिपोर्ट के मुताबिक,कानून मंत्री कार्तिक सिंह बिहार के बाहुबली विधायक रहे अनंत सिंह के काफी करीबी माने जाते है। इतना ही नहीं उनके रणनीतिकार भी माने जाते हैं। कार्तिक सिंह बिहार के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक थे। विधायक अनंत सिंह के संपर्क में आने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी,अब जिस मामले में कार्तिक के खिलाफ वारंट निकला है, वह वर्ष 2014 का है। उन पर विधायक अनंत सिंह के साथ मिलकर राजधानी पटना के ‘राजू नामक’ बिल्डर को अगवा करने का आरोप है। इस मामले कार्तिक सिंह का कहना है कि ‘दानापुर की एक अदालत ने उन्हें 1 सितंबर तक के लिए राहत दे दी है। बिहार में महागठबंधन की10 अगस्त को सरकार बनी और 12 तारीख को न्यायालय ने उन्हें एक सितंबर तक के लिए राहत दी और 16 को उन्होंने बिहार के कानून मंत्री पद की शपथ ले ली थी।

इस मामले पर विशेषज्ञों का कहना है कि,यह कहीं से उचित नहीं ठहराया जा सकता है। उनके खिलाफ एक महीने पहले न्यायालय ने वारंट निकला था। न्याय प्रक्रिया के तहद उन्हें न्यायालय में आत्मसमर्पण करना था। भले ही उन्हें 1 सितंबर तक के लिए राहत मिल गई है, लेकिन उसके बाद उन्हें सरेंडर तो करना ही चाहिए।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नीतीश सरकार में आरजेडी के 17 मंत्रियों में से 15 मंत्रियों पर, जबकि जदयू के 11 में 4 मंत्रियो पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। सबसे ज्यादा, 11 मामले उप मुख्यमंत्री व लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ, जबकि उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव के खिलाफ 5 मामले दर्ज हैं। आरजेडी के ही मंत्री सुरेंद्र यादव पर 9 मुकदमे दर्ज हैं। वहीं, जदयू में सबसे अधिक तीन मुकदमे अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमां खान पर तथा दो-दो मामले संजय झा व मदन सहनी पर दर्ज हैं। कांग्रेस के भी दो तथा हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा कोटे से एक व एक निर्दलीय मंत्री के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं।इससे पहले भाजपा -जदयू के साथ वाली पिछली एनडीए सरकार में भी दागी मंत्रियों की संख्या कम नहीं थी। वर्ष 2021 को जब कैबिनेट विस्तार के बाद उस समय भाजपा कोटे से बने 14 में से 11 मंत्रियों तथा जदयू कोटे से बने 11 में से 4 मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे। साफ है, इस बार महागठबंधन की सरकार में 72 प्रतिशत तो पहले एनडीए सरकार में 64 फीसद मंत्री दागी थे।

राजनीति का अपराधीकरण रोकने की दिशा में सबसे पहला कदम तब उठाया गया था जब सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर वर्ष 2013 को ईवीएम में नोटा का बटन जोड़ा गया था इसका उद्देश्य था। इससे देश की राजनितिक पार्टिया पर दबाव बढ़ने लगा और दागी प्रवृति के लोगों को टिकट नहीं देंगे, लेकिन, इसका कुछ खास असर नहीं पड़ा है। इसके बाद फिर पार्टियों को प्रत्याशियों के चुनाव के 48 घंटे के भीतर उनके आपराधिक इतिहास को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया लेकिन इसमें कोई बड़ा सुधार देखने को मिला नहीं।भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला काफी महत्वपूर्ण रहा, जिसके तहत राज्य सरकारें अपने हिसाब से किसी के खिलाफ आपराधिक मुकदमे वापस नहीं ले सकेंगी वर्ष 2017 में अदालत ने जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की जल्दी सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का आदेश जारी किया था।

राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि,दागियों के मामले में पूरे देश की स्थिति एक जैसी है,आंकड़ों पर नज़र डालिए, स्थिति में सुधार कहीं नहीं दिख आ रहा है। इसकी मूल वजह किसी भी सरकार द्वारा इसमें दिलचस्पी नहीं लेना है। नतीजतन अदालतों में पेंडिंग मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है और उस अनुपात में उसका निपटारा नहीं होने का लाभ इन दागी नेताओ को मिल जाता है। अदालत की भी अपनी सीमा होती है।पिछले विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर 470 दागी प्रत्याशियों ने भाग्य आजमाए थे,लेकिन सभी ने चुनाव के दौरान अपनी आपराधिक जानकारी सार्वजनिक नहीं की थी। इनमें आरजेडी के सर्वाधिक 104, भाजपा के 77, जेडीयू के 56, एलजेपी के 57, कांग्रेस के 45, आरएलएसपी के 57, बीएसपी के 29, एनसीपी के 26 और वाम दलों ऐसे 9 ऐसे प्रत्याशी थे।

गौरतलब है कि, इन सब के बावजूद बिहार में नए सरकार में मंत्री बने तेज प्रताप यादव की एक विभागीय समीक्षा बैठक में उनकी बहन मीसा भारती के पति शैलेश भी शामिल होते दिख रहे हैं। जिसके बाद भाजपा पर निशाना साधने लगा है। इसको लेकर भाजपा के ही पूर्व केंद्रीय मंत्री जनक राम ने कहा है कि,’बिहार में जीजा – साले के दौर की वापसी शुरू हो गई है।अब बिहार के जनता फिर से पुराना समय देखेंगी।’

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